चकेरी पुलिस से एक दुखियारी माँ, एक बेबस मासूम बहन की सदा है – निखिल तुम कहाँ हो। …….

  • कानपुर पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाती एक दुःख भरी दास्तान 
  • क्षेत्राधिकारी ने अदालत में मुकदमा होने की बात कह कर झाड़ा अपना पल्ला
  • क्या पुलिस के लिए आवश्यक नहीं है यह जानना कि कहा है निखिल 
इब्ने हसन जैदी 
आज रक्षा बंधन है. हर बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बंधा कर उससे अपने रक्षा का वरदान मांगती है. मगर एक अभागन बहन कानपुर में अपने भाई के लिए आंसू बहा रही है. उस भाई के लिए जिसको उसने कंभी देखा भी नहीं है. जब उसका भाई गायब किया गया तब तो वह हुई भी नहीं थी.कानपुर के शिव कटरा में रहने वाले रमेश का ४ वर्ष के  बेटे  निखिल को गायब हुए पुरे 7 वर्ष हो चुके है लेकिन अभी तक निखिल का कुछ भी पता नहीं चला. निखिल जिसको उसकी मासूम बहन ने देखा भी नहीं है मगर उसकी याद में आंसू बहा रही है. निखिल जो अपने बाप का बड़ा होकर बुढ़ापे का सहारा बनता. निखिल जो अपनी माँ के जिगर का टुकड़ा था. निखिल जो अपनी माँ का अरमान था. निखिल जो अपने बाप का वारिस था. एक निखिल ही गायब नहीं हुवा है बल्कि कई अरमान धुल गए है. एक निखिल ही गायब न हुवा बल्कि कई चेहरों की मुस्कान छीन ली गई है. एक निखिल के गायब होने से कई आंखे वीरान हो गई है. निखिल कहा है ये तो हमको भी नहीं पता मगर वो गायब कैसे हुवा ये आपको बताते है. जिस दिल में भी मानवता और इंसानियत होगी इस दास्तान को पढ़ कर उसका दिल भी पसीज जायेगा. मगर नहीं पसीजा तो कानपुर पुलिस का पत्थर दिल.

