बहुत कुछ हो सकता है लेकिन सब कुछ तो नहीं है पैसा

(इमरान सागर)
सत्य की राह कांटो से भरी है एैसा कहा जाता है परन्तु यह सत्य नही! राहे कैसी भी हो लेकिन वह तभी तक मुश्किल लगती जब तक उन पर चला नही जाता है! इंसान की फितरत तो अक्सर शैतान से दोस्ती की रही हैं तो फिर सत्य की राह पर चलना गंवारा कैसे कर सकता है!
सत्य की ही राह पर चलना आरंभ किया जाता तो आज कुछ भी मुश्किल नही लगता लेकिन यह भी गलत नही कि सत्य की राह पर चलते लिए बेईमानी से आर्कषित हुए बिना नही रह सकता! तो पहले अपने आर्कषण पर कन्ट्रोल जरूरी है, अपनी आकांक्षाओं पर कन्ट्रोल जरूरी है, अपनी भावनाओं पर कन्ट्रोल जरूरी है! सत्य की राह चलने के लिए उक्त तमाम चीज़ो पर कन्ट्रोल रखने वाला व्यक्ति ही सदा मुस्कराते हुए नज़र आता है अन्यथा सबको रोते ही देखा जाता है! यह कहना कितना आसान है कि पैसा ही सब कुछ है लेकिन सत्य यह है कि पैसा मात्र जरूरते पूरी करने भर को होता है और जब पैसा जरूरत बनने लगता है तो जरूरते भी अकास्मात बढ़नी आरंभ हो जाती हैं जो बढ़ती ही रहती है! यकीनन पैसा बहुत कुछ तो हो सकता होगा लेकिन सब कुछ नही! यदि पैसा ही सब कुछ हो जाता तो मौत पर भी इंसान का बस चलता परन्तु पूरी दुनिया में पैसे से मौत का खरीदार नज़र नही आता! 
देश के प्रधान मंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी का देश में नोट बदलाव कानून हिटलरी कानून हो सकता है जिसने देश के लगभग 80 प्रतिशत गरीब वोट के आगे तमाम मुश्किले खड़ी करदी हैं लेकिन यह भी गलत नही कि इसी पैसे का प्रयोग कर हमारे देश में मात्र अपना बार्चस्व बनाएे रखने के लिए विभिन्न प्रकार के दंगा, बिस्फोट कर आतंक  ने लाखो की सख्या में जीवन हलाक कर दिए, बड़े नोट बन्द कर बदलाव के बाद देश का ही  नही अपितु दुश्मन देश का आतंक भी अपाहिज हो कर रह गया है! हांलाकि यह बहुत पहले होना चाहिए था लेकिन जब शैतान द्वारा आर्कषित हुएे रास्तो का चयन कर लिया गया तो फिर आज का यह रास्ता थोड़ा तो मुश्किल लग ही सकता है उन मुश्किल रास्तो से जिन पर चल कर देश भ्रष्टता की ओर कदम बढ़ा कर सैकड़ो कभी न हल होने वाली मुश्किले पैदा कर रहा था! समय आ रहा है कि बदलाव का, देश को भ्रष्टनीति से बाहर निकाल कर मजबूत बनाने का हाँ यह अलग बात है कि इस सफाई अभियान में गन्दी पड़ी नालियों जमा गन्द निकाल कर बाहर डाले जाने पर बदबू उठना लाज़िम है! 
देश के सारे जाम पड़े सिस्टम के बदलाव की मांग करना तो बड़ा आसान लग रहा था जिन्हे उसकी हल्की सी शुरूआत भर से पसीना आने लगा, सोचने की बात है कि अंजाम क्या होगा! हाँ यह कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा कि देश के अन्दर फैली गन्द की सफाई अभियान को प्रांरभ करने से पहले माननीय प्रधान मंत्री महोदय को देश के उस सिस्टम पर एक नज़र जरूर डालने जरूरत थी जिस सिस्टम के जरिय देश की सर्वोच्चता पर आसीन हुए, यह पूरी तरह सत्य है कि फिर शायद ही कोई नकारात्मक सोच पनप पाती और शान्ति के साथ हमारा देश सफाई अभियान की प्रगति पकड़ लेता!

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