आठ साल की मासूम नेत्रहीन ऱीदा ज़ेहरा सुनाती है गीता का श्लोक
मेरठ। नीलोफर बानो। आज देश के कथित धर्मवादी संगठन व लोग जहां देश की धर्मनिरपेक्षता के ताने बाने को कमज़ोर करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ रहे हैं। वहीं मामूली मुद्दों को दबाने की बजाए उन्हें हवा देकर देश में अस्थिरता का माहौल बनाने का कुप्रयास कर रहे एेसे लोगों को मेरठ निवासी आठ वर्षीय मासूम नेत्रहीन मुस्लिम बालिका सच्चाई का आईना दिखा रही है। रिदा जेहरा नामक इस मासूम बच्ची को गीता के कई अध्यायों के सभी श्लोक कंठस्थ याद हैं। जिन्हें सुनाने को कहते ही रिदा बड़ी ही तन्मयता के साथ इन श्लोकों को सुनाने लग जाती है। रिदा को एक प्रतियोगिता में स्टेट का प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है।
रिदा पिछले तीन साल से मेरठ के जागृति विहार कॉलोनी स्थित एक आवासीय ब्रजमोहन ब्लाइंड स्कूल में पढ़ रही है। उसने किताबें कभी नहीं देखीं और न ही गीता ब्रेल के जरिए पढ़ी है। बस चिन्मयी मिशन के द्वारा गीता के पंद्रहवें अध्याय को लेकर एक प्रतियोगिता की तैयारी के चक्कर में स्कूल के शिक्षकों ने बच्चों को गीता याद करानी शुरू करा थी। लेकिन रिदा जेहरा का गीता में ऐसा रुझान बना की उसे आज गीता का बारहवें और पन्द्रहवें अध्याय के सब श्लोक पूरी तरह मुंह ज़बानी याद हैं।
अंधेपन को कमज़ोरी न मानने वाली रिदा जेहरा के चेहरे पर आत्मविश्वास से भरा दमकता तेज है। रिदा के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखता कि वह किस मजहब के ग्रन्थ को पढ़ और याद कर रही है उसे बस इतना जरूर अहसास है कि इसे याद कर उसके मन को शान्ति मिलती है।
रिदा जेहरा के माता-पिता मेरठ के लोहियानगर में रहते हैं, जहां वह छुट्टियों और त्योहारों के दौरान जाती है। उसके पिता ने तीन साल पहले उसका एडमिशन इस स्कूल में कराया था। उन्होंने यह सोचकर अपनी बेटी का दाखिला यहां कराया था कि उनकी बेटी पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी। लेकिन आज जब उनकी बेटी ने उनका नाम रोशन कर दिया है। बेटी की सफलता को पर उन्हें लगता है कि रिदा के गीता पाठ करने से समाज में भाईचारे का संदेश भी जाएगा।