नहीं रहे जयपुर के 106 वर्षीय शहर मुफ़्ती
अब्दुल रज्जाक थोई
जयपुर – जयपुर शहर मुफ़्ती अहमद हसन 25 नवम्बर शुक्रवार सुबह 10 बजे अपने निवास स्थान चार दरवाजा गंगापोल पर आखरी साँस ली, और दुनिया को अलविदा कहा नमाजे जनाज़ा बाद नमाज़ जुमा हुई जिसमे काफी संख्या में लोगो ने शिरकत की. नमाजे जनाजा मस्जिदे बहलोल खाँ नवाब का चोराहा पर अदा की गई.
पैदाईश सन्- 1914 में टोंक रियासत में हुई थी। वहीं से इन्होंने तालीम हासिल की, शुरुआत से ही को दीनी इल्म में खासी दिलचस्पी थी। टोंक में ही इन्होंने कलाम पाक हिफ्ज़ किया और कारी (कुरआन-ए-पाक को खास अच्छे अन्दाज़ में पढऩा) की डिग्री हासिल की। मुफ्ती साहब को खत्तात निगारी (खूबसूरत अंदाज में लिखावट) में भी महारत हासिल है। उर्दू के जाने-माने खत्तात खलीक टोंकी भी मुफ्ती साहब के शार्गिद रह चुके हैं। मुफ्ती साहब हदीस और फि$का (मुस्लिम कानून) के स्पेशलिस्ट के तौर दुनियाभर में जाने जाते हैं। उस दौर में चूंकि टोंक रियासत एक मुस्लिम रियासत थी इसलिए वहां शरीयत (मुस्लिम कानून) लागू थी, इसी शरिया अदालत में मुफ्ती साहब काज़ी (जज) के ओहदे पर रहे इस शरिया अदालत को (सज़ा-ए-मौत) तक देने के अधिकार थे। अत: यह शरिया अदालत कोई मामूली न होकर बहुत आला हैसियत की अदालत थी। वक्त के साथ-साथ जब अंग्रेजी हुकूमत का असर बढ़ऩे लगा तो मुसलमानों से जुड़े 54 तरह के मामले इसी शरिया अदालत को सौंपे जाते रहे। यहां भी मुफ्ती अहमद हसन साहब के पास टोंक रियासत और हिन्दुस्तान के अलावा दूसरे मुल्कों से भी शरिया मसाइल (समस्या) के खत आया करते थे और मुफ्ती साहब इनका जवाब भेजा करते थे। सन् 1949 में टोंक रियासत खत्म हुई और 1950 में मुफ्ती साहब जयपुर आ गए और सरकारी तौर पर मुसलमानों से जुड़े न्याय के मामलों में मदद करने लगे। फिर जयपुर के मुफ्ती के ओहदे पर मुकर्रर हो गए। यहां रामगंज बाजार में इन्होंने अपने उस्ताद इरफान साहब के नाम पर इरफानी दवाखाने की शुरुआत की। यहां हर किस्म के जटिल से जटिल असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। आज भी आम लोगों के अलावा विधायक, सांसद और संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग इलाज के लिए आया करते हैं।
शहर मुफ्ती अहमद हसन साहब के कारनामों पर उनके सहायक मुफ्ती मोहम्मद ज़ाकिर ने उनकी जिन्दगी इल्म और फन पर एक किताब लिखी है जिसका नाम फतावा इल्म व हिकमत है। इस किताब में मुफ्ती अहमद हसन साहब के पास आए शुरुआत से लेकर अब तक के अहम मसलों को शामिल किया गया है। इस किताब की तीन जिल्द निकल चुकी है और आगे की जिल्दों पर भी मुफ्ती मोहम्मद ज़ाकिर काम कर रहे हैं। ये किताब इस बात को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है कि मुस्लिम उलेमाओं के साथ आम लोग भी मुस्लिम मसले मसाइलों से रूबरू हो सकें।उम्र के इस पड़ाव में मुफ्ती अहमद का काम सालों से उनके सहायक के तौर पर साथ रहे मुफ्ती मोहम्मद ज़ाकिर देख रहे हैं और अब मुफ्ती अहमद हसन की कमजोर सेहत की वजह से उनकी जगह ईदेन की नमाज़ में मुफ्ती अहमद हसन साहब के निर्देशानुसार उनकी जगह बयान करते हैं। दूसरे कई मौकों पर मुफ्ती अहमद हसन साहब मुफ्ती मोहम्मद ज़ाकिर को अपने नायब के तौर पर पेश करते हैं।