रक्षाबंधन पर नीलोफर बानो का विशेष लेख- रेशमी कच्चे धागे का मज़बूत बंधन…..
भाई बहन में कितनी भी खट्टी मीठी नोकझोक हो,छोटे मोटे झगड़े हो पर
एक रेशमी कच्चा धागा जो भाई की कलाई पर पड़ते ही भाई बहन के रिश्ते को मज़बूत करता है,जीवन भर के एक भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है ये त्यौहार है “रक्षाबंधन”। हर साल हमारे भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है,रक्षाबंधन के त्यौहार पर एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और मुँह मीठा कराती है और एक भाई अपनी बहन को आशीर्वाद और प्यार देते हुये एक तोहफा देता है। भारत में यह प्रथा सदियो से चली आ रही है।
इतिहास में झाँका जाये तो युद्ध के दौरान जब कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था तब कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था।इसे देखकर द्रोपदी बहुत दुःखी हुई द्रोपदी से रहा न गया और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा,जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार लिया। वर्षो के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए और भरी सभी में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा तब कृष्ण ने उनकी लाज बचाई थी।
इतिहास में अगर देखा जाये तो इस त्यौहार की शुरुआत की उत्पत्ति छः हज़ार साल पहले बतायी गयी है। रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। कुछ और इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाये तो रक्षाबंधन की शुरुआत का पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ का है। वही अगर इतिहास के पन्नो की धूल को हटा कर देखे तो मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमो के बीच संघर्ष चल रहा था।रानी कर्णावती जो की चित्तोड़ के राजा की विधवा थी,गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उनको बहन स्वीकार किया था।
कुछ और पन्ने खोलकर देखते है।कहा जाता है की अलेक्जेंडर जो की हमेशा विजयी हुआ करता था,भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित था।जिससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गयी।उसने रक्षाबंधन के त्यौहार के बारे में सुना था,तब उसने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी तब जाकर युद्ध की स्तिथि समाप्त हुई क्यों की राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को अपनी बहन स्वीकार लिया था।
भाई बहन की रिश्तों में मिठास घोल रहा रक्षाबंधन का त्यौहार सदियो से चला आ रहा है। जो बहने बाबुल का घर छोड़ परायी हो जाती है तो भाई उनके घर जाकर अपनी कलाई राखी से सजाता है,और कुछ बहने मायके आकर अपनी भाई की कलाई राखी से सजाती है। दूर दराज़ में बसे भाई रक्षाबंधन पर अपनी बहन की राखी का बेसब्री से इंतज़ार करते है और कुछ मुँह बोली बहन और बुआ भाइयो और भतीजो की कलाई पर राखी बांधती है जो जीवन भर के लिए उनकी रक्षा करने का साक्ष्य होता है।
बहुत खूब