इंसानियत की एक मिसाल।

आगरा। शीतल सिंह माया। जिसके हाथ सोने और पैर लोहे को हों उसके लिए सब मुमकिन है। बड़े से बड़ा अपराधी भी बाइज्जत बरी हो जाता है। पैसे के दम पर अपराधियों को सजा भी नहीं हो पाती है। निचली अदालतों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक उनकी पैठ रहती है और पैसे के दम बड़े बड़े वकीलो के बलबूते जेल के सींखचों तक नहीं पहंच पाते हैं। आगरा की केन्द्रीय कारागार में दर्जनों बंदी ऐसे भी हैं जो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं

लेकिन गरीब होने के कारण वह जुर्माना राशि अदा करने में सक्षम नहीं हैं। जुर्माना राशि न अदा कर पाने के कारण वह जेल में सजा काटने को मजबूर हैं। इसे भाग्य की बिडम्बना समझकर वह चुपचाप जेल की सलाखों के पीछे अपना जीवन बिता रहे हैं। जेल प्रशासन का कहना है कि यदि वह जुर्माना राशि जमा कर दें तो वह तत्काल छूट सकते हैं। ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने आगे आकर मंगलवार को एक गरीब कैदी का जुर्माना भर कर उसे आजाद करा दिया।

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