अरशद आलम की कलम से – मुछो की ऐसी लड़ाई की बिछ जाती है लाशें

अरशद आलम 
उत्तर प्रदेश का पश्चिमी छोर आपराधिक वारदातों के लिए बदनाम रहा है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, बुलंदशहर में ऐसे कई खतरनाक अपराधी चर्चित रहे हैं, जिन्होंने दुश्मनी की आग में जलकर अपराध का काला इतिहास खड़ा किया है। आइए आज आपको बतातें हैं पश्चिमी यूपी के तीन गैंगवार की कहानी, जिनके आगे कानून और प्रशासन भी बेबस हो गए…
सुंदर भाटी गैंग-नरेश भाटी गैंग
दिल्ली से सटे पश्चिमी यूपी के इलाके में सुंदर भाटी और नरेश भाटी गैंगवार का दुर्दांत चेहरा हैं। सुंदर भाटी और नरेश भाटी गैंग के बीच खूनी जंग बरसों चलती रही। दर्जनों मामलों में वांछित सुंदर भाटी पश्चिमी यूपी का कुख्‍यात बदमाश है। उस पर गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, फरीदाबाद, दिल्ली सहित पश्चिमी यूपी में हत्या और हत्या के प्रयास के नौ मामले, लूट के चार, अवैध वसूली और हथि‍यार बरामदगी के छह, गुंडा ऐक्ट, गैंगेस्टर, रंगदारी मांगने सहित तीन दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं।
लेकिन सुंदर की कहानी सिर्फ पुलिस स्टेशन के रजिस्टर में दर्ज आपराधिक आंकड़े से नहीं कही जा सकती है। ऐसा बताया जाता है कि 2003 में जिला पंचायत अध्यक्ष रहे नरेश भाटी और सुंदर भाटी के बीच विवाद हो गया था। जिसमें 2004 में नरेश भाटी की हत्या हो गई थी और सुंदर भाटी पर हत्या का आरोप लगा था। इसके बाद सुंदर भाटी के भाई समेत तीन निर्दोष लोग भी गैंगवार का शिकार हुए। हत्या का आरोप नरेश भाटी गैंग पर लगा था। दोनों पक्षों में इलाके के गांवों के युवा जुड़ने लगे और काले धंधों में उतर गए।
लेकिन, एक-दूसरे गैंग के क्षेत्र में काम करने मतलब मौत को बुलावा देना था। ऐसा हुआ भी… खेड़ी गांव में दो परिवारों में रंजिश पनपी और एक के बाद एक लाशें गिरती रहीं। नरेश भाटी और सुंदर भाटी गैंग से जुड़ने वाले नवयुवक जरा से इशारे पर किसी को भी मौत के घाट उतार देते थे। मार्च 2014 में 11 साल की दुश्मनी भूल इन दो खतरनाक गैंगों में समझौता कर लिया। घंघौला गांव में बुलाई गई पंचायत में सभी ने आश्वासन दिया कि आगे कोई भी गैंगवार नहीं होगी।
योगेश भदौड़ा गैंग- उधम सिंह गैंग
कुछ साल पहले सरूरपुर अंतर्गत गांव भदौड़ा में किसी की तेरहवीं थी। यहां लगभग एक हजार लोगों की भीड़ थी। भदौड़ा गांव निवासी हिस्ट्रीशीटर प्रमोद भदौड़ा भी इस तेरहवीं में पहुंचा था। सुबह लगभग पौने बारह बजे प्रमोद तेरहवीं में मूढ़े पर बैठा था। हिस्ट्रीशीटर उधम सिंह निवासी करनावल भी वहां साथियों के साथ पहुंचा। प्रमोद को वहां बैठे देख उधम नफरत के भाव लिए घर के अंदर गया और कुछ पलों बाद बाहर आया। ऐसी खबर आई कि आसपास देखकर उसने प्रमोद को टारगेट करते हुए दोनों हाथों में पिस्टल से ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। उधम के साथियों ने भी रायफल, बंदूक, अधनाली और पिस्टल से फायरिंग की। अचानक हुई फायरिंग से तेरहवीं में भगदड़ मच गई। जिसे जो रास्ता मिला वहां भाग लिया।
प्रमोद को सरेआम मौत के घाट उतारने के बाद उधम ने फिर प्रमोद की आंख, दिल और दिमाग में सटाकर गोलियां मारीं। ताबड़तोड़ गोलियां लगने से प्रमोद के चेहरे का दायां हिस्सा उड़ गया। प्रमोद के दिमाग का हिस्सा और खून दूर तक फैल गया। सैकड़ों लोगों के सामने खुलेआम जघन्य हत्याकांड को अंजाम देकर उधम ने सभी से माफी मांगी और फोन करके गाड़ी मंगाई। कुछ ही पलों में वहां पहुंची सफारी गाड़ी से उधम साथियों समेत चिंदौड़ी जाने वाले रास्ते की तरफ फरार हो गया।
उधम कुछ समय पहले ही जेल से छूटा था जबकि प्रमोद का भाई योगेश भदौड़ा उस वक्त जेल में बंद था। प्रमोद और योगेश ने कुछ समय पहले ही थाने में सरेंडर किया था। भाई की मौत का बदला लेने के लिए योगेश के दिल में जल रही आग ने दोनों गैंगों की दुश्मनी को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया। रिश्तेदार, दोस्त, किसी भी गैंग से कोई भी संबंध रखने वाला शख्स मौत के घाट उतार दिया गया।
योगेश भदौड़ा की गांव के ही विरेन्द्र से नाली के विवाद में 1996 में रंजिश बंध गई थी। बड़ी बात ये है कि उस दौरान उधम और योगेश में गहरी दोस्ती हुआ करती थी। उधम लंबे समय तक योगेश का चहेता रहा, लेकिन बीते दो साल से किनौनी शुगर मिल के ठेके को लेकर दोनों में दुश्मनी ठन गई थी। जनवरी 2014 में, योगेश भदौड़ा और उधम सिंह की दुश्मनी दोस्ती में बदल गई। पूर्व ब्लॉक प्रमुख भूपेन्द्र बाफर के अलावा जाट समाज के जिम्मेदार लोगों ने दोनों के बीच समझौता करते हुए उनसे शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कर लिए।
विक्की त्यागी और सागर
2015 में 2 मार्च के दिन मुजफ्फरनगर कोर्ट में इंसाफ का मंदिर गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। जज जान बचाने के लिए अपने चेंबर की तरफ भागे। वकील कुर्सियों की नीचे छिप गए और कटघरे में खड़ा गैंगस्टर विक्की त्यागी 14 गोलियों से छलनी हो गया। वकील के भेष में विक्की को मारने आया सागर फूलप्रूफ प्लानिंग के तहत वकील के भेष में आया ताकि किसी को शक ना हो।
विक्की त्यागी का आतंक 1998 से लेकर 2008 तक अधिक रहा। कुख्यात विक्की त्यागी का नाम रुड़की में वर्ष 1999 में तब चर्चा में आया जब उसने गंगनहर कोतवाली की ओर से सिविल लाइंस आ रहे इंस्पेक्टर जेपी जुयाल पर दिनदहाड़े गोली चला दी। घटना में जुयाल बाल बाल बच गये थे और कुख्यात विक्की त्यागी पुलिस की घेराबंदी तोड़कर भागने में कामयाब रहा था। विक्की त्यागी बेहद शातिर दिमाग का था। अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद उसने अपने दुश्मनों को चुन-चुन कर मारा। बधाई खुर्द चेयरमैन उदयवीर के पूरे परिवार की हत्या को विक्की ने ट्रकों का इस्तेमाल किया।
विक्की और सागर की दुश्मनी की कहानी मुजफ्फरनगर से सटे भावरी गांव से जुडी़ है। भावरी गांव में रहने वाले एक खानदान के बीच 3 पीढ़ियों से जारी खूनी जंग लोगों की जुबान पर लोककथा की तरह चढ़ी हुई है। एक तरफ है वेद सिंह मलिक का परिवार तो दूसरी तरफ महेंद्र सिंह मलिक का परिवार। पिछले 25 सालों में मूछों की लड़ाई में दोनों परिवार की तरफ लाशें बिछने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सागर के परिवार से अब यहां कोई नहीं।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *