जेल से रिहा होकर लिख सकते है मुख्तार अंसारी राजनीति की नई इबारत

                                  

                    तारिक़ आज़मी की कलम से

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओ की संख्या को देखते हुए लगभग सभी राजनितिक पार्टिया इस वोट बैंक को अपने पाले में लेना चाहती है। इसी बीच लगातार राजनीति में मुस्लिम द्वारा मुस्लिम प्रतिनिधित्व की मांग जैसी सुगबुगाहट मिलती रही है। शायद यही वजह है कि लगभग सभी राजनैतिक पार्टिया मुस्लिम कार्ड खेलना चाहती है। इस वोट बैंक को अपना बनाने हेतु कुछ राजनैतिक दलो का भी गठन हुवा। परंतु मुस्लिम वोट शायद इनसे संतुष्ट नहीं हुवा। ये भी एक सच कि इसी वोट के सहारे कुछ पार्टिया जीती तो नहीं मगर अच्छा मतों का प्रतिशत इकठ्ठा किया। इसी बीच हैदराबाद से मुस्लिम हितो के नाम से बनी ओवैसी बंधुओ की पार्टी AIMIM ने भी इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओ को रिझा कर ताल ठोकने को कमर कस कर बैठी है।

वही दूसरी तरफ बाटला हाउस कांड के बाद अस्तित्व में आई ओलमा काउन्सिल ने मतों के प्रतिशत को 2012 में अच्छा बटोर लिया मगर इन मतों को सीटो में न बदल पाई। वक्त के हालात ने प्रदेश में इस पार्टी को जहा कमज़ोरी दी वही इसके गढ़ आजमगढ़ में ओवैसी बंधुओ की बढ़ती पैठ ने इस पार्टी के पेशानी पर एक बल दे रखा है।
इस बीच प्रदेश में राजनैतिक गलियारों में हलचल उस समय तब बढ़ गई जब न्यायालय ने मऊ सदर के विधायक मुख़्तार अंसारी को मकोका से बरी कर दिया। इसकी खबर ने सूबे की सियासत को गर्मा दिया है। सियासी गलियारों में राजनीतिक समीकरण बनने बिगड़ने लगे हैं। सबसे ज्यादा उत्साहित मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल है। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना है कि विधायक के बाहर आने भर की देर है, इस बार पूर्वांचल में पार्टी का सिक्का चलना तय है। पार्टी को बहुमत भले न मिले पर उसके बगैर कोई यूपी की सत्ता पर काबिज भी नहीं होगा।
देखा जाये तो पार्टी कार्यकर्ताओ के इस दावे में एक दम भी है। जिस प्रकार वाराणसी से लोकसभा चुनाव में जेल में रहते हुवे मुरली मनोहर जोशी को जीत हेतु मशक्कत करनी पड़ी और जिस प्रकार से बहुत कम अंतर से मुरली मनोहर जोशी को जीत मिल पाई वह मुख़्तार अंसारी की मुस्लिम मतदाताओ में पैठ को दर्शाता है।
मुख़्तार के जेल से रिहा होकर वापस सक्रिय राजनीति में आने से यदि नफा नुकसान जोड़ा जाय तो सर्वाधिक नुकसान यदि किसी का होगा तो वह ओवैसी बंधुओ का ही होंगा। अभी हाल में बिहार में करारी हार का मुह देखने वाले ओवैसी बंधुओ को यदि ऐसा हुवा तो पूर्वांचल में भी हाथ धोना पड़ेगा। 
सपा से अपनी शर्तों पर हो सकता है करार। 
पार्टी के सूत्रो का कहना है कि मुख़्तार अंसारी के आते ही सूबे की राजनीति को गर्म किया जाएगा। इसका प्रतिनिधित्व खुद विधायक मुख़्तार अंसारी करेगे। अगर आवश्यकता पड़ी तो सपा से अपनी शर्तों पर करार हो सकता है, मगर ओवैसी बंधुओ से किसी भी तरह का करार अंसारी बंधू करने को तैयार नहीं है। वही सूत्रो की माने तो महागठबंधन बनने की स्थिति में कौमी एकता दल महागठबंधन का हिस्सा होगी। 
 2017 चुनाव में पार्टी की अपनी रणनीति बन रही है। उसी रणनीति के य़ह है कि मुख़्तार अंसारी महीना-सवा महीना में बाहर आ जाएंगे। फिर शुरू होगा सभाओं का दौर। हर सभा में मुख्य वक्ता होंगे मुख़्तार अंसारी और निशाने पर सपा, बसपा और भाजपा। कारण तीनों ने मिल कर प्रदेश को दशकों पीछे धकेल दिया है। यही नहीं मुख़्तार के नेतृत्व में पार्टी विकास का नया नक्शा पेश करेगी।
राजनेता जो भी समीकरण बनाये मगर यह साफ़ दिखाई दे रहा है कि आने वाले 2017 विधानसभा चुनाव में मुख़्तार अंसारी के नेतृत्व वाली कौमी एकता दल एक मज़बूत पार्टी बनकर उभरेगी। सरकार बनाने की स्थिति में तो पहुचना लगभग इस दल के लिए असंभव है मगर अगर त्रिशंकु की स्थिति बनती है तो कौमी एकता दल सरकार बनाने में मुख्य सहयोगी साबित होगी। जहा तक इसकी कमज़ोरी की बात देखा जाये तो अंसारी बंधुओ को छोड़ कर कोई अन्य कुशल नेतृत्व सामने नहीं समझ आता है। इन दो को छोड़ दिया जाय तो पार्टी के पास अनुभव की कमी नज़र आती है। बड़े नाम में केवल एक अतहर जमाल लारी का नाम सामने आता है। इसमें ध्यान देने संबंधी यह है कि लॉरी कई बार चुनाव लड़ चुके है परंतु राजनैतिक विशेषज्ञो की माने तो राजनैतिक सूझ बुझ की कमी से जीत नहीं हासिल कर पाये। यदि अन्य कोई दूसरा नाम देखा जाये तो फिर एक नाम पूर्व सपा नेता नियाज़ अली मंजू का आता है। नियाज़ अली मंजू की जहा तक देखा जाये तो भाषणों में महारत हासिल किये इस नेता को राजनैतिक अनुभव तो है मगर एक क्षेत्रीय नेता के बराबर का अनुभव है।
अगर कौमी एकता दल के मज़बूत पहलुओं को देखा जाए तो इसके कार्यकर्ता पार्टी के लिए पूरी तरह से समर्पित है। युवा जोश लिए इसके कार्यकर्ता पार्टी के लिए समर्पित दिखाई देते है। वही इसके अतिरिक्त यदि ओवैसी बंधुओ की AIMIM को देखा जाय तो इसमें अधिकतर शहरों में या तो कार्यकर्ता ही नहीं है यदि है तो उस स्तर के समर्पित नहीं है।
जो भी हो। जेल से आज़ादी पाकर मुख़्तार अंसारी यदि चुनाव की बिगुल अपनी पार्टी की तरफ से फूंकते है तो पूर्वांचल की कई सीटो पर बड़ा उलटफेर कर सकती है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *