संगठन बना देते हैं सबको पत्रकार

इमरान सागर पत्रकार
शाहजहाँपुर:-दो सौ रुपये की डोनेशन पर सगंठन पत्रकार बना देते हैं और बाद में उन्हे दलाल साबित कर अधिकारियों की चमचागीरी कर कानूनी कार्यवाही कराने के साथ उनका जमकर उत्पीड़न करते हैं! तथाकथिक प्रेसे चुनाव जैसे मौको पर खुद ही पैकेज़ लेकर पत्रकारो को अपनी गरज से मात्र खबरी नौकर समझ कर दरदर भटकने के लिए छोड देती हैं!
विगत वर्षो से यही प्रचलन है कि पत्रकारता में फर्जीकरण और जमकर हो रही दलाली पर लगाम लगाई जाए! यह सत्य हो सकता है लेकिन इसका जिम्मेदार कौन है.? जिन्हे ठीक से पत्रकारता भी करनी नही आती वे संपादक और प्रधान संपादक की उपाधी गले में लटकाए नज़र आते हैं! जरा इनकी उपाधी के हिसाब से जरा इ़नका स्टेटस तो देखो कि पैरो में टूटी चप्पल और जुगाली से मुंह के बाहर निकलती पुड़िया की पीक आठवीं भी पास नही और भर्ती कर वेराजगार नवयुवको को पत्रकार बनाने के नाम पर ठंगी कर उन्हे मोटी कमाई का लालच देकर विज्ञापन मगबाते हैं! समाज की एक ही फटकार में संगठनो के तलुवे चाटने लग जाते हैं! यही पत्रकारता है या फिर तथाकथित इलैक्ट्रानिक मीडिया की प्रेसे इंफार्मर बनाने के नाम पर सीधे साधे भोले भाले नवयुवको को एक बार प्रेस का झांसा देकर पूरी तरह नाकारा बना कर उन्हे दर दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं! या फिर संगठन जो तथाकथित प्रेसे से सताए नवयुवको को ताकत देने के नाम पर सगंठन में पदवी से चन्दा उगाही करा कर अपना पेट भरते हैं और इंकार किए जाने पर उसे फर्जी पत्रकार साबिक करने का जुगत भिड़ाने में सरकारी मशनरी के तलुवे चाटते नजंर आते हैं!
आत्म गलानि से होती है सोचते और लिखते हुए भी परन्तु सत्यता से इंकार भी नही किया जा सकता कि फर्जी पत्रकारो के जन्म देने एंव इस पत्रकार उत्पीड़न में कहीं न कहीं हमारे ही उन तथाकथित पत्रकार बंधुओं का हाथ होता नज़र आ रहा है जो संगठित होने का ढ़ोल बजाते नज़र आ रहे हैं!
संगठनो के नाम पर धन उगाही से लेकर विभिन्न प्रकार से मोटी कमाई का स्रोत बनाए जा रहे हैं युवा वेररोज़गार! अनपढ़ से लेकर ग्रेजुएट तक पत्रकारता की ABCD से वर्षो मात्र इस लिए अनविज्ञय रह जा रहे हैं कि उन्हे तो उन्हे पत्रकारता का पाठ पढ़ाने वाले पत्रकार शिक्षक ही पत्रकारता के विषय में मात्र इतना ही जानते है कि विभिन्न तरीको से धन उगाही ही पत्रकारता है!
बीते समय में पत्रकारता से संम्बधित एैसे कई मामलो में जनपद के विभिन्न पत्रकार संगठनो ने अपनी हिस्सेदारी रखी परन्तु विभिन्न जांचो के नाम पर मात्र धन उगाही कर मोटी कमाई के बाद मामला ठंण्डे बस्ते में पहुंच गया! कार्यवाही और निर्णय के नाम पर झूठे फोनो की बकबास ही की जाती रही है पत्रकारो को सामने यानि सिर्फ अपनी डीगे हाकने के अलाबा कोई काम नही रह गया,तो सोचो कि इन हवा हवाई वाली पत्रकार संगठनो की बातो का आज की युवा पत्रकार पीड़ी पर क्या असर पड़ने वाला है!
झूठी शान-ओ-शोकत को बल पर ढ़ाचां खड़ा करने वाले पत्रकार संगठन फर्जी पत्रकार को जन्म देने भर के लिए ही बन रहे है या फिर आज तक पत्रकारो स्थाई कर उन्हे मेहनताना दिलाने का कार्य भी किसी संगठन द्वारा जनपद में आज तक किया गया!
इस लेख से मेरा उद्देश्य किसी पर कटांक्ष करना नही बल्कि एक प्रश्न है सभी से कि आज पत्रकारता के क्षेत्र में जनपद में विभिन्न पत्रकार संगठन मौजूद हैं वर्षो से लेकिन क्या वे अब तक किसी पत्रकार को सरकार या प्रेसो से:-
१:-वेतन २:-चिकित्सा ३ परिवारिक सुरक्षा ४:-पत्रकारो के बच्चो को बेहतर शिक्षा ५:-बसो और ट्रेनो में आधा या कुछ प्रतिशत कम किराए आदि की सुविधा दिलाने में कामयाब हो सके!
मेरा सबसे अहम प्रश्न है कि कैसा भी था जागेन्द्र सिहं पत्रकार था क्या उसकी मौत का रहस्य खुलवाने में शासन प्रशासन द्वारा क्सी अन्तिम निर्णय ले सके!
मेरा प्रश्न जनपद के विभिन्न सगंठनो से है कि संगठन को मजबूती देने को लिए जिस प्रकार फर्जी कह जाने वाले पत्रकारो से चन्दा मंगाया और फीस मांगी जाती है और उन्ही के पैसे यो उन्ही झूठा सम्मानित किया जाता है आखिर उनके लिए कब सच्चा सम्मान बनाया जाएगा और कब उन्हे यह मालुम होगा कि सच़ में पत्रकारता है क्या!
(गंणतत्र दिवस को समर्पित)

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