तराई क्षेत्र में गैर प्रकाष्ठ वन उपज विपणन व प्रमाणीकरण विषय पर कार्यशाला का आयोजन।

नूर आलम वारसी।
बहराइच। उत्तर प्रदेश सहभागी वन प्रबन्धन एवं निर्धनता उन्मूलन परियोजना अन्तर्गत वन प्रभाग, बहराइच एवं भारतीय वन प्रबन्धन संस्थान, भोपाल मध्य प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में ”तराई क्षेत्र में गैर प्रकाष्ठ वन उपज विपणन व प्रमाणीकरण” विषय पर बुद्धा रिसार्ट में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। 
कार्यशाला का शुभारम्भ करते हुए मुख्य अतिथि प्रभागीय वनाधिकारी बहराइच अखिलेश पाण्डेय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सहभागी वन प्रबन्धन एवं निर्धनता उन्मूलन परियोजना जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जाईका) द्वारा प्रदायित वित्तीय सहायता से संचालित की जा रही एक परियोजना है। परियोजना का मुख्य लक्ष्य प्रदेश में सहभागी वन प्रबंधन को स्थापित कर उसके माध्यम से प्रदेश के वन प्रांचलों में लोगों को वन आधारित तथा अन्य गतिविधियों के माध्यम से आजीविकाएं उपलब्ध करवाकर उनकी गरीबी का उन्मूलन करना है। 
डीएफओ श्री पाण्डेय ने बताया कि परियोजनान्तर्गत प्रदेश के तीन वनांचलों तराई, बुन्देलखण्ड एवं विंध्याचल के चैदह जिलों को सम्मिलित किया गया है। परियोजना क्षेत्र के अन्तर्गत 20 वनमण्डल, 106 वन परिक्षेत्र, 800 संयुक्त वन समितियाॅ तथा 140 इको विकास समितियाॅ सम्मिलित हैं। श्री पाण्डेय ने बताया कि संयुक्त वन प्रबंधन समितियों द्वारा इको विकास समितियों के अन्तर्गत स्व-सहायता समूहों का गठन करवाकर उन्हें वन आधारित अथवा वनेत्तर आय उपार्जन गतिविधियों के माध्यम से आजीविकाएं उपलब्ध कराना ही परियोजना का मुख्य उद्देश्य है।
श्री पाण्डेय ने बताया कि प्रमाणीकरण गैर-प्रकाष्ठ वनोपज की बाज़ार में अधिक माॅग एवं मूल्य को मद्देनज़र रखते हुए बहराइच वन मण्डल अन्तर्गत गठित संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पदाधिकारियों को वैज्ञानिक तरीकों से गैर-प्रकाष्ठ वनोपज के विदोहन, व्यवसाय योजना विकास, वित्तीय प्रबन्धन एवं प्रमाणीकरण की जानकारी प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यशाला में भारतीय वन प्रबंध संस्थान भोपाल के विषय विशेषज्ञ प्रोफेसर डा. केके झा, डा. आशुतोष वर्मा, डा. मनमोहन यादव एवं डा. धर्मेन्द्र दुगाया को रिर्सोस पर्सन के तौर पर आमंत्रित किया गया है। 
श्री पाण्डेय ने कार्यशाला में मौजूद संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पदाधिकारियों से अपील की कि रिर्सोस पर्सन द्वारा दी जा रही जानकारी के अनुसार गैर-प्रकाष्ठ वनोपज का वैज्ञानिक तरीकों से विदोहन करें इससे वनों का संरक्षण भी होगा तथा समितियाॅ भी हमेशा गैर-प्रकाष्ठ वनोपज प्राप्त होता रहेगा। श्री पाण्डेय ने समिति के पदाधिकारियों से कहा कि एक्सपर्ट द्वारा दिये गये सुझावों के अनुसार व्यवसाय योजना का विकास कर अधिकाधिक लाभ अर्जित कर परियोजना के गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को साकार करें।
भारतीय वन प्रबंध संस्थान भोपाल से आये रिसोर्स पर्सन ने बताया कि बहराइच वन मण्डल अन्तर्गत मूलतः सतावर गिलोय, शिकाकाई, बेंत, घास (खस, मूंज, कांस, पटेर, जराकुश, बैब, उला) व बेल इत्यादि गैर प्रकाष्ठ वनोपजों का संग्रहण एवं व्यापार पाया गया है। यहाॅ पर कार्यरत वन समितियाॅ बेहतर व्यवसाय योजना, सैद्धांतिक रूप से वन प्रबंधन करे तो विश्व स्तर का प्रमाणीकरण प्राप्त कर संग्रहण किये गये गैर-प्रकाष्ठ वनोपजों का बेहतर बाज़ार भाव प्राप्त कर अपनी आमदनी में इज़ाफा कर सकती हैं।
रिर्सोस पर्सन ने बताया कि आने वाला समय गैर-प्रकाष्ठ वन उपज का है। आज के समय में लोगों का रूझान पुनः आयुर्वेद एवं यूनानी पद्धति की ओर है। आमधारण के अनुसार लोग जड़ी बूटियों को दूसरी आम दवाओं के मुकाबले ज्यादा अहमियत दे रहें। ऐसे में गैर-प्रकाष्ठ वन उपज के माध्यम से समितियाॅ अपनी आय में वृद्धि के साथ-साथ वनों के संरक्षण में अपना सहयोग प्रदान कर सकती हैं। रिर्सोस पर्सन ने कहा कि हमारे वन औषधि की वेदशाला है। समिति के सदस्यों को उपज के प्रमाणीकरण पर विशेष ध्यान दिये जाने का सुझाव दिया गया ताकि वह अपने गुणवत्तायुक्त उत्पाद से अच्छी आय अर्जित कर अपने जीवन स्तर में वृद्धि कर सकें। 
कार्यक्रम का संचालन वन क्षेत्राधिकारी बहराइच परवेज़ रूस्तम ने किया। इस अवसर पर आरओ ककरहा विकास अस्थाना, कैसरगंज के नदीम अहमद, नानपारा के नरेन्द्र वर्मा, रूपईउिहा के अहमद कमाल सिद्दीकी, अब्दुल्लागंज के जेपी चैबे, चकिया के ज़हीन मिर्जा, वन क्षेत्राधिकारी टीएस मिश्रा, संयुक्त वन प्रबंध समितियों हथियोबोझी, करीम गाॅव, भगतपुरा, मझगांवा, जोहनालखिया, फुकतेकरा, होलिया, जामदन, पोन्डा, बखारी, मंझगावा-2, पुरैना, रघुनाथपुर, चैधरी गाॅव, पड़रिया, करमोहना व खमरिया तथा दक्षिण एवं उत्तर खीरी वन प्रभाग एवं कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग की समितियों/एसएचजी के पदाधिकारीगण मौजूद रहे। कार्यक्रम के अन्त में उप प्रभागीय वनाधिकारी नानपारा टीके राय ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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