जब टीपू पेड़ पर चढते थे तो चाचा शिवपाल उतारने के लिए देते थे मिठाई

टीपू को पेड़ पर चढ़ने में काफी मजा आता था। जब उन्हें पेड़ से उतरने का कहा जाता था तो वह घर वालों से हमेशा मिठाई की मांग करते थे। डर के मारे परिवार के लोग पास की दुकान से मिठाई खरीदकर ला देते ताकि टीपू पेड़ से उतर जाएं।” टीपू यानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मिठाई देने वाले कोई और नहीं, बल्कि उनके चाचा शिवपाल यादव थे। हाल में सपा में आपसी खींचतान के बाद अखिलेश से जुड़ी बचपन की इन यादों को शिवपाल सिंह ने बड़े चाव से लोगों को बताया। इटावा के चोबुर्जी इलाके में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव के घर के पास एक देवकीनंदन पार्क है। इसी पार्क में एक पेड़ है, जिस पर अखिलेश बचपन में उस समय चढ़ा करते थे।

जब टीपू चलना सीख रहे थे तब मुलायम सिंह बन गए थे विधायक 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जिदंगी पर प्रसिद्ध किताब ” अखिलेश यादव-बदलाव की लहर” लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरान ने अपनी किताब में विस्तार से अखिलेश यादव के बचपन से लेकर जवानी की यादों का जिक्र किया है। अखिलेश यादव जब पैदा हुए तो उनके पिता मुलायम सिंह विधाधक बन चुके थे। एक तरफ सैफई गांव में रह रहा टीपू बड़ा हो रहा था तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह का कद भी बढ़ रहा था। वह विधायक से मंत्री बन चुके थे। ऐेसे में जब टीपू चलना शुरू किया तो वह अपने दादा सुघर सिंह और चाचाओं के साथ खेत तक जाने लगा। घर में मां मालती देवी से लेकर दादी मुरती देवी, चाचियां और बुआ टीपू का बहुत ज्यादा ख्याल रखती क्योंकि टीपू के पिता राजनीति में व्यसत हो चुके थे और उनके पास अपने बेटे को समय देने के लिए फुरसत नहीं होती थी।
चाचा शिवपाल साइकिल से ले जाते थे स्कूल 

इसी बीच टीपू कुछ दिन गांव के स्कूल में गये। उसके बाद नियमित रूप से पढ़ाई के लिए सैफई गांव से 12  किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय इटावा में भेज दिया गया। जहां पर  उनके दो चाचा राजपाल यादव और शिवपाल यादव वहां रहकर पढ़ाई कर रहे थे। इटावा में हर सुबह अखिलेश यादव को उनके चाचा शिवपाल साइकिल से स्कूल ले जाते और वापस स्कूल से ले आते। तब शायद किसी को नहीं पता था कि आने वाले समय में यही साइकिल समाजवादी  पार्टी का चुनाव चिन्ह बनेगी और इसकी सवारी करते हुए अखिलेश देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएंगे।
कैसे बने टीपू अखिलेश 

चार साल के टीपू जब पढ़ाई के लिए इटावा आए तो पिता मुलायम सिंह ने अपने करीबी परिवारिक दोस्त और वकील एसएन तिवारी से कहा कि वह टीपू का दाखिला प्रतिष्ठित सेंट मैरी स्कूल में करा दें। वह स्कूल सीबीएसई से संबद्ध् था। वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरान की किताब  “अखिलेश यादव-बदलाव की लहर” में खुद अखिलेश यादव ने स्वीकार किया है कि जब वह सेंट मैरी स्कूल पहुंचे तो शिक्षिका ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, टीपू। इस पर शिक्षिका ने कहा कि ऐसा नाम स्कूल में नहीं लिखा जा सकता। तुम्हारा पूरा नाम क्या है? ऐसे में टीपू ने कहा कि उनका यही नाम है। इसके बाद एसएन तिवारी ने इस टीपू का नाम अखिलेश रखा और पूछा, क्या यह नाम उसे पसंद है। उस समय चार साल की उम्र वाले टीपू ने हां में सिर हिला दिया। फिर तिवारी ने मुलायम सिंह के चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव को फोन करके बताया कि टीपू की पसंद से उसका नाम अखिलेश लिखवा दिया है। परिवार ने खुशी-खुशी इस नाम को स्वीकार किया और इस तरह टीपू, अखिलेश बन गये। अखिलेश यादव ने इस किताब में इस घटना को याद करते हुए बताया है कि मेरी मां और पिता जी ने मेरा नामकरण ही नहीं किया। उनके नामकरण संस्कार का कोई समारोह नहीं हुआ, जैसा हिन्दू परिवारों में पंरपरा है। अखिलेश यादव के नामकरण के लिए धर्मग्रंथों से कोई अक्षर नहीं चुना गया। कोई समकालीन नाम नहीं खंगाला और न ही अंक विज्ञान का कोई सहारा लिया गया।

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