जल संरक्षण एवं पर्यावरण पर विशेष

(सी.पी. सिंह विसेन)
साथियों,

जल ही जीवन है और बिन जल के जीवन संभव नहीं है।जल एक ऐसी कुदरत की दी हुयी नियामत है जिसके बिना कोई भी जीव जिन्दा नहीं रह सकता है।इस समय पूरी दुनिया में जल का संकट मंडरा रहा है और कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध जल को लेकर हो सकता है।यहीं कारण है कि पूरी दुनिया जल संरक्षण के लिये लोगों को जागरूक करने के लिये हर साल तेइस मार्च को जल संरक्षण दिवस मनाकर लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक बना रही है।जल हमें प्रकृति प्रदान करती है और धरती के अंदर के जल स्रोत हमें स्वच्छ निर्मल जल प्रदान करते हैं।

इस समय जल का दोहन इतनी तेजी से हो रहा है कि नदियाँ कुआ तालाब झील सभी सूखने लगी है।धरती का जलस्तर तेजी से नीचे भाग रहा है जिसके फलस्वरूप कम गहराई वाले हैन्डपम्प एवं नलकूप की बोरिगें फेल होने लगी है।अब तक माना जाता था कि पानी मोल नहीं बिकता है बल्कि यह ईश्वर प्रदत्त है और लोग पानी पिलाना अपना धर्म मानते थे किन्तु अब पानी की बिक्री होने लगी है।जल के बिना धरती पर न तो हरियाली रह सकती है और न ही किसानी हो सकती है।अब तक जलस्तर ठीक रखने का काम तालाब व झीलें आदि करती थी किन्तु समय के साथ साथ वह खत्म होते जा रहे हैं।सुप्रीम कोर्ट तक जल संरक्षण को लेकर तालाबों को 1960 की स्थित में लाने का आदेश दे चुकी है।सरकार भी करोड़ों अरबों रूपये गाँवों में तालाब खुदवाने के नाम पर खर्च कर चुकी है किन्तु तकनीकी अनुभव के अभाव में वह लक्ष्यपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।जो तालाब गाँवों में खुदवाये गये हैं वह जल ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं और वह साल बारहों महीने सूखेे पड़े रहते है जो पानी आसमान से गिरता है उतना ही उसमें जा पाता है।बरसात भी इधर होना कम हो गयी है और इतना पानी गिरता ही नहीं है कि जो तालाब को भर सके और तालाब तक पानी का बहाव पहुँचकर खुद बंदिशों को तोड़ सके।आधुनिकता के दौरान में कुएँ पट गये हैं और उनकी जगह इन्डिया मार्का हैंडपम्पों ने लिया है।आजकल इन हैडपम्पो में समरसेबुल लगने लगें हैं। बड़ी बड़ी फैक्टरियों कल कारखानों बूचड़खानो संस्थानों को कहे जो दैनिक जरूरी कार्य अबतक दस बाल्टी में हो जाते थे वह अब दस ड्रम कौन कहे दस बड़ी टंकी में होने लगा है।जो स्नान अबतक एक दो बाल्टी से हो जाता था वह अब दस बाल्टी से होने लगा है।जल का दुरुपयोग एवं जल का दोहन जल के भविष्य के लिये खतरा बनता जा रहा है।जल संरक्षण की हमारी परम्परा ही समाप्त होती जा रही है लोग भूल रहे हैं कि जल को देवता और जीव की जान कहा जाता है।बरसात हमारे पर्यावरण से जुड़ी होती है और जब पर्यावरण प्रदूषित होता है तो जलवायु परिवर्तन ही नहीं बल्कि जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगते है।पर्यावरण प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि जिन तीन मोटी चट्टानों से छनकर सूर्य की रोशनी धरती पर आती है उनमें तीन बड़े बड़े होल हो गये हैं।इन्हें हम शुद्ध भाषा में ओजोन परतों में छेद होना भी कहते हैं और इनके संरक्षण के लिये प्रतिवर्ष दुनिया सोलह सितम्बर को ओजोन दिवस मनाकर पर्यावरण संरक्षण का सकंल्प लेती है।जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये पर्यावरण संरक्षण की उतनी ही जरूरत है जितनी मनुष्य को जिंदा रहने के लिये सांसों की होती है।बिना खाये तो पानी पीकर जिंदा रहा जा सकता है लेकिन बिना पानी खाना खाकर जिंदा नहीं रहा जा सकता है।कहा भी गया है कि-“*रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून पानी गये नउबरै*– 

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