आखिर किसकी थी खता जो नोट बंदी के फैसले की बलि चढ़ गई एक अजन्मी बच्ची.

जूही सिंह
खुर्जा. मंगलवार आधी रात थी जब मोदी सरकार ने अपने एक फैसले में 500 और 1000 के नोट को बैन कर दिया है। जहा मोदी समर्थक इसको एतिहासिक फैसला बताने में तुले थे तो वही विपक्ष इसको तुगलकी फरमान की संज्ञा देने से भी पीछे नहीं हट रहा था. एक तरफ समर्थक इसे कालाधन और आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी और ज़रूरी कार्रवाई साबित करने में जुटे थे तो वही दूसरी तरफ विपक्ष इसको आर्थिक आपातकाल की श्रेणी में खड़ा कर रहा था। एक तरफ जहा मार्केट में 500 और 1000 के नोट बैन हुवे और  बैंक- ATM भी बंद होने से आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इन्ही सब के बीच एक अबोध जिसने इस दुनिया में एक साँस भी न ली थी वह इस फैसले की बलि चढ़ गया.

क्या है पूरा मामला
नई दिल्ली के निकट खुर्जा के रहने वाले अभिषेक के आरोपों को आधार माने तो मामला यह  है कि वो अपनी पत्नी एकता की डिलीवरी के लिए एक निजी अस्पताल कैलाश गया था। अस्पताल वालों ने उससे 10,000 रुपए जमा कराने के लिए कहा था। जब वो पैसे लेकर काउंटर पर पहुंचा तो अस्पताल वालों ने 1000 के नोट देखकर पैसे लेने से मना कर दिया। इस पर अभिषेक अस्पताल वालों से मिन्नतें करने लगा कि वो बाद में बदल कर ला देगा फिलहाल इसे जमा कर लिया जाए। अभिषेक के मुताबिक अस्पताल ने उसकी एक नहीं सुनी और पत्नी की डिलीवरी में देरी की वजह से उसकी बच्ची की मौत हो गई।

अस्पताल ने दि सफाई कहा बच्ची पहले ही मर चुकी थी 
उधर अस्पताल ने इस आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। अस्पताल का कहना है कि बच्ची पहले से ही मृत थी। अस्पताल ने इससे भी इनकार किया है कि अभिषेक से 1000 के नोट लेने से इनकार किया गया था। बताते चले कि केंद्र सरकार ने अस्पताल में 500 और 1000 के नोट अभी भी मान्य रखे हैं लेकिन कई जगहों से ऐसी ख़बरें आई हैं कि निजी अस्पताल इन्हें लेने में आनकानी कर रहे हैं।

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