दिमागी बुखार के मरीज़ों में 85 प्रतिशत मरीज़ 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं।

नूर आलम वारसी।
●मच्छर के काटने तथा प्रदूषित पानी से हो सकता है दिमागी बुखार।

बहराइच : जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस (दिमागी बुखार)/एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) रोग मच्छर के काटने तथा दूषित पानी के उपयोग से हो सकता है। दिमागी बुखार के लक्षण संक्रमित मच्छर के काटने के 6 से 8 दिनों के बाद दिखाई देते हैं। रोग की प्रथम अवस्था में सरदर्द, बुखार, ठण्ड लगना, थकान, मितली एवं उलटी, द्वितीय में गले एवं शरीर की मास पेशियों में अकड़न, निर्जलीकरण, चेहरे पर कठोरता एवं असामान्य तरीके से चलना तथा तृतीय चरण में आवाज़ का भारी होना, धीरे-धीरे बात करना, बोलने में परेशानी एवं लकवा जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

दिमागी बुखार के मरीज़ को दाएं या बाएं करवट लिटाया जाना चाहिए तथा तेज़ बुखार की स्थिति में पानी से शरीर को पोछते रहना चाहिए।

दिमागी बुखार जैसी बीमारी से बचाव के उपायों की बात की जाय तो मच्छरदानी का उपयोग करने, प्रातः एवं सायकाल जब मच्छर अत्यधिक सक्रिय होते हैं, उस समय शरीर को पूरा ढक कर रखने, घर के खिड़की एवं दरवाज़ों को जालियों से बन्द रखने, आसपास पानी इकट्ठा न होने देने, नालियों की साफ-सफाई कर पानी के बहाव को न रूकने देने, तालाब, कुएं एवं कम गहरे हैण्डपम्प के पानी का उपयोग पीने व खाना बनाने में न किये जाने से दिमागी बुखार से बचा जा सकता है। खाना बनाने एवं पेयजल के लिए गहरे हैण्डपम्प (इण्डिया मार्का-2) के पानी का उपयोग करने से भी दूषित जल के उपयोग से बच कर दिमागी बुखार से बचा जा सकता है। इसके अलावा मच्छर के लार्वा खाने वाली गप्पी मछली (गम्बुसिगा) इत्यादि प्रजातियों की मछलियों का उपयोग तालाबों एवं कुएं में करके मच्छरों की तादाद पर नियंत्रण कर दिमागी बुखार के प्रसार को रोका जा सकता है। 
जल स्रोत एवं पीने के पानी का उचित रख-रखाव करने से इन्टेरोवायरल दिमागी बुखार से बचा जा सकता है। हैण्डपम्प के चारों ओर 100 से.मी. कंक्रीट का चूबतरा तथा कम से कम 10 मीटर गन्दे पानी का निकास सुनिश्चित करने के लिए नाली का निर्माण, हैण्ड-पम्प/जल स्रोत के चारों तरफ कम से कम 10 मीटर के क्षेत्र में प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों जैसे मल-मूत्र, जल जमाव, कपड़े या बर्तन धोना एवं जानवरों को पानी पिलाने इत्यादि पर प्रभावी अंकुश लगाकर इन्टेरोवायरल दिमागी बुखार से बचा जा सकता है।
शौचालय का उपयोग एवं उचित रख-रखाव, शौच के बाद एवं खाने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ धोने, पानी निकालने के लिए डण्डीदार लोटे का उपयोग करने से तथा पीने एवं खाना बनाने के लिए इण्डिया मार्का-2 हैण्डपम्प/गहरे जल स्रोत (दूसरे लेयर) के पानी का उपयोग करने से भी इन्टेरोवायरल दिमागी बुखार से बचा जा सकता है।
जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस (जे.ई.) विषाणु मच्छरों के काटने से सुअरों/पक्षियों से मानवों में फैलता है। दिमागी बुखार के 85 प्रतिशत मरीज़ 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। यदि बच्चे को बुखार के साथ शरीर में ऐंठन या चिड़चिड़ापन हो, व्यवहार बदल गया हो, अहकी-बहकी बातें कर रहा हो, शरीर पर सूजन के साथ सास चल रही हो, शरीर लुंज-पुंज हो या बच्चा बेहोश हो रहा हो तो ऐसा बच्चा, दिमागी बुखार से पीड़ित हो सकता है। 
दिमागी बुखार जैसे लक्षणों के उजागर होने पर सम्बन्धित मरीज़ को झोला छाप डाक्टरों के पास कदापि न ले जायें बल्कि उचित परामर्श एवं उपचार के लिए तत्काल गाव की आशा, आगनबाड़ी कार्यकत्री, एएनएम, प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र अथवा जिला चिकित्सालय से सम्पर्क करें। बेहोश होने व झटके आने की स्थिति में मरीज़ के मुह में कुछ भी न डालें। 
नूर आलम वारसी।।

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