आगरा। शीतल सिंह “माया”। रोजाना हजारों मरीजों को अपने हाथ से जड़ी-बूटियों का घोल पिलाने वाले बाबा भुड़कनाथ की रविवार सुबह सर्पदंश से मृत्यु हो गई। उन्हें मथुरा के जैंत क्षेत्र के रॉल गांव में जहरीले सर्प ने डस लिया। वे उसे पकड़कर उसके साथ खेल रहे थे। उसके मुंह में दो बार अंगुली डाली। दूसरी बार में सांप ने अंगुली को कसकर पकड़ लिया। उनके शिष्यों ने बड़ी मुश्किल से सांप को अलग किया। इसके बाद उपचार के लिए पहले झाड़फूंक के चक्कर में पड़े रहे। फिर डाक्टरों के पास ले गए। आगरा के जीजी नर्सिंगहोम में रात साढ़े नौ बजे उन्हें मृत बता दिया गया।
गाजीपुर के विशुपुरा के गांव कर्मदीनपुर निवासी मनोज कुमार यादव उर्फ बाबा भुड़कनाथ (27) का शिविर पिछले 20 दिनों से रॉल के बिहार वन में लगा था। वहां भी सैकड़ों मरीज रोजाना बूटी पीने के लिए पहुंच रहे थे। मौके पर मौजूद उनके बलिया निवासी शिष्य ओम प्रकाश गुप्ता ने बताया कि शिविर में काले रंग का सर्प आ गया था।
बाबा ने उसे पकड़कर उठा लिया। सुबह 10 बजे शिष्यों ने कहा कि बाबा सांप को छोड़ दो। लेकिन बाबा उससे खेलने लगे। उन्हें शायद ऐसा लग रहा था कि सांप डसेगा नहीं। इसलिए उसके मुंह में एक बार अंगुली डाली। उसने नहीं डसा। इसके बाद जैसे ही दूसरी बार अंगुली डाली, सांप ने डस लिया। अंगुली को कसकर पकड़ लिया। शिष्यों ने बड़ी मुश्किल से सांप को खींचकर अलग किया। लेकिन तब तक पूरा हाथ नीला पड़ चुका था।
शिष्य उन्हें भरतपुर के गांव ताखा ले गए। वहां उनकी परिक्रमा कराई। झाड़फूंक कराया। शाम को उनके परिवारीजनों के आने पर मथुरा में एक प्राइवेट हॉस्पिटल में दिखाया। वहां डाक्टरों ने उन्हें मृत बताया, लेकिन शिष्यों को विश्वास नहीं हुआ। इस पर उन्हें आगरा के जीजी नर्सिंगहोम में दिखाया। यहां भी डाक्टरों ने मृत बताया। इसके बाद शिष्य उनके शव को लेकर गाजीपुर के लिए चल दिए।
बाबा भुड़कनाथ अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके भाई प्रमोद और विनोद हैं। प्रमोद यूपी पुलिस में हैं। शिष्यों ने बताया कि बाबा ने सात साल की उम्र में घोर छोड़कर सन्यास से लिया था। पांच महीने पहले बाबा भुड़कनाथ का शिविर आगरा के ककरैठा गांव में लगा। वहां उनकी बूटी को चमत्कारी मानकर रोजाना हजारों लोग पहुंचते थे। पूरे गांव में मेला लग गया था। वे ककरैठा से फरह के सलेमपुर गए थे। 20 दिन पहले ही रॉल पहुंचे थे। उनके निधन की सूचना पर सैकड़ों लोग ककरैठा में शोक जताने के लिए जमा हो गए।
बाबा भुड़कनाथ अपने साथ 600 गायों के अलावा भेड़, बकरी, कुत्ते पालते थे। उनके शिष्य यह सोचकर परेशान हैं कि उनकी गायों की देखभाल कौन करेगा? बाबा की एक श्यामा गाय है। शिष्य इसकी पूजा करते हैं।
सांप ने बाबा को पहली बार नहीं डसा। पांच साल पहले उन्हें लखनऊ के पास भी सांप ने डसा था। तब उनकी जान बच गई थी। उन्हें सांपों से डर नहीं लगता था। वे अपने पास सांप रखते भी थे।