यूँ तो पिता का ह्रदय सशक्त होता पर 4 वर्षीय निखिल के पिता रमेश से जैसे ही निखिल की बात की जाती है इस मजबूर पिता की आँखों से आंसू की धारा बरबस ही निकल पड़ती है, अपने बहते हुए आंसू को छिपाते हये रमेश कहते है कि अगर पुलिस चाहती तो निखिल का पता जरूर लगा लेती वही निखिल की माँ मधु की आंखे अपने जिगर के टुकड़े की एक झलक पाने की चाह में आज भी राह तक रही है निखिल का नाम लेते ही वो फफक-फफक कर रो पड़ती है, निखिल के कपडे, निखिल का स्कुल का बैग आज भी निखिल का उस घर में होने का अहसाहस करवाता है. जिस घर में मासूम निखिल की शरारते गूंजनी चाहिए वहाँ आज मातम का माहौल है जिस घर में बच्चे के जन्मदिन की ख़ुशी माँ और पिता के चेहरे पर होना चहिये वही निखिल की नामौजूदगी से इस घर के केवल तीन बचे सदस्यों के आँखों में आंसू भर देता है. जहाँ एक तरफ निखिल के माता पिता के बुरे हाल है वही निखिल की बहन वैष्णवी जिसने पैदा होने से अभी तक अपने भाई का चेहरा नहीं देखा, इस मासूम ने निखिल के लिए पूरे दिन से खाने का एक निवाला तक नहीं खाया और जब ये बात वैष्णवी से पूछा गया तो इस 7 वर्ष की बच्ची का अपने भाई के प्रति प्यार झलक आया इस मासुम बच्ची का विलाप सुन कर किसी का भी दिल पिघल सकता है, मगर नहीं पिघल रहा है तो कानपुर पुलिस का दिल. वैष्णवी के साथ ही उसके पिता और माँ ने भी आज पुरे दिन का उपवास किया. ताकि निखिल जहाँ भी हो सुरक्षित रहे.
आइये हम आपको मासूम  निखिल के बारे में बताते है  
उम्र 4 वर्ष घर वालो के साथ ही आस-पड़ोस का भी चहेता था निखिल, दिनांक  9-8-2009 को  रमेश का नौकर संदीप ने निखिल को घर के बाहर से अपरहण कर लिया था और घर वालो से 1 लाख की माँग की, जब अपराधी  फिरौती की रकम लेने आये तभी पुलिस ने उनको पकड़ लिया. पकडे गए अपराधियो में संदीप ने बताया की उसने निखिल का अपहरण कर तत्कालीन सिपाही हनुमान सिंह, मंजू और दरोगा उत्तमधान पटेल को सौंप दिया था, मुकदमा लिखा गया कुछ अपराधियो को अदालत ने जेल भेज दिया, इतना कर के सम्बंधित थाना खुद के गुड वर्क पर खुद की पीठ थपथपा रहा है. इस प्रकरण में अदालत में कुछ पर मुकदमा चल भी रहा है और जिनमे से एक व्यक्ति की जमानत तक हो गई है फिर भी आज तक मासूम निखिल का कोई अता पता नहीं है. पुलिस अपने गुडवर्क को दर्शा रही है मगर उसको आज भी यह नहीं पता है कि मासूम निखिल का क्या हुआ, कहा है वह मासूम. इसकी फिक्र पुलिस करेगी भी क्यों, निखिल किसी पुलिस वाले का बच्चा था क्या?  नहीं….. वो तो एक आम भारतीय नागरिक का बेटा था. एक आम भारतीय, बेहद कमज़ोर, लाचार, बेबस, भारतीय नागरिक. वह इस पुलिसिया कार्यवाही को तो समझ भी नहीं पाया ढंग से की आखिर हुवा क्या?
घटना को  7 वर्ष पुरे हो गये है, माता पिता और यहाँ तक की 7 साल की मासूम वैष्णवी अपने भाई निखिल के लिया बिलख -बिलख कर रो रही है हाथो में राखी लिए वो दरवाज़े को निहारती है कि उसका भाई अभी आएगा राखी बंधवाने को लेकिन जिले की संवेदनहीन हो चुकी पुलिस को ये भी नहीं पता की निखिल जिन्दा भी है या नहीं ? 
इस प्रकरण में हमने  उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आशुतोष पाण्डेय से प्रतिक्रिया जानना चाहा तो उन्होंने पूरी पुलिसिया कार्यवाही को ही प्रश्नों के घेरे में खड़ा करते हुवे कहा कि “सरसरी तौर पर देखने में तो यह प्रकरण पुलिस कि कार्यशैली को प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर रही है. कही न कही से पुलिस ने अपने विभागीय कर्मियों को बचाने के लिए बच्चे का कोई पता नहीं लगाया क्योकि बच्चे अगर जिंदा मिल जाता है तो वह आरोपियों की शिनाख्त कर सकता है और यदि बच्चा जिंदा नहीं है तो उसकी हत्या का एक और अपराध साथी कर्मियों पर लग जायेगा
वरिष्ठ अधिवक्ता और आईरा के उपाध्यक्ष पुनीत निगम ने प्रकरण में कहाकि ” बिना केस डायरी देखे कुछ कहना इस प्रकरण में थोडा जल्दबाजी होगी,मगर प्रथम दृष्टयतः केस में जांच अधिकारी की नीयत और निष्पक्षता संदेहास्पद है. पीड़ित ने जिस बात की पुलिस से शिकायत पंजीकृत करवाया वह था निखिल का गायब होना. निखिल तो मिला नहीं जबकि आरोपी सभी पुलिस की पकड़ में है,भाई निखिल तो किसी भी तरह मिलना चाहिए था न चाहे जिंदा या मुर्दा किसी भी तरह. इसको देख कर लगता है कि जाँच अधिकारी ने निजी स्वार्थ, या भी निजी लाभ के तहत शायद केस कमज़ोर कर दिया है.”
जो भी हो एक आम नागरिक का बेटा निखिल कहा है इसका जवाब किसी के पास नहीं है और न ही कानपुर पुलिस के पास इसके लिए फुर्सत ही है. भले कोई दुखियारी माँ रो रो कर अपनी जान दे दे,या फिर एक बहन अपने आँखों में आंसू लिए पूरी ज़िन्दगी रोटी रहे मगर कानपुर पुलिस पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है.

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