कलाम साहेब को ज्ञानबोध करवाने वाले स्वामी शिवानंद
डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहेब अपनी शिक्षा वैमानिकी इंजिनियर पूरी करने के बाद जब कॉलेज से निकले तो आपके सामने भविष्य के लिए दो मार्ग खुले थे। पहला था भारतीय वायु सेना का और दूसरा था रक्षा मंत्रालय के तकनिकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय का।
दोनों के साक्षात्कार के लिए कलाम साहेब को उत्तर की ओर सफ़र करना था। दक्षिण भारत का रहन सहन और उत्तर का रहनसहन बड़ा फर्क रखता है। रक्षा मंत्रालय का साक्षात्कार जहा दिल्ली में था वही भारतीय वायु सेना का देहरादून में होना था। कलाम साहेब ट्रेन द्वारा दिल्ली पहुचे। दिल्ली में रक्षा मंत्रालय का साक्षात्कार दिया। हर प्रश्नो के उत्तर दिए। जिसको आज हम कहते है बढ़िया साक्षात्कार हुवा उस प्रकार के साक्षात्कार के बाद कलाम साहेब दिल्ली से देहरादून भारतीय वायुसेना के साक्षात्कार हेतु गए।
वहा साक्षात्कार हेतु आये 25 में से 8 उम्मीदवारों का कमीशन हेतु चयन होना था। इसको देश का सौभाग्य कहने में कोई हिचक नहीं होगी मुझको कि कलाम साहेब इस चयन में 9 वे स्थान पर थे। इसको सौभाग्य देश का कहने में कोई हिचक नहीं होगी क्योकि अगर उस समय कलाम साहेब वायुसेना के पायलट बन जाते तो शायद देश को यह महान वैज्ञानिक नहीं मिलता। मगर यह असफलता कलाम साहेब का मनोबल तोड़ चुकी थी। एक कर्त्तव्यविमूढ़ता सी कलाम साहेब के दिल में घर कर रही थी। इस एक घटनाक्रम को अपनी असफलता मानते हुवे चिंतामग्न नवजवान कलाम पहुच जाते है ऋषिकेश।
गंगा के निर्मल जल का स्नान कर पास के छोटी सी पहाड़ी पर बने स्वामी शिवानंद के आश्रम जा पहुचे। आश्रम में प्रवेश करते ही एक तीव्र कम्पन सा महसूस करते है कलाम। चारो तरफ समाधी लगाये बैठे साधुओ के बीच से एकदम गौतम बुद्ध की तरह दिखने वाले एक बच्चों जैसी मुसकान के साथ सम्मोहक व्यक्तित्व के स्वामी शिवानंद की मीठी आवाज़ ने कलाम का ध्यान भंग किया। नवजवान कलाम ने अपना परिचय दिया। नाम से ही यह ज़ाहिर होने पर भी कि आगंतुक मुस्लमान धर्म से सम्बंधित है, के बावजूद भी स्वामी शिवानंद की प्रतिक्रिया पर कोई असर नहीं हुवा। उन्होंने पूछा “यह मत पूछना कि मैंने कैसे जाना तुम उदास हो, तुम अपनी उदासी का कारण बताओ।” इस पर नवजवान कलाम ने भारतीय वायुसेना की असफलता के सम्बन्ध में बताया। इसपर स्वामी शिवानंद धीमे से मुस्कुराये और कलाम की सभी चिंताए उनके शब्दों ने दूर कर दी।
स्वामी शिवानंद ने गहरे मगर धीमे शब्दों कहा कि “इच्छा जो तुम्हारे ह्रदय और अंतरात्मा से उत्पन्न होती है,जो शुद्ध और मन से की गई हो, एक विस्मित कर देने वाली विद्युत-चुम्बकीय ‘ऊर्जा’ लिए हुवे होती है।यही ऊर्जा हर रात को,जब मस्तिष्क सुषुप्त अवस्था में सोता है, आकाश में चली जाती है। जिसकी परिकल्पना की गई होती है,वह निश्चित रूप से प्रकट होता नज़र आएगा। नवजवान तुम इस तथ्य पर ठीक उसी तरह अनंत काल तक भरोसा कर सकते हो, जैसे तुम सूर्योदय के अकाट्य सत्य पर भरोसा करते हो।”
“जहा शिष्य चाहे वहा गुरु हाज़िर होगा-कितना सत्य है यह! यहाँ गुरु अपने शिष्य को राह दिखाता है जो रास्ते से भटक गया है।” इसके बाद स्वामी शिवानंद ने एक गहरी सांस ली और कहा “अपनी नियति को स्वीकार करो और जाकर अपना जीवन बनाओ। नियति को यह मंजूर नहीं था कि तुम वायुसेना के पायलट बनो। नियति तुम्हे जो बनाना चाहती है उसके बारे में अभी कोई नहीं जानता है। लेकिन नियति ने यह पहले ही तय कर लिया है। अपनी इस असफलता को भूल जाओ जैसे कि नियति को तुम्हे यहाँ लाना ही था। असमंजस से निकल कर अपने अस्तित्व के लिए उद्देश्य को तलाश करो,अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दो।”
नवजवान और हताश कलाम के लिए ये शब्द 1958 में किसी अमृत के तरह ही थे। इन अमृत वचनो को लेकर नवजवान कलाम दिल्ली आते है और रक्षा मंत्रालय में खुद के दिए साक्षात्कार का पता करने पहुचते है। डी.टी.डी.&पी. (एयर) ने जवाब देने के बजाये रुपया 250 के मूल वेतन पर निदेशालय के तकनिकी केंद्र (उड्डयन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के पद पर नियुक्ति पत्र दे दिया। अब एक छात्र वैज्ञानिक की श्रेणी में खड़ा था। अब जलालुद्दीन का “आज़ाद” जीवन में सफलता की उचाई को छूने को तैयार था। नियति को यह मंज़ूर था कि कलाम विमान उड़ाए न बल्कि वह विमान को उड़ने लायक बनाये।
इस प्रकार स्वामी शिवानंद के इन अमृत वचनो ने कलाम को मार्गदर्शन दिया। धर्म, क्षेत्र और भाषा की बंदिश से दूर स्वामी शिवानंद ने अबुल पाकिर जैनुल आब्दीन अब्दुल कलम के मन से यह असफलता की भावना को दूर कर देश को एक महान वैज्ञानिक प्रदान किया। यानि “द मिसाइल मैन कलाम।”