राजनीति बनी व्यापार, दूकान बनें राजनीतिक दल
जावेद अंसारी/यासमीन खाॅन
आप सब जाने लो। अब राजनीति पूरी तरह व्यापार बन चुकी हैं। राजनीतिक दल दूकानें बन चुकी हैं। जहा लाभ व स्वार्थ की पूर्ति व जीत तय होती हैं। आजकल वही पार्टी सब नेताओं को प्रिय हो गई। जिताउ पार्टी व सिम्बल के लिए दर्जनों नेता दल कपड़े की तरह बदलते है और धन पानी की तरह बहाते है क्यांेकि वे अब अधिकतर स्वार्थी हो चुके है और जन सेवा के बजाय व्यापार करने पर उतर चुके है। यही कारण है कि आजकल जिताउ पार्टी व सिम्बल के लिए पार्टी के दरबार पर भीड़ लगी है और ईमानदार व सच्चे पार्टी के सिपाही व नेताओं को टिकट नहीं मिल पा रहा है। पार्टी आजकल धन-बल बाहुबल, जातिगत के आधार पर ही जिताउ प्रत्याशी को टिकट दे रही है, भले ही वह दल बदलू की क्यों न हो और बाद में पार्टी छोड़कर चला जाए।
गौरतलब हो कि जब कोई प्रत्याशी अपना लाखांे रूपये खर्च कर चुनाव जीतेगा तो जाहिर सी बात है प्रॉफिट तो लेगा ही अर्थात् रुपया कमायेगा। यही कारण है कि आजकल न तो पार्टी पर भरोसा रहा और न ही इन दलबदलू नेताओं पर ही। कुछ राजनीतिक पार्टी व नेता राजनीति को पूरा व्यापार बना चुके है। जबकि उनके लिए दल दुकाने बन चुकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता क्या करें। जब उनको टिकट न देकर दूसरे दल बदलू को टिकट दिया जाता हैं, तो जाहिर सी बात है कि पार्टी में भगावत का बिगुल बजना तय है।
प्रदेश में कुकुरमुत्ते की तरह आजकल राजनीतिक दल पैदा हो रहे है और धन बल बाहुबल के बदौलत नेता पैदा हो रहे है। वे जब चाहे जिस पार्टी से टिकट ले सकते है। ऐसे में साफ छबि के मेहनतकश नेताओं पर क्या गुजरती होगी, उसको भी जान वे खून का आसू रोते है। बहरहाल आजकल की गंदी राजनीति से हर कोई अंजान नहीं है। मतदाता जानता है कि जो राजनीति के नाम पर व्यापार कर रहा है और कुर्सी व सत्ता का भूखा है। वह हमारा उत्थान नहीं पहले अपना उत्थान करेगा। यही कारण है कि आजकल नेताओं को प्रचार के लिए कार्यकर्ता नहीं, अब मजदूरों का सहारा लेना पड़ रहा है। बहरहाल आजकल की राजनीति को देखकर सही कहा जा सकता है कि राजनीति बनी व्यापार, दूकान बनें राजनीतिक दल तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।