नोट बंदी – समस्याओं जूझता जनमानस

इमरान सागर

तिलहर/शाहजहाँपुर

पांच सौ और एक हजार रूपये का नोट बंद हुए आज लगभग 22 दिन होने को हैं! नोट बंदी के बाद जनमानस के सामने उभरी तमाम समस्याओं जूझना अभी भी बंद नही हो पा रहा! बैंको और ए० टी० एम० मशीनो में पैसा न होने पर भी उम्मीद की आस पर लगी लंबी कतारे जनमानस की परेशानियों की गाथा खुद ही कहती नज़र आ रही हैं! कतार बैंक में हो या ए० टी० एम० मशीनो पर, लेकिन किसी भी कतार में सिबाय कमजोर वर्ग के अलावा कोई देखने नही मिल रहा है परन्तु इसके बाद भी बैंको में नोट न होने के समाचार मिल रहे हैं।
नगर के स्टेशन रोड स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा में आज नोट न होने के कारण बैंक का मुख्य द्वार नही खुला! समय से पहले पैसे निकालने आये उपभोगताओं के सब्र का बांध उस समय टूटता दिखाई दिया जब बक्त ग्याराह बजने को हुआ और बैंक का मुख्य द्वार नही खुला! सैकड़ो की सख्या में मौजूद महिला, पुरूष उपभोगताओं ने बैंक के बंद गेट के बाहर ही हंगामा करना शुरु कर दिया जबकि बांचमैन ने भी इस घटना का फायदा उठाते हुए जमकर उपभोगताओं के साथ अभ्रद व्यवहार किया! हंगामें होते हुए समय बीतने के बाद उक्त एक बैंक कर्मी ने बामुश्किल बाहर आकर बैंक में पैसा न होने की सूचना देते हुए उपभोगताओं को शांत किया।
यह तो मात्र एक बैंक का आँखो देखा हाल है लेकिन नगर के चहुओर से मिल रहे समाचार बताते हौं कि हालात सुधरने की बजाय और भी बिगड़ते जा रहे हैं! भारत सरकार के अनुसार एक हजार रुपये का नोट बाजार में पूरी तरह बंद कर दिया गया है और वह सिर्फ अब बैंक में ही जमा हो सकता हैं लेकिन पांच सौ रुपये का नोट पिट्रोल पंप, चिकित्सा क्लीनिक, मेडीकल स्टोर, गैस बितरण आदि में भी नही चल पा रहा है तो वहीं सबसे बड़ी समस्या के रूप में आमजन के सामने दो हजार रुपये के नोट के रुप में उभर सामने आई है।

घटने की बजाय चरम पहुंचती कालाबाजारी

एक हजार रुपये का नोट बैंके के अलावा पूरी तरह बंद होने के बाद पैसे की कालाबाजारियों के हौसले बुलन्द होते नज़र आ रहे हैं! एक हजार रुपये के नोट के साथ ही पांच सौ रुपये का नोट भी पाचास प्रतिशत की दर से बैंक मैनेजरो की मिलीभगत से लगातार बदले जाने के चर्चाए गरम है! मजदूरा आधे में अपना नोट बेच कर 25 रुपये किलो का आटा खरीद कर परिवार का निर्भाह करने को मजबूर है लेकिन उसकी जुबान पर मार के डर से कोई बुराई नही आ रही दिखाई पड़ती।
सूत्रो से प्राप्त जानकारी के अनुसार अमुमन मजदूरा अपने बक्त के लिए एक हजार रुपये के दो चार नोट मोटी रकम समझ कर रखता है अब उसके लिए वहीं रकम जान का बबाल बनती नज़र आ रही क्यूंकि यदि वह नोट बंदी की बुराई करता है तो सरेआम उसकी पिटाई होने का खतरा है तो वहीं वह मार के डर से और बैंको की भीड़ से आहत अपना नोट आधे से भी कम कीमत पर बेच कर परिवार चलाने को मजबूर है क्यूंकि वह दो हजार के बड़े नोट को खुल्ला कराने की गंभीर समस्या से बचना चाहता है।

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