माथे पर तिलक लगाने का महत्व
(आचार्य सुधीर जी )
हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जो पूरी दुनिया में अपने रिवाजों और संस्कृति के लिए जाना जाता है। हमारी संस्कृति में किसी भी पूजा-पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान का शुभारंभ श्रीगणेश की पूजा से होता है। उसी प्रकार बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना आरंभ नहीं होती।
हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक लगाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है। टीका हल्दी, कुमकुम, चंदन या रोली से ही लगाया जाए और साथ ही तिलक लगाने के बाद चावल लगाना भी शुभ माना जाता है क्योंकि यह शांति का प्रतीक होता है और इसे लगाने से अपने मस्तिष्क के अंदर के दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है और साथ ही हमारा दिमाग एकाग्र रहता है।
हमारे शरीर में 7 सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है।
इसलिए अगर आप किसी धार्मिक काम के लिए गए हैं तो माथे पर तिलक जरुर लगा होना चाहिए। पूजा-पाठ के अलावा शुभ अवसर पर तिलक लगाना प्रसन्नता का, सात्विकता का और सफलता का चिन्ह माना जाता है।