जीएसटी की मार से बनारस का कपड़ा कारोबार ठप, 400 करोड़ का कारोबार हुआ प्रभावित
शबाब ख़ान
वाराणसी: बनारस ताने-बाने का शहर है, मुस्लिम बुनकर और हिंदु गद्दीदार (ट्रेडर) मिलकर बनारसी साड़ियों और वस्त्रों का कारोबार करते हैं। बनारसी साड़ी और बनारसी कपड़ों से बनाये जाने वाले मेडअप्स पूरे विश्व में विख्यात है, यहॉ के बुनकरों द्वारा बनाये कपड़े और उनसे बनें मेडअप्स पूरे विश्व में भारी मात्रा में निर्यात भी किया जाता है। यह ताने-बाने का रिश्ता दशकों से चला आ रहा है, समय के साथ चाइना सिल्क के भारत में प्रवेश करनें से और सूरत में भारी मशीनों के प्रयोग से ज्यादा प्रोडक्शन कर कम कीमत पर कपड़ा बेचने से बनारसी साड़ी उद्योग पर भारी असर पड़ा, लगभग 80 प्रतिशत तक साड़ी उद्योग खत्म हो गया। लेकिन फिर भी बनारस के कपड़े का काम जारी रहा, बुनकरों का मुनाफा कम हो गया, गद्दीदारों की भी कमाई पर प्रभाव पड़ा, लेकिन यह काम चलता रहा। बनारस के बड़ी बाजार, छित्तनपुरा, मदनपुरा, कोयला बाजार, चौहट्टा लाल खान अादि इलाके की तंग गलियों से करघे की आवाज आती रही। बनारसी साड़ी को खूबसूरती देने की कला बुनकरों नें सजोकर रखा, लेकिन अब सब बदल रहा है। बनारसी साड़ी कारोबार जो एक कुटीर उद्योग है उसे पूरी तरह साफ करने का पूरा इंतजाम किया जा चुका है।
भारत में सरकारें आयी और चली गई, लेकिन किसी भी सरकार नें बेहतरीन कला के नमूने यानि बनारसी साड़ी और यहॉ के कपड़ों पर किसी प्रकार का टैक्स नही थोपा क्योकि सरकारें जानती थीं कि मेहनत और मशक्कत की कला को कपड़े पर उकेरने वाला बुनकर समाज कम पढ़ा लिखा होता है और कम मुनाफे पर उधारी का काम करता है, सरकारें समझती थी कि बुनकरों को उनकी मेहनत का दाम काम कर चुकने के तीन से छह माह बाद के पोस्ट डेटेड चेक के माध्यम से दिया जाता है, जिसे बुनकर किसी ब्याज पर धन देने वाले व्यक्ति को 5 से 10 प्रतिशत कमीशन देकर नगद लेते है। तीन महिने बाद के 10,000₹ का पोस्ट डेटेड चेक लेकर एजेंट बुनकर को तुरन्त 9000 कैश दे देते हैं बशर्ते वह चेक देने वाली फर्म को जानता हो। इस प्रक्रिया में बुनकर का मुनाफा और कम हो जाता है। कला की बहुत ही कम कीमत पहुँचती है एक बुनकर के घर, इतनी की बस दो वक्त की रोटी इज्जत से मिल जाती है। अब सरकार बदल चुकी है।
पहले नोटबंदी नें कपड़ा कारोबार पर भारी चोट की, उस दौर में मैनें खुद कई छोटे बुनकरों को रिक्शा खीचते देखा है, इज्जत की रोटी के लिए मुँह पर अगोंछा बॉघकर, कंस्ट्रक्शन साइट पर बालू, ईटों को ढ़ोकर नोटबंदी के दौर को किसी तरह बुनकरों नें झेला। लेकिन अब इंतेहा हो गयी, जीएसटी के वार को बनारसी साड़ी उद्योग बर्दाश्त करने लायक नही है। न बुनकर, न गद्दीदार, न इस कारोबार से जुड़े दूसरे व्यापारी वर्ग सरकार द्वारा बिना इस कारोबार की हालत को समझे बूझे थोपे गए 5 प्रतिशत जीएसटी को कुबूल करनें को किसी कीमत पर तैयार नही है। नतीजतन लूम और हथकरघों की आवाज आनी बंद हो गयी, चौक के गद्दीदारों के शटर गिर गये। अंगडिया (एक प्रकार का कुरियर) के पहिये थम गए।
वस्त्रों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाने के विरोध में पिछले चार दिनों से बनारसी वस्त्र उद्योग पूरी तरह से बंद है। जगह-जगह सभाएं, विरोध-प्रदर्शन करके कपड़ा कारोबारी और बुनकर संगठन मोदी सरकार के प्रति अपना गुस्सा जता रहे हैं, जिसमें कपड़ा कारोबार से जुड़े व्यापारी और बुनकर, चाहे वो हिंदु हो या मुस्लिम बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं, क्योकि उन्हे अच्छी तरह पता है कि जीएसटी इस बचेखुचे साड़ी कारोबार को पूरी तरह निगल जाएगा।
कारोबारियों का कहना है कि जब तक साड़ी से पांच प्रतिशत टैक्स नहीं हटाया जाएगा, आंदोलन जारी रहेगा। लगातार चार दिन की बंदी से करीब तीन सौ करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित हुआ है। आज नाटी इमली स्थित बुनकर कॉलोनी में महासभा का आह्वान किया गया था, जिसमें भाग लेने आये विशाल जनसैलाब को देखकर लगा कि बुनकरों और कपड़ा कारोबारियों का सरकार के प्रति रोष समय के साथ कम नही होने वाला, यह गुस्सा बढ़ता चला जाएगा, जिससे संभवता भाजपा को अपने गारण्टेड वोट बैंक वाराणसी में मुँह की खानी पड़ सकती है।
कल बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन व बनारसी साड़ी डीलर एसोसिएशन से जुड़े सदस्यों और बुनकरों ने रानीकुआं और मदनपुरा में धरना-प्रदर्शन किया था। कपड़ा कारोबारियों का कहना था कि 70 साल से कपड़ा पर कोई टैक्स नही लगा था। मोदी सरकार ने कपड़े पर टैक्स लगाकर हमारे पेट पर लात मारनें का काम किया है। यहां हरिमोहन, देवेंद्र मोहन पाठक, विजय कपूर, हाजी अब्दुल रहीम, अतीक अंसारी, हाजी जियाउद्दीन, गौतम टंडन, बॉबी ब्रिज, संजय, रविशंकर मौजूद रहे। चौक क्षेत्र में लक्खी चौतरा, रानी कुआ, नंदन साहू लेन, सत्ती चौतरा, कुंज गली, ठठेरी बाजार में साड़ी की दूकानों के शटर गिरे रहे। वहीं बड़ी बाजार, उसमानपुर, हनुमान फाटक, छित्तनपुरा, सलारपुरा, मदनपुरा, लोहता आदि इलाकों में दूकानें बंद रहीं।
उधर लोहता वस्त्र उद्योग पर जीएसटी के खिलाफ चल रहा मुर्री बंद आंदोलन तेज हो गया है। गुरुवार को लोहता में हुई बुनकर महापंचायत में जीएसटी हटाने के लिए 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया गया। यह तय किया गया कि यदि मुर्री बंद के बाद भी जीएसटी नही हटता तो आंदोलन तेज किया जाएगा।
अध्यक्षता चौतीसों के महतो गुलाम हैदर अंसारी एवं संचालन शमीम नोमानी ने किया। प्रमुख रूप से बाइसों के सरदार मो कलाम, अतीक अंसारी, गगन प्रकाश यादव, अनवारुल हक, भोलानाथ गुप्ता, सेराज अहमद, शंभू साव, हाजी अनीसुर्रहमान महतो, गुलाम रसूल महतो, कन्हैया सेठ, मतलूब सरदार, मतीन अंबानी, श्यामबाबू मौर्या मौजूद रहे।
इसी क्रम में गुरुवार को बुनकर बिरादराना तंजीम पांचो की तरफ से छित्तनपुरा में सभा हुई। इसमें सरदार मुहम्मद मुरु शुदा, बाइसी केसरदार हाजी कलाम, हाजी निजामुद्दीन, हाजी ