डीएम साहेब- मोक्ष की नगरी काशी में बेमौत मर गई बेचारी।

तारिक़ आज़मी की कलम से
वाराणसी। प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार सभी आम जन को पूरी चिकित्सा हेतु सुविधाये मुहैया कराती रहती है। मगर यह सुविधा कितनी आम जनो तक पहुच पाती है ये एक अलग मुद्दा है। आम नागरिक को इन सुविधाओ का लाभ पाने हेतु एक बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है धरती के दूसरे भगवानो से। धरती के दूसरे भगवान कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि आम जन चिकित्सक को भगवान की श्रेणी देता है। मगर अगर जान बचाने वाले ये भगवान समय से अपने कर्तव्यों का पालन ही न करे तो एक चिंता का विषय हो जाता है। वाराणसी में जिलाधिकारी के सम्मुख जितने भी सरकारी अस्पतालों द्वारा उत्तम कार्य करने का दावा किया जाय, मगर वास्तविक धरातल पर स्थिति नग्न ही है। जिलाधिकारी के सामने भले ही व्यवस्था लाख चाक चौबन्द दिखाई जाय, मगर ढोल में पोल रह ही जाता है।
इसका आज एक उदहारण वाराणसी के मंडलीय चिकित्सालय श्री शिव प्रसाद गुप्त हस्पताल में देखने को मिला। घटना कुछ इस प्रकार हुई कि आज शाम 5:30 के लगभग ट्रक के धक्के से रामनगर में घायल हुई 60 वर्षीय महिला किरण रस्तोगी को उनके परिजन मंडलीय अस्पताल श्री शिव प्रसाद गुप्त के आपातकालीन कक्ष में लेकर आये। श्रीमती किरण रस्तोगी का बाया पैर ट्रक की चपेट में आकर बुरी तरह घायल हो गया था और उससे काफी खून बह रहा था।  घायल का रात्रि 10:30 पर देहांत हो गया। परिजनों और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान को आधार माना जाय तो मृतक को शाम 5:30 से लेकर मृत्यु के समय लगभग 10:30 तक कोई इलाज ही नहीं मिला। शव को देखने से प्रतिक हो रहा था कि शायद मृतक को फर्स्ट ऐड भी न मिला होगा। परिजनों की माने तो मृत्यु होने तक घायल को बेड तक मुहैया नहीं हुई थी और उसको स्ट्रेचर पर ही रखा गया था, मृत्यु बाद परिजनों का हंगामा देख आनन फानन में मृतक का परचा वार्ड में भेज कर कागज़ी खानापूर्ति की गई। 
मीडिया कर्मियो से बात करते हुवे मृतक की बेटी पुष्पा रस्तोगी ने उपस्थित आन ड्यूटी चिकित्सक के सामने आरोप लगाया कि उसकी माँ की मरहम पट्टी तक नहीं की गई, और बार बार सिर्फ यही कहा गया कि डॉक्टर को बुलाया गया है मगर डॉक्टर कोई आया ही नहीं न ही मेरी माँ को बिस्तर तक दिया गया। उनको केवल स्ट्रेचर पर रख कर तड़पने को छोड़ दिया गया। मृतिका के परिवार के इस आरोप के सम्बन्ध में जब हमने आन ड्यूटी उपस्थित चिकित्सक से प्रश्न किया तो उन्होंने जवाब दिया कि आन काल सर्जन डॉ ए. के.दुबे को फ़ोन शाम को ही किया जा चूका था मगर वो अभी तक नहीं आये। हम चकित्सा कैसे शुरू कर सकते थे। पारिवारिक जनो के हंगामे की सुचना पर कोतवाली प्रभारी सदल बल मौके पर आकर स्थिति को नियंत्रण में लिया। 
इसी बीच मरीज़ों का हाल चाल लेने आये सपा के नेता किशन दीक्षित भी सुचना पर अपने समर्थको के साथ मौके पर पहुच गए। मीडिया से बात करते हुवे किशन दीक्षित ने कहा कि “सपा सरकार द्वारा समस्त सुविधाये मुहैया कराने के बावजूद चिकित्सक अपने कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं करते है, अक्सर मंडलीय चिकित्सालय में इस प्रकार की लापरवाही की शिकायत आती रहती है। हम ऐसी घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते है और प्रशासन से आशा करते है कि प्रकरण में निष्पक्ष जांच करते हुवे दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करे ताकि भविष्य में फिर कोई अन्य गरीब ऐसे इलाज के आभाव में दम न तोड़े।”
प्रकरण में परिजनों द्वारा लिखित शिकायत पत्र थाना कोतवाली को चिकित्सको की लापरवाही के सम्बन्ध में दिया गया है। कोतवाली प्रभारी ने जांच कर कार्यवाही का आश्वासन परिजनों को दिया है। पुलिस ने लाश को कब्ज़े में लेकर पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया है।
परिजनों के आरोपो को अगर हम आधार मानते है तो प्रश्न यह खड़ा होता है कि अस्पताल प्रशासन कैसे किसी ऐसे लापरवाह डॉक्टर को आन काल की ड्यूटी दे सकता है जो फ़ोन होने के 5 घंटे तक नहीं आया। आनकाल डॉ ए.के.दुबे को शाम को ही फ़ोन कर सुचना देने की बात हम मीडिया कर्मियो से ड्यूटीरत चिकित्सक ने भी स्वीकार करते हुवे कहा है कि उनको फ़ोन किया गया मगर वो नहीं आये। एक फ़ोन करके शायद ड्यूटी पर मौजूद चिकित्सक अपनी ज़िम्मेदारी से बचते हूवे, गेंद आनकाल डॉक्टर के पाले में फेक रहे हो मगर जवाबदेही तो साहेब उनकी भी बनती है। जो भी हो घायल अब इस दुनिया में नहीं रही मगर सवालरह गए है, कि यदि समय से घायल को उचित चिकित्सा मिल गई होती तो शायद वो बच जाती। मौके पर मौजूद पुलिस कर्मियो ने भी बुदबुदाया कि लापरवाही ये डॉक्टर करते है और झेलना हमलोगो को पड़ता है।
साहेब मोक्ष की इस नगरी काशी में किरण रस्तोगी तो बेमौत मर चुकी है, मगर जिलाधिकारी महोदय कुछ कड़े कदम अभी और बाकि है, ताकि कोई और किरण रस्तोगी न मरे। मृतिका के घायल पाँव का फ़ोटो हमारे पास सुरक्षित है। फ़ोटो वीभत्स होने के कारण हम उसको समाचार के साथ नहीं लगा रहे है।

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