विक्रमशिला के भग्नावशेष का महज संग्रहालय नहीं बनना चाहिए बल्कि नालंदा की तरह इसका विकास किया जाना चाहिए – राष्ट्रपति
भागलपुर बिहार
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिहार के भागलपुर स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का आज दौरा किया और कहा कि वह बौद्ध शिक्षा के इस प्राचीन केंद्र के पुनरुत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करेंगे. प्रणबमुखर्जी ने कहा कि विक्रमशिला के भग्नावशेष का महज संग्रहालय नहीं बनना चाहिए बल्कि नालंदा की तरह इसका विकास किया जाना चाहिए और कहा कि भारत को ऐसे विश्वविद्यालयों की जरुरत है.
प्रणब मुखर्जी ने विश्वविद्यालय में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, विक्रमशिला उच्च शिक्षा केंद्र ने राष्ट्र का मार्ग दर्शन किया और अनुसंधान को बढ़ावा दिया. मैं इसके पुनरुत्थान के लिए प्रधानमंत्री से बात करुंगा. राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे प्राचीन शिक्षण केंद्र अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. उन्होंने कहा कि वह कॉलेज के दिनों से ही इस तरह के केंद्रों को देखने को उत्सुक थे और यहां इसके पुनरुत्थान के लिए लोगों के प्रेम और भाव को देखकर वह भाव विह्वल हैं.
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘‘विक्रमशिला सिर्फ एक संग्रहालय नहीं होना चाहिए, इसे उच्चतम स्तर के मानक के रुप में विकसित किया जाना चाहिए.’ देश में उच्च शिक्षा अवसंरचना को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इन केंद्रों द्वारा छात्रों को पर्याप्त शैक्षणिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘यह केवल तभी संभव है जब शीर्ष शिक्षा संस्थान हमारे उच्च शिक्षा परिदृश्य से स्नेह करें.’ भारत में इस तरह के विश्वविद्यालयों की आवश्यकता जताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इसका विकास नालंदा की तरह होना चाहिए.
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय को श्रेष्ठ संकाय का केंद्र होना चाहिए तथा अनुसंधान के लिए विदेशी संस्थानों से सहयोग करना चाहिए और साथ ही स्थानीय नवोन्मेषकों के साथ संबंध स्थापित करने चाहिए. उन्होंने कहा कि प्राचीन विक्रमशिला का स्मारक तथा संग्रहालय हमें याद दिलाता है कि इसने एक ऐसे युग का परावर्तन किया जहां शिक्षण की एक समृद्ध संस्कृति फली-फूली.
राष्ट्रपति ने कहा कि पाल वंश के शासन के दौरान भारत में बौद्ध शिक्षण के दो महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक इस संस्थान की स्थापना राजा धर्मपाल ने बौद्ध और तांत्रिक शिक्षा के एक केंद्र के रुप में की थी. प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त 2015 में विश्वविद्यालय के लिए 500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी जबकि राज्य सरकार संस्थान के लिए 500 एकड जमीन मुहैया कराने वाली थी. विक्रमशिला को ‘बौद्ध सर्किट’ में शामिल करने के बाद राष्ट्रपति के दौरे से इसके अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रुप में विकसित होने में मदद मिलने की उम्मीद है.
भागलपुर के पूर्व में करीब 50 किलोमीटर तथा भागलपुर-साहिबगंज प्रखंड में कहलगांव रेलवे स्टेशन के 13 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित केंद्र में प्राचीन समय में अनुसंधान के लिए बौद्ध भिक्षु और विद्वान रहते थे. तेरहवीं सदी के शुरू में हृास की शुरुआत होने से पहले विश्वविद्यालय चार सदियों तक खूब फला-फूला. विक्रमशिला ने अनेक हस्तियां दीं. विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध विद्वानों को विभिन्न देश बौद्ध शिक्षा, संस्कृति और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आमंत्रित करते थे. राष्ट्रपति कल दोपहर बाद राज्य सरकार के एक हेलीकॉप्टर से कहलगांव पहुंचे और राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम के अतिथि गृह में रात्रि विश्राम किया.
जनसभा का स्वागत भाषण संतोष दुबे व समापन केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुढ़ी ने किया. इस दौरान जिला प्रशासन ने विक्रमशिला प्रतीक चिह्न भेंट किया व इस्टर्न प्रेस क्लब की विक्रमशिला पर आधारित किताब का विमोचन हुआ. मौके पर सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे, मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, कहलगांव विधायक सदानंद सिंह, पीरपैंती विधायक रामविलास पासवान आदि मौजूद थे.
हिंदी ठीक से बोल नहीं सकता, माफी चाहता हूं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भाषण के अंत में लोगों से कहा, अच्छा स्वागत किया, इसके लिए बधाई. गरमी बहुत है लेकिन फिर भी आपने(लोगों की तरफ इशारा करते हुए) कष्ट करके समारोह में भाग लिया. हिंदी ठीक से बोल नहीं सकता, माफी चाहता हूं.