बलिया- क्या ऐसे पढ़ेगा प्रदेश का भविष्य।
बलिया। अरविन्द सिंह और अखिलेश सैनी। शिक्षा के लिए सरकार प्रयासरत हमेशा रही है और आज भी है। ऐसा नहीं कि केवल वर्त्तमान सरकार ही प्रयासरत रही, सभी सरकारे अपने अपने स्तर पर खूब क्रन्तिकारी योजनाये लागू की। “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया” की सोच एक अच्छी सोच होती है। देश के हर बच्चे का अधिकार है शिक्षा। इसी अधिकार को दिलाने के लिए प्रदेश की वर्त्तमान सरकार भी अपना पूरा प्रयास कर रही है। मगर नतीजा उसका कुछ खास नहीं निकल रहा है। उसका सिर्फ एक कारण है कि शिक्षा के क्षेत्र में माफियाराज का पदार्पण। सरकार ने तो यहाँ तक किया कि बच्चों को दोपहर में पौष्टिक भोजन और पहनने के लिए परिधान तक उपलब्ध है मुफ़्त में। शिक्षक समय से विद्यालय आये इसके लिए प्रयास यह किया जाता है कि शिक्षक के आवासीय ब्लाक स्तर पर ही उनकी नियुक्ति भी की जाए। मगर नतीजा सिफर ही रहा है। शिक्षक आज भी सिर्फ अपनी हाज़री लगा कर निकल लेते है। बच्चे विद्यालय में केवल 4-5 हो मगर उपस्थिति पंजिका में अधिक उपस्थित दिखा कर अपना कागज़ी घोडा दौड़ा लेते है।
ऐसा ही एक नज़ारा हमको बलिया जनपद के रसड़ा ब्लाक के अइरपुरा सिपहा के एक प्राथमिक विद्यालय मिडिल स्कूल में देखने को मिला जब दोपहर 12 बजे के लगभग हमने देखा कि विद्यालय में केवल 4 बच्चे है। हमने वहा के उपस्थिति पंजिका पर नज़र दौड़ाई तो कल शनिवार को कुल 23 बच्चे उपस्थित दिखाए गए थे। अगर वो 23 बच्चे उपस्थित थे तो फिर विद्यालय में केवल 4 बच्चे क्यों थे ये हमारी समझ के बाहर था। यही नहीं कुल 5 अध्यापको में से केवल 3 ही मौके पर थे वो भी प्रिंसिपल के साथ बैठ कर टाइम पास में लगे थे। अध्यापक जीतेन्द्र सिंह और अलका गुप्ता विद्यालय में नहीं थी। जब हमने दूरभाष से अध्यापक जीतेन्द्र सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने बड़े ही आराम से कहा कि आज कुछ काम था जिसके लिए हम आज मऊ आये हुवे है।
विद्यालय की प्रधानाचार्या कुमकुम देवी से जब इस प्रकरण बात किया तो उन्होंने दबे शब्दों में कहा कि क्या हुवा कुछ काम था लोग नहीं आये कौन सा बच्चे ही आ जाते है। हमारे सवाल तो फिर ये उपस्थिति किसने बनाया पर वो शांत बैठी रही। बच्चों के प्रश्न पर कहा कि मज़बूरी में करना पढता है, कागज़ी कार्यवाही भी ज़रूरी होती है।
विद्यालय की प्रधानाचार्या कुमकुम देवी से जब इस प्रकरण बात किया तो उन्होंने दबे शब्दों में कहा कि क्या हुवा कुछ काम था लोग नहीं आये कौन सा बच्चे ही आ जाते है। हमारे सवाल तो फिर ये उपस्थिति किसने बनाया पर वो शांत बैठी रही। बच्चों के प्रश्न पर कहा कि मज़बूरी में करना पढता है, कागज़ी कार्यवाही भी ज़रूरी होती है।
अजीबोगरीब पत्रकार।-
प्रधानाचार्या ने हमको बात-चीत में बताया था कि उनके कुछ लोग और भी पत्रकार है जिनसे अच्छे परिचय है। हमने उनकी बात सुनी और वापस अपने घर आ गए कि तभी उसी ब्लाक के एक बरेली से प्रकाशित समाचार पत्र/ पत्रिका के खुद को पत्रकार बताने वाले सज्जन का फ़ोन हमारे पास आ गया। उन्होंने हमको समझाया कि उक्त विद्यालय किसका है। हर जगह का समाचार नहीं बनाते है। इसको मत बनाना। हमने उनको जवाब दिया कि हम पत्रकार है और हमारा काम है पत्रकारिता। हमको अपना काम करने दो। आप उस विद्यालय से कमाई कर रहे हो तो करो। हम खबर वही जो हो सही के तर्ज पर चलते है। हमको दलाली नहीं करना है। हमको न सिखाओ। इस सम्बन्ध में हमारे सम्पादक श्री तारिक़ आज़मी ने उक्त समाचार पत्र/पत्रिका के सम्पादक से बात की और अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है।
अब आपको जो करना है करे हम समाचार तो बनायेगे ही।
अब आपको जो करना है करे हम समाचार तो बनायेगे ही।
अब देखना ये है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी इस समाचार पर क्या संज्ञान लेंगे और सम्बंधित विद्यालय पर कोई कार्यवाही करते है। या फिर इन लोगो को ऐसे ही छोड़ दिया जायेगा अपनी मन मर्ज़ी करने को।