कलम के सिपाही तारिक़ आज़मी की कलम से – फिर क्यों नहीं देते आलिम गौहत्या के खिलाफ फतवा।
एक कलमकार अपनी कलम का इस्तिमाल केवल सच लिखने के लिए करता है। सच की राहे बड़ी मुश्किल होती है। लगातार मैं हर ईद पर कुछ न कुछ समाज का ज्वलंत मुद्दा उठाता रहा हु। विगत 3 वर्षो से मैंने इस प्रकार के लेख रोक रखा था। विवादों से किनारा कर शांत मन मष्तिष्क से सृष्टि की सुंदरता का आनंद लेने का प्रयास किया है। मगर क्या किया जाय साहेब सच लिखने का जो कीड़ा है वो इतने जल्दी ख़त्म कहा से होगा।
चलिए साहेब आज कुछ ऐसा लिखा जाय जो भले विवादित हो मगर सच हो। आज तक मैंने जो कुछ भी लिखा वो सिर्फ बतौर कलमकार ही लिखा है। आज जीवन में पहली बार एक “मुस्लिम कलमकार” के लिख रहा हु। मुझको पता है लेख को पढ़ कर कई मुस्लिमवादी मुझको “संघ का एजेंट” या फिर “हिंदूवादी संगठन का दलाल” करार दे दिया जायेगा। कुछ तो मेरे पीछे फतवा ही लेकर दौड़ पड़ेंगे, साहेब बिलकुल दौड़ा लीजिये। मैं भी ज़ोर ज़ोर से दौड़ूंगा। कुछ ऐसे भी होंगे जो “टाट बाहर” की धमकी भी दे डालेंगे। साहेब कर दीजिये “टाट बाहर” मैं भी वही “साफ़ दरी” बिछाकर बैठ जाऊंगा। मगर लिखूंगा वही जो होगा सही।
चलिये साहेब अब आते है मुद्दे की बात पर। विगत 2 वर्षो से अधिक होने को है एक सियासी पारे की तरह गर्म मुद्दा गौहत्या है। अक्सर इस पर कई नेता अपनी सियासी रोटिया सेकते दिखाई दे जाते है। हिन्दूवादी नेताओ के द्वारा अलग भड़काऊ बयान तो वही खुद को मुस्लिम हितैषी साबित करने वाले लोगो द्वारा अपना अलग भड़काऊ बयान। किसी को मुल्क के माहोल की फिक्र नहीं सभी अपनी अपनी रोटियों को तैयार करने में जुटे रहते है। खास तौर पर जब किसी प्रदेश का चुनाव नज़दीक हो तो यह मुद्दा और अधिक बल पकड़ लेता है।
मैं किसी मुद्दे के सम्बन्ध में बात ही नहीं करूँगा। न मुझको सियासत से मतलब है न वोट के किसी जुगाड़ से। क्योकि न मुझको कभी राजनीती करनी है न कभी करवानी है। मैं बस इस्लाम से मुताइल्लिक मसले पर ही बात करूँगा।
इस्लाम के नियम
इस्लाम में ऐसा हर काम “हराम” (प्रतिबंधित) किया गया है जिससे किसी के दिल को तकलीफ हो। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहिवसल्लम) ने तो यहाँ तक इरशाद फरमाया है कि जो दिल में खटके वह पाप है। इसी मसले के तहत इस्लाम में ब्याजखोरी हराम है। जिसका आलिमो ने उदहारण भी दिया है कि किसी को दिए क़र्ज़ की वापसी में अगर ब्याज भी जुड़ा हो तो ब्याज का अधिक देने में उस शख्स का दिल दुखेगा। यानि इस्लाम में दिल को नहीं दुखाने की हिदायत है।
अब मुद्दे की बात पर आते है। गाय के साथ जब किसी अन्य मज़हब की श्रद्धा और अक़ीदा जुड़ा है और उसके करने से उसके दिल को तकलीफ पहुचती है तो फिर वो काम इस्लाम में जायज़ कैसे हो गया। एक और आपको उदहारण देता हु। मान ले कोई इंसान बहुत ताकतवर है, उसके खिलाफ कोई खड़ा नहीं हो सकता है। उसका मकान किसी मस्जिद के ठीक सामने है और वो जब जब अज़ान और नमाज़ का टाइम होता है वो मस्जिद के सामने बैठ कर अपनी ज़मींन पर शराब पीता है और खुद को ही गलिया ज़ोर ज़ोर से देता है। कानून के मद्देनज़र वो कोई अपराध नही कर रहा है फिर आप क्यों कानून से उम्मीद करते हो कि वो उसको ऐसा करने से रोके। जबकि वो जो कर रहा है वो आपके मज़हब में प्रतिबंधित है न कि उसके मज़हब में। वो क्यों आपके आस्था का सम्मान करे।
ठीक उसी प्रकार जब गौहत्या या गोकशी से किसी और का दिल दुःख रहा है, उसके धार्मिक मान्यता के हिसाब से ये गलत है और इस कृत्य से उसका दिल दुखता है तो फिर किस तरह और किस मसले से इस्लाम में जायज़ हुवा। ऐसा नहीं है कि अगर गोमांस भक्षण आप नहीं करोगे तो आप इस्लाम से ख़ारिज हो जाओगे या फिर आपको गुनाह पड़ेगा। फिर आखिर क्यों किसी के आस्था पर हम चोट पहुचाये। क्या आवश्यकता है कि हम किसी की आस्था से खिलवाड़ करे। इस्लाम तो यहाँ तक कहता है कि किसी के मज़हब को बुरा न कहो। फिर किस धार्मिक नियमो के तहत हम गौमास भक्षण पर इतने बहस का मौक़ा किसी को देते है।
जो भी हो इस मुद्दे पर इस्लाम के चिंतको को विचार कर अपना फैसला करना होगा, क्योकि मुल्क के अमन के लिए दुआ करने वाले हाथ आपके मुल्क के अमन में मददगार भी साबित हो। साथ ही देश की सरकार को ऐसे मुद्दों पर बेमतलब की होने वाली बयानबाजियों को भी रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए साथ ही इस मुद्दे पर अफवाह फैलाने वालो की भी खबर लेनी होगी। इसके अतिरिक्त एक अंग्रेजी शब्द “बीफ पार्टी” की सही परिभाषा भी तैयार करनी चाहिए। क्योकि अंग्रेजी शब्दकोष में इसके कई मायने आते है। वही आलिमो को भी गौहत्या के खिलाफ एक फतवा जारी करना चाहिए जिससे स्थिति साफ़ हो सके कि गौहत्यारे इस्लाम को मानने वाले नहीं है।
Aazmi sahab agar cow khane Se fitna Ka darr hai to our is wajah Se aap ise haram kah rahe hai to sab Se pahle aap import export band karwane ki jurrat kare q ki Achi baat nhi ki India Ka maal gulf khaye to koi dikkat nhi aur Indian khaye to aap ko takleef ho
कारी साहेब, हमारा मकसद सिर्फ उन मुद्दों को ख़त्म करना है जिसका सहारा लेकर लोग एक कौम को निशाना बनाते है। बड़ा आसान हो गया है किसी को इस मुद्दे पर टारगेट करना।
कारी साहेब इक शुरुवात आप कर सकते है।