मोरीबतिया – हाल-ए-हनुमान फाटक पुलिस चौकी, तो क्या गिरती पुलिस चौकी नहीं दिखाई दे रही किसी को।
(तारिक आज़मी की कलम से)
वाराणसी. हमारे प्रदेश की एक कहावत हमारे काका कहते रहे है अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, ता भैया हम भी बस बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है कि हम साफ़ साफ़ कहते है और खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है
तो चलो भैया बतियाना शुरू करते है. जब से इ मोबाइल चैटर बक्सा बना है तब से बहुत कुछ बदल गया है, अब सच का है और कौन कापी पेस्ट है इ ता समझ से बाहर रहता है. अब चैटर बक्सा है तो चपड चपड करेगा ही. आज ही देखा. अब देख लिया तो का बताया जाय बतियाने से का कोई रोक सकता है. लोकतंत्र है बाबु जी सबको अपनी अपनी बात कहने का अधिकार है तो हमहू को है, हम तो बस गुरु जी से सीखा कि बबुआ इ पत्रकारिता में एक शब्द और समाहित है उ होता है समाज सेवा मगर इ शब्द दिखाना नहीं है बस कर देना है. अब कलम से समाज सेवा करना है तो कलम से बतियाना पड़ेगा और कलम जब बोले तो सच बोल पड़े इसका ध्यान चपक के रखना होता है.
गुरु पुलिस का गुड वर्क दिखाना हमारे नियमो से परे रहा है. गुड वर्क नहीं मगर अगर कही बैड वर्क मिल जाय तो चपक के दिखाना. मगर आज अंतरात्मा ने आत्मा से उधारी की अनुमति मांगी और फिर लिखने को सोचा. अभी कल ही सोच रहा था कि गुरु इ जो पुलिस कर्मी होते है कही न कही से हमारी सुरक्षा के लिए होते है. अब उ सुरक्षा के लिए है तो सवाल इ है कि भैया उ भी हमारे जैसे इन्सान है. उनके भी परिवार है उनका भी घर दुआर होगा.गुरु सच बताऊ यही सोच कर आज इ बतिया बतियाने का मौका मिल गया अब बतकुच्चन करना है तो गुरु कुछ इसी मुद्दे पर कर दिया जाय.
तो साहेब बतिया आज कुछ ऐसी है कि कोई हमसे कहा कि एक चौकी है पुलिस की तनिक उसकी दशा देखो कैसे कैसे का है. तो घरवा के आस पास का चौकी है पहुच गए देखने. चौकी है आदमपुर थाना की हनुमान फाटक पुलिस चौकी. कभी एक समय रहा था कि यह इलाका संवेदनशील हुआ करता था मगर जब से साक्षरता का स्तर बढ़ा है तब से गुरु इस इलाके में संवेदनशीलता भी खत्म के कगार पर है. अंग्रेजो के ज़माने की ईट से बनी इस चौकी पर छत के जगह पुराने ज़माने का छप्पर पढ़ा है. फोटुवा देख ले आप लोग और यही नहीं खपरईला की बनी इस चौकी के अन्दर से ऊपर रखी धरन लकड़ी तक सड गई है जो अक्सर नीचे गिर कर अपने सड़े होने का प्रमाणपत्र देती है.स्थिति यह है कि इस भवन को जर्जर हुवे लम्बा अरसा बीत चूका है मगर आज तक विभाग को इसकी मरम्मत की चिंता नहीं हुई है और का बताये साहेब मरम्मत के नाम पर चुना पानी भी करवाने के लिए विभाग कई बार सोचता है. इस चौकी के अन्दर जाने पर अहसास हुआ की हमारी रक्षा के सौगंध लेकर इसके नीचे बैठने वाले को खुद अपनी रक्षा हेतु भगवान को याद करना होता होगा. कही नीचे बैठे है और ऊपर से ऊपर वाला नीचे आये तो सीधे ऊपर नहीं तो चोट चपाट चौचक लगेगी. मगर का करे हम लोग तो भैया इ काहे देखेगे, हम लोगन को इ जरुर दिखेगा कि चौकी पर केहू है कि नाही गुरु न हो ता लप से लीप दा मालिक मौका चौचक रही.
अभी 2 माह हुवे है. इसी इलाके में सीवर का पानी भर गया था. पानी भी एक दो फुट नहीं बल्कि कमर तक पानी था. इंसान को जीने का सहारा नहीं मिल रहा था. कुल लगभग आधा महिना चौकी के अन्दर लगभग 4 फुट पानी भरा हुआ था. मगर उच्च स्तर पर बैठे नगर निगम के अधिकारियो और कर्मचारियों को इसकी चिंता नहीं थी की एक घनी आबादी सीवर के पानी के कारण घरो में कैद है. याद है मुझको किसने कितना प्रयास किया था. ये भी याद है किसने कितना लिखा था.इसी इलाके की पुलिस ने अपना प्रयास किया था और नगर निगम के कर्मियों ने पानी निकालने के लिए 15 दिन बाद प्रयास किया पानी निकला और फिर ताजिया पास हुई फिर का फिर बारिश और फिर पानी. फिर प्रयास और फिर निकला पानी. ये तो हलकी फुलकी कहानी थी. मगर असली कहानी तो तब की है जब पानी निकल जाने के बाद भी इलाके में दुर्गन्ध ने अपना वास लम्बे समय तक कर रखा था. इस सीवर के पानी की स्थिति की भयावहता का अंदाज़ा इसी से ;लगा सकते है कि आदमपुर थाना परिसर में लगभग डेढ़ फुट पानी था. मगर साहेब हम न लिख पाए कुछो इस सब समस्या पर काहे ….. काहे की गुरु लोग पसंद न करेगे तो कौन पढ़ेगा और जब नहीं पढ़ेगा तो फिर कैसे बढेगा इन्सान. खैर साहेब इस चौकी की जर्जरता के लिए जब हमने जानकारी हासिल करना चाहा तो सूत्रों से ज्ञात हुआ कि मरम्मत की फाइल बनकर कई बार जा चुकी है मगर अभी वो कहा अटकी है नहीं पता. बड़ा विचित्र लगता है ये सोच कर कि जो हमारी सुरक्षा का दंभ भरते है इस चौकी में उनकी सुरक्षा कौन करता होगा.
साहेब देखे हम तो कहा रहा की हम खाली बतियाते है. उ काका कहते रहे न कि बतिया है कर्तुतिया नाही. मतलब बात है खाली काम नहीं है. तो भैया हम तो बतिया चुके अब का करे बतियाने के सिवा कुछो करहु न सकते है.हा अगर डीजीपी साहेब या आई जी साहेब चाहे ता जरुर कुछ न कुछ कर सकते है अब बतियाना बंद करते है. और अगली कड़ी में बतायेगे कि का हाल है कुछ और चौकी का तब तक भैया विचार किया जा सकता है.