चम्मचो के रूप में बदलती क़लम

(इमरान सागर)

एक समय था जब क़लम की बड़ी पहचान थी उसके लेखन से! कलम का एक ही प्रकार हुआ करता जो टाटर नामक सेटे रूपी लकड़ी से बनाई जाती थी और इंकपॉट(दबात) में भरी स्हाई मे डिबो कप लेखनी लिखी जाती थी लेकिन सरकारी संस्थानो में होल्डर नामक कलम का प्रयोग होता था जो अक्सर अदालतो में किसी बड़ी सजा के तहत आज भी कहीं न कहीं प्रयोग में लाया जाता होगा! 

कलम को चलाने वाला अपने शब्दो को चुन चुन कर लिखा करता था जिसके कारण मात्र लेखनी भर से कलम और कलमकार की पहचान हुआ करती थी! चम्मचो के प्रकार के वारे में कहना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नही! जंक लगा चम्मच,टेढ़ा चम्मत, पतला और टूटा हुआ चम्मच! भला एैसे चम्मचो का प्रयोग होने पर खाने में कमी निकालना बेमानी होगी बल्कि यूँ कहा जाए कि खाने वाले की अक्ल कमजोर होगी, ज्यादा बेहतर है! 
बात गहरी नही है कि कलम का रूप चम्मच ले रहे हैं,बड़ा आसान है समझना कि आखिर कलम चम्मचो के रूप में कैसे बदलती जा रही है!
यहाँ यह कहना गलत होगा कि कलम से भी अब चापलूसी होने लगी है! कलम का तो रूप ही बदल गया इस लिए कलम के बारे में कोई भी टिम्पणी स्वीकार नही! व्यक्ति विशेष,पार्टी विशेष,समुदाय विशेष आदि खानो मेॉ चम्मचो की विशेष भुमिका होती है लेकिन किस विशेष पर किस प्रकार का चम्मच प्रयोग हो रहा है,आज के दौर मपढ़समझना बड़ा मुश्किल काम है! 
चम्मचो की क्वालिटी की बात करें तो आज कल इस मंहगाई में  चाँदी और सोने के चम्मचो प्रयोग नामुमकिन सा लगता है लेकिन कुछ धातुओं के प्रयोग से चाँदी और सोने का रूप देने का प्रयास होता है! आज सबसे अधिक स्टील चम्मच का तलन है जो कि जंक लगने तक चलाया दरूर जाता है परन्तु  खाने मेरा मतलब चलाने के समय सही तरह से प्रयोग कर पाना सबके लिए भी संभव नही हांलाकि अज्ञानियों के लिए फाईबर चम्मच बाजार में मौजूद है लेकिन अफसोस कि जब प्रयोग करना ही न आता हो तो खाने में स्वाद कैसा!
यह तो यह हो गया कि कलम और चम्मच क्या है और यह तो समझ ही रहे हैं कि आखिर मामला क्या है लेकिन फिर भी मुद्दे पर आते हुए कि आज जितनी तेजी से पत्रकारता बढ़ रही है तो उतनी ही तेजी से कलम की जगह चम्मच का प्रयोग होने लगा जिसका नतीज़ा प्रतिदिन दैनिक साप्ताहिक समाचार पत्रो मे छपे समाचारो को पढ कर पता चल जाता है कि स्वाद नाम की चीज मिलती ही नही! आज लेखनी की विश्वासनियता इस लिए भी कटघरे नज़र आती है कि कलम की जगह प्रयोग होते विभिन्न प्रकार के चम्मचो से लेखनी होती नज़र आ रही है! 
चम्मचो की लेखनी में स्वाद और संवाद शायद दोनो का नज़र न आना ही इसका बड़ी बजह जाहिर करता है कि कलम जिसको भुलाया नही जा सका आज भी तो वहीं कलम की आड़ में चम्मच अपनी पहचान बनाने के चक्कर में अंज्ञानता के हाथो की कठपुतली बन पहचान तो नही बन पा रहे हैं हाँ स्वाद जरूर खराब कर रहे हैं!

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