आपसे न होगा

उसको तो न कोसो जिसकी रोटी खा रहे हो

दिल ही बेईमान है और ईमानदारी सीखा रहे हो
दोस्त हम तो कम ही कलम उठाते हैं
और तुम हो की रोज़ विचारधारा पढ़ा रहे हो
कई दिन कुछ न हुआ तो एक नया धमाका
मीडिया में बने रहने के लिए बेजोड़ सियाप्पा
हमें ही ज्ञान पे ज्ञान बांटे जा रहे हो
कभी ये भी बताओ खुद पे कितना आज़मा रहे हो
न गाड़ी लेंगे न बांग्ला, न उर्दू बोलेंगे न आंग्ला
जो मिले सीधा साधा, उसी पे बोलेंगे हमला
जहा से इच्छा हुई वही की पोथी चिपकाए जा रहे हो
कहोगे की देश की सूरत में बदलाव ला रहे हो
मेक इन इंडिया से लेके डिजिटल इंडिया दिखायेगा
अगले दिन संसद में फिर वह राजनीति फरमाइएगा
बोले तो कहोगे असहिष्णुता, न बोले तो राष्ट्र विरोधी
ऐसी की तैसी उस दलदल की, जिसमे तुम रोज़ डुबकी लगा रहे हो
उसको तो न कोसो जिसकी रोटी खा रहे हो
दिल ही बेईमान ह और ईमानदारी सीखा रहे हो…
(कविता कवि का अपना खुद का विचार है।)
Written by – Priyesh Mishra
B.A. hons. Mass Comm. 3rd year

Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith

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