भारत में कर्ज लेकर उसे वापस न करनें की एक परंपरा सी बनती जा रही है, देखिए आंकड़े
शबाब ख़ान
नई दिल्ली : वर्ष 2014-15 में देश के सभी किसानों पर कुल 8 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का कर्ज़ था, जो अब बढ़कर 9 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये हो गया है। विरोधाभास ये है कि वर्ष 2017-18 में देश में ज़बरदस्त उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है। सरकार के मुताबिक इस दौरान देश में 273 मिलियन टन खाद्यान्न पैदा होगा, क्योंकि इस बार मानसून सामान्य रहने के आसार है। जबकि 2016-17 में 272 मिलियन टन अन्न का उत्पादन हुआ था।
महाराष्ट्र में 30 हज़ार करोड़ का कर्ज़ माफ होने से सरकार का घाटा बढ़कर 38 हज़ार 789 करोड़ रुपए हो जाएगा। जबकि उत्तर प्रदेश में 36 हज़ार 500 करोड़ रुपए का कर्ज़ माफ किए जाने से राजकोषीय घाटा बढ़कर 49 हज़ार 960 करोड़ रुपए हो जाएगा। इसी तरह राजस्थान में 30 हज़ार करोड़ रुपए माफ होने से घाटा 23 हज़ार 14 करोड़ रुपए का हो जाएगा।
हरियाणा में 23 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ माफ होने से घाटा 25 हज़ार 115 करोड़ रुपए हो जाएगा। इसके अलावा पंजाब में 9 हज़ार 845 करोड़ रुपए का कर्ज़ माफ किए जाने से राज्य सरकार का घाटा बढ़कर 13 हज़ार 87 करोड़ रुपए हो जाएगा और मध्य प्रदेश में किसानों का 30 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ माफ होने से सरकार का राजकोषीय घाटा 25 हज़ार करोड़ रुपए हो जाएगा।
इंडिया रेटिंग एण्ड रिसर्च प्राईवेट लिमिटेड नामक रेटिंग एजेंसी के मुताबिक भारत में उद्योगों के पास इस वक्त 6 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ ऐसा है जो डिफॉल्ट हो सकता है। यानि डूब सकता है। रेटिंग एजेंसी के मुताबिक भारत के 500 सबसे बड़े कर्जदारों में से आधे ऐसे हैं। जिनके लिए लोन चुकाना मुश्किल है।
नोटबंदी के बाद से बैंकों के एनपीए यानी नॉन परफार्मिंग ऐसेट बढ़कर 6 लाख 14 हज़ार 872 करोड़ रुपए हो चुके हैं। एनपीए कर्ज़ के तौर पर दी गई वो रकम होती है जिस पर बैंकों को ब्याज़ मिलना बंद हो जाता है और इस रकम के डूबने का भी खतरा रहता है। वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2016 के बीच बैंकों के 2 लाख 51 हज़ार करोड़ रुपये डूब चुके हैं। ये कर्ज़ के रूप में दी गई ऐसी रकम है जो बैंक वापस नहीं वसूल पाए।
भारत में 500 बड़े उद्योगपतियों पर करीब 28 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ है। इनमें से 240 उद्योगपतियों पर करीब 11 लाख 80 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ है जिसमें से 5 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ खतरे में है जबकि बाकी के 6 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये भी हाई रिस्क कैटेगरी में है।