एक मंदिर जहा हिन्दू मुस्लिम मिलकर खेलते है फूलो से होली

(कमल शंकर मिश्र) ... 
कानपुर नगर। एशिया का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर शहर जैसी होली तो शायद बिरले शहरों में खेली जाती हो। रंगों के साथ कीचड और गोबर का प्रयोग भी यहां वर्जित नही माना जाता है। जहां शहर के कुछ हिस्सों में इस प्रकार की होली खेली जाती है वहीं शहर का केन्द्र माने जानेवाले प्रयाग नारायण शिवाला की होली पूरे प्रदेश में अनोखी मानी जाती है। चूडियों की छोटी बडी दुकानों के साथ पुष्प, मूर्ति और पूजन सामग्री के लिए मशहूर शिवाला बाजार नगर में ही नही बल्कि प्रदेश में अपनी अलग  पहचान रखता है। 
भगवान रंगनाथ व मां गोदम्मा संग खेलते है होली
यहां की होली में कई खास बातें है, जैसे यहां होली का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली होली यहां के प्रयाग नारायण शिवाला मंदिर में माघी पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व मनाई जाती है। इसमें भक्ती भाव में सराबोर भगवान रंगनाथ व गोदम्मा जी के साथ उनके भक्तों के द्वारा हर्षेउल्लाष के साथ होली खेली जाती है। माघ पूर्णिमा 11 दिन पहले ही माघ मेले का आयोजन होता है जिसे ब्रम्होत्सव कहते है। 
इस पर्व में 51 किलों गुलाब, गेंदे के फूलों के साथ होली खेली जाती है। इस होली की खास बात यह है कि इसमें गुलाल के साथ टेशू के फूलों से बने बसंती रंग का प्रयोग किया जाता है और दूसरी होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष पूर्णमासी को मनाते है। 
तीन दशक पुराना है शिवाला मंदिर में होली खेलने का अंदाज
शिवाला मंदिर के पूर्व प्रबंधक बद्रीनारायण तिवारी से जब इस अनूठे ढंग से होली खेलने अंदाज के बारे में पूंछा गया तो उन्होने बताया कि आज से तीन दशक पहले टेशू के फूलों से ही होली खेली जाती थी लेकिन अब उसकी जगह आधुनिक गुलाल ने ले ली है। पर हमारे यहां शिवाला में आज भी फूलों से ही होली खेली जाती है। 
तीन पीढियों से कायम है यहां फाग गाने की परंपरा
यहाँ का फाग भी पूरे शहर में अनोखा है, यहां की फाग मंडली बसंतपंचमी से होली मेले तक फाग गाती है। मंडली के निकलने पर लोग टेशू के फूलों की वर्षा कर होली खेलते है। 60 वर्षीय बैकुण्ठ त्रिवेदी तीन पीढियों से यहां फाग गाते आ रहे है और उन्हे उम्मीद है कि आगे की पीढी भी इस परंपरा को कायम रखेगी। 
यहाँ हिंदू-मुसलमान मिलकर खेलते है फूलों से होली
प्रयाग  नारायण शिवाला  मंदिर के पूर्व प्रबंधक व् मानस संगम के संयोजक बद्रीनारायण तिवारी ने बताया कि सन् 1861 को इस मंदिर की स्थापना हुई थी तब से लेकर आज तक फूलों से होली खेलने की यह परंपरा चली आ रही है। हिंदू-मुसलमान सभी यहां इकट्ठा होकर एक दूसरे को बधाई देते है और गले मिल कर होली के पर्व को धूम धाम से मनाते है।

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