बदायूं प्रकरण-मृतक पुलिसकर्मियो को कब दिलवा पायेगा विभाग इंसाफ।

तारिक़ आज़मी। जनपद बदायूं का एक प्रकरण कई दिनों से दिमाग में कौंध रहा है। कई सवालो से घिरा यह प्रकरण के सवालो का जवाब तो मैं खुद नहीं तलाश पाया। तो फिर अब सोचा क्यों न आपकी सहायता लिया जाय। अब आप बताये कि अगर कोई पुलिस वाला किसी अपराधी को सरेराह एक थप्पड मार देता है तो हम उस गलत को मुद्दा बनाकर उठाते है फिर आखिर इस अनैतिकता पर क्यों न लिखे कि जब सूचना पर दो पुलिस वाले डीजे बंद करवाने गए तो उनकी ऐसी पिटाई की गई कि एक मौके पर ही खत्म हो गया दूसरा अस्पताल में खत्म हो गया।

भाई इंसाफ तो यह कहता है कि इस प्रकरण कि इसमें भूचाल आना चाहिए। जैसे किसी पुलिसकर्मी के विरुद्ध समाचार से भूचाल आ जाता है कि मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी  उस पुलिस वाले सजा दिलाने में जूट जाते है और हम मीडिया वाले तो रिपिट कर कर के तब तक दिखाते है तब तक पुलिस वाले को सस्पेंड न करा दे और फिर दो दिन तक खबर का असर दिखाते है। लेकिन कुछ  दिन पहले जो जनपद बदायूं में हुआ वो शायद किसी को दिखाई नहीं दिया रात्रि में फ़ोन की सुचना पर डी0जे0 बंद कराने गये दो पुलिस वाले। दोनों पुलिस वालो को उस परिवार के सभी लोगो ने लाठी डंडे से बुरी तरह पीटा जिससे एक पुलिस वाले की मौत हो गई और दूसरा हॉस्पिटल में जिंदगी की जंग लड़ रहा था । उसने भी शरीर त्याग दिया। अभी तक ना तो मानवाधिकार आयोग आया न ही कोर्ट और ना ही हम मीडिया इस खबर को दिखा रहे है ना नेता न अभिनेता कोई भी कुछ बोलने को तैयार नही है पुलिस वालो को इस तरह मार दिया गया जैसे इन्होंने कोई अपराध किया हो। 
अब आते है कुछ ज्वलंत मुद्दों पर। आखिर विभाग किस दबाव में अभी तक हमलावरों को नहीं पकड पाया है। क्या पुलिस की तेज़ी सिर्फ टीवी शो या फिल्मो वाली पुलिस में होती है। क्या इन पुलिस कर्मियो को दिली रायफल कभी चेक भी होती है कि ये चलती भी है या नहीं। वैसे भी चलती हुई होती तो ये बेचारे क्या कर लेते। गोली तो चला नहीं सकते थे। 1000 सवालो का जवाब लिखित और मौखिक रूप से तत्काल सस्पेंड होने के बाद देना होता। क्या याद नहीं किसी को इलाहाबाद कचहरी का प्रकरण जब दलील और खाकी में जो कुछ हुवा। कैसे भूल सकते है वो प्रकरण पुरे प्रदेश में उसका बवाल कटा था दलील के द्वारा। क्या कोई बता सकता है कि ये मारने वालो के पास इतनी हिम्मत कहा से आई। ये दो घुट दारु की दबंगई नहीं हो सकती है। अगर सही और निष्पक्ष विवेचना हो तो इसमें किसी कड़क सफ़ेद खाकीधारी का योगदान निकलेगा। 
हम तो कलमकार है साहेब जो लिखते है साफ़ साफ़ लिख देते है। इस पुरे प्रकरण में पुलिस की अपनी कार्यशैली ही संदेह के घेरे में है। जो विभाग अपने साथियो को न्याय नहीं दिलवा पा रहा है वो क्या जनता की सुरक्षा करेगा ऐसी चर्चाये फिज़ाओ में होने लगी है। 
सवाल तो कई है क्या ये पुलिस वाले मानव नहीं थे क्या इनकी कोई पत्नी माँ बहन बच्चे नहीं थे क्या इनका परिवार नहीं था। क्या इनके आँगन के ये चिराग नहीं थे? सवाल तो सैकड़ो पैदा होते है मगर जवाब किसी के पास नहीं है। अगर सभी सवालो के जवाब हा में है तो फिर क्यूं इनके साथ ऐसा किया गया। ये अपनी ड्यूटी करते हुए अपनी जान दे गए तो फिर कोई क्यूँ इनके साथ क्यों नहीं आता है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *