संजय ठाकुर की मोरबतिया – नोट का अईसन बा चोट कि खेतवा परती रह जाइ ए साहब, ज पईसवा ना मिली
संजय ठाकुर/सूरजपुर (मऊ)
हमारे प्रदेश की एक कहावत हमारे काका कहते रहे है अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, ता भैया हम भी बस बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है कि हम साफ़ साफ़ कहते है और खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है
प्रधानमंत्री द्वारा नोट बंदी को बारह दिन गुजर जाने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्र के बैंकों में भीड़ कम नहीं हो रही। लोगों को इच्छानुसार बैंक से पैसा न मिल पाना सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है।शनिवार को लोगो को यूनियन बैंक की शाखा से 1000 हजार रुपये दिए गए थे।रविवार बन्दी के बाद सोमवार को बैंक ने 2000 रुपये देने का व्यवस्था किया वही बैक से पैसा निकालने पहुंच रहे ग्रामीणों ने बैंक कर्मचारियों से अपनी मजबूरी बताकर धनराशि बढ़ाने की मांग किये।कुछ बुजुर्गो ने कहा की खेतवा परती रह जाई ए साहेब जब पइसवा ना मिली त। वही महिलाओ ने भी अपनी मजबूरी कर्मचारियों को सुनाई। कि जब पईसवा न देब त हे साहेब बचवा का खइहेष अपना पैसा निकालने के लिए घंटों रोड पर लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है।
साहेब देखे हम तो कहा रहा की हम खाली बतियाते है. उ काका कहते रहे न कि बतिया है कर्तुतिया नाही. मतलब बात है खाली काम नहीं है. तो भैया हम तो बतिया चुके अब का करे बतियाने के सिवा कुछो करहु न सकते है. अब बतियाना बंद करते है.