उफ़ मज़बूरी और गरीबी – इन्हें नहीं पता 108 डायल करने से आती है एम्बुलेन्स
नुरुल होदा खान/ अंजनी राय
बलिया। गरीबों के लिए सरकार अनेकों कल्याणकारी योजनाएं चला रही है, लेकिन गांव में विकास की असली तस्वीर आज भी बौनी है। बुधवार को कुछ ऐसा ही नजारा सामने आया, जिसे देख कलेजा हिल गया। हम बात कर रहे है बलिया-बैरिया मार्ग पर सामने आयी तस्वीर की।
सुबह करीब साढ़े 10 बजे कुछ तीन लोग एक चारपाई पर वृद्ध महिला को लेकर जा रहे थे। हल्दी थाने के सामने अचानक उन पर हमारी नजर पड़ी। मैं रूका। सोचा। फिर हिम्मत जुटाकर उनसे सवाल किया। यह कौन है? क्या दिक्कत है? कहा लेकर जा रहे है। एक साथ तीन-चार सवाल सुन सिर पर चारपाई लिये तीनों लोग रूक गये। चारपाई के अगले भाग को सिर पर लिए व्यक्ति ने अपना नाम नंदकिशोर बताया। बोले, मेरी मां है। तबीयत खराब है। इलाज के लिए हल्दी ले जा रहे है। मैने फिर सवाल किया, एम्बुलेंस को क्यों नहीं सूचना दिये? सूनी नजर से नंदकिशोर ने जबाब दिया, जानकारी नहीं थी। पैसा का भी अभाव था। रिक्शा से बात किया तो वह आने-जाने के लिए 200 रुपये मांग रहा था। ऐसे में चारपाई पर लेकर जा रहे है। फिर बोला, मां वृद्धावस्था पेंशन भी मिलती है। पहले पूर्वांचल बैंक की शाखा हल्दी से पेंशन का पैसा निकालेंगे, फिर मां को डाक्टर से दिखायेंगे। फिर मैं कुछ नहीं पूछ सका। शायद इसको ही गरीबी कहते है. एक मरणासन्न माँ को उसकी औलादे किस मज़बूरी में मरने के पहले ही कन्धा दे रहे है. आखिर इस गरीबी की मज़बूरी है जो माँ के इलाज हेतु चंद पैसा भी बैंक से निकालना पड़े. देश और और प्रदेश खूब तरक्की कर गया साहेब मगर शायद राजनैतिक किताबो की परिभाषा में इन लोगो को देशवासी नहीं सिर्फ वोट समझा जाता है. ये किसी एक जगह की बात नहीं है हम अगर अगल बगल झाके तो ऐसे सैकड़ो लोग मिल जायेगे. जो मजबूर है उनको वृद्ध होने पर पेंशन की सुविधा वह अमीर सरकारी तंत्र देता है जिसकी एक दिन के शायद तैयार होने में ही 500 लग जाते है. वही सरकार इन मजबूर बुजुर्गो को 500 महीने का देकर अपनी ज़िम्मेदारी का इतिश्री कर लेती है.