क्या एक बार फिर इतिहास को दोहरायेगा अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र

मनीष मिश्र
अम्बेडकरनगर। 17वीं विधानसभा के चुनाव का शंखनाद हो चुका है। बहुजन समाज पार्टी तथा सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के रण बांकुरे चुनावी समर में कूद चुके हैं। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण दल के रूप में सामने आयी भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले है। पांचवे चरण में होने वाले इस जिले के चुनाव को देखते हुए संभावना है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रत्याशियो की घोषणा इस माह के अंत तक की जा सकती है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रत्याशी घोषित न किये जाने के कारण जिले के चुनावी महासमर की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। इन सबके बावजूद चुनावी चर्चाओ ने जोर पकड़ लिया है। भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी कौन होगा, इसको लेकर भी कयासो का दौर जारी है।

वैसे तो चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र का अपना-अपना महत्व है लेकिन अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र की स्थिति जिले के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की स्थिति से भिन्न है। यहां पर कई ऐसे नेता सामने आ चुके है जो एक बार नहीं दो-दो, तीन-तीन बार विधानसभा में क्षेत्र की रहनुमाई कर चुके है। स्वतंत्रता के बाद से यदि इस विधानसभा क्षेत्र पर नजर दौड़ायी जाये तो यहां सबसे पहला चुनाव 1957 में हुआ था। उस दौरान बलवान सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1962 के विधानसभा चुनाव में भी बलवान सिंह ने ही अपनी जीत को दोहराया। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का परचम इस विधानसभा क्षेत्र पर फहराने लगा। 1967 में पहली बार जयराम वर्मा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर अकबरपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। तदोपरांत 1969 व 74 में प्रियदर्शी जेटली ने कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव जीत कर कांग्रेस का परचम फहराया। 1977 में मतदाताओं ने कांग्रेस से मोहभंग हो जाने के कारण हरीराम वर्मा को विजय दिला दी, लेकिन आपातकाल के बाद फिर से हुए 1980 के चुनाव में जेटली ने ही कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। इसके बाद अकबरपुर सीट पर कम्युनिष्ट पार्टी का परचम लहराया। अकबर हुसैन बाबर ने 1985 व 89 के चुनाव में जीत दर्ज कर कम्युनिष्ट पार्टी का झंडा बुलंद किया। बाबर के जीत के सिलसिले को उनके चिर प्रतिद्वंदी पवन पांडेय ने शिव सेना के टिकट पर चुनाव लड़कर तोड़ दिया लेकिन दो ही साल बाद हुए उप चुनाव में अकबरपुर पर बसपा की छाप चढ़ गयी। यह ऐसा दौर था जब इस जिले को बसपा के गढ़ के रूप में माना जाने लगा। 1993 में रामअचल राजभर ने बसपा के टिकट पर जीत का जो सिलसिला शुरू किया वह 2012 के चुनाव में जाकर समाप्त हुआ। रामअचल राजभर 1993 से 2012 तक लगातार चार बार बसपा के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा में जाते रहे। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता का बसपा से इस कदर मोहभंग हुआ कि बसपा प्रत्याशी के रूप में संजय राजभर को सपा के राममूर्ति वर्मा से लगभग 27 हजार मतो के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा। 2012 के चुनाव में आय से अधिक सम्पत्ति के मामले को लेकर बसपा ने रामअचल राजभर के बजाय उनके पुत्र संजय राजभर पर दांव लगाया था लेकिन बसपा का यह दावा फसल नहीं हो सका था। अकबरपुर विधानसभा का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां से बसपा के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मंत्री रामअचल राजभर तथा सपा अखिलेश गुट के प्रत्याशी व प्रदेश सरकार मंत्री राममूर्ति वर्मा आमने सामने है। देखना यह है कि कभी बसपा का गढ़ रहे इस विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर से नीला झंडा फहराता है अथवा समाजवादी पार्टी का रंग या केशरियां बाना इस विधानसभा पर चढ़ता है। कुछ भी हो, अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव निश्चित रूप से रोचक होगा।

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