स्पेशल स्टोरी: खाकी का अनकहा दर्द- रवि पाल और अरविन्द कुमार सिंह की कलम से।
★आखिर पब्लिक क्यों करती है पुलिस प्रशासन के साथ ऐसा व्यवहार।
★ कहीं-न-कहीं सफ़ेद-पोश धारियों के रौब तले छोटे पड़ ही जाते हैं कानून के लंबे हाथ।
पुलिस प्रशासन का एक एक पल कितना कीमती होता है ये शायद पब्लिक नहीं समझ पाती या फिर जान-बूझ कर ऐसा करती है। छोटी छोटी बातो को लेकर पब्लिक पुलिस को गुमराह करने का काम बखूबी करती है। जिसके दुष्परिणाम प्राप्त होते हैं। फिर उसका खामियाज़ा भी पुलिस को भुगतना पड़ता है।
कमाल है साहब, “करे कोई भरे कोई”
आज हम आपको बतायेंगें एक ऐसा सच जो आज के आज़ाद हिन्दुस्तान के प्रति काफी शर्मनाक है। आज़ाद हिन्दुस्तान को सही सलामत और सही देख-रेख के लिए हमारे आज़ाद हिन्द के शहीदों और राज नेताओं के द्वारा एक शासन का गठन किया गया। जिसके अंतर्गत एक बल दिया जिसका नाम रखा “पुलिस प्रशासन”। ये डिपार्टमेंट ऐसा डिपार्टमेंट है कि सबके ऊपर नजर बनाये रखता है। और ये ऐसा इसलिए करता है क्योंकि ऐसा करने के लिए इसको शासन से आदेश पारित हुआ है। आप ने एक कहावत सुनी होगी की एक घर चलाने में एक घर के मुखिया की क्या हालत होती है। तो ये बात पब्लिक और शासन को सोचना चाहिए की एक पुलिस डिपार्टमेंट आखिर क्या कर सकता है। फिर भी पुलिस अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती है। इसी कड़ी में कुछ पुलिस वालों की भूमिका इस कदर होती है कि अगर कहा जाये तो काफी शर्मनाक है। लेकिन कुछ ही मात्रा में। एक सर्वे के अनुसार पाया गया की किसी भी मामले में पब्लिक पुलिस प्रशासन को मूर्ख बनाने का काम खूब करती है। जब कोई मामला चोरी का हो या मारपीट का ऐसे मामले में जब झगड़ा या चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पब्लिक पुलिस के पास पहुंचती है तो प्रथम एप्लीकेशन में बाते वो लिखी जाती है जिसकी संभावना ही नहीं होती की ऐसा भी हो सकता है, चोरी के मामले में पब्लिक द्वारा झूठ पे झूठ बोलने का कार्य बखूबी किया जाता है। घटाना होती कुछ और है लेकिन प्रथम रिपोर्ट में लिखवाया जाता कुछ और है। जैसे- अगर चोरों द्वारा कुल रकम लगभग 10, 000 चुराई गई हुई हो तो पुलिस के सामने पीड़ित व्यक्ति द्वारा जो एप्लीकेशन दिया जाता है उसमे ये लिखा जाता है की 1,00000 रुपये की चोरी की गयी है साथ में तरह तरह के ज़ेवर चोरी की भी चर्चा की जाती है। अगर कोई एक महिला के साथ छेड़खानी हुई है या नहीं हुई है तो भी लिखा जाता है की मेरी बीबी, मेरी बहन, मेरे बेटी के साथ अभद्रता का व्यवहार करते हुए उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है। अब पुलिस के सामने इतने मामले बेबुनियाद पेश कर दीए जाते हैं। कि पुलिस समझ नहीं पाती की शुरुवात कहाँ से करे और कहाँ से न करे। यानि इस तरह के मामले का निपटारा करने में जो समय लगता है उतने ही समय में पुलिस लगभग 10 मामले को निपटा सकती है।
मामला अभी यहीं नहीं थमता है। हमारे कुछ सत्ताधारी नेता भी अपना रौब खूब जमाते है पुलिस प्रशासन के ऊपर, फोन पर पुलिस के ऊपर दबाव बनाने के साथ धमकीयाँ दी जाती है की ये हमारा मामला है हमारा इसमें इंटरेस्ट है। लेकिन ये कभी नहीं कहते की मामले की सही जांच कर सही रिपोर्ट दर्ज करो। यहाँ तक की कोई कोई नेता तो ट्रांसफर के साथ साथ निलंबन की भी धमकियां दे जाते है। जिस कारण इन बातों को सुनकर अपनी नौकरी और इज्जत की लज्जा का ख्याल रख पुलिस वो नहीं कर पाती जो सही है। ऐसे मामले को तो यूँ कहा जाये कि पुलिस का उत्पीड़न किया जा रहा है। जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस तरह के मामले को सुनने और समझने के बाद एक सवाल जरूर उठता है की क्या आज अपना हिन्दुस्तान आज़ाद है, या पहले था।
“पुलिस बल की इज्जत करे व सम्मान दें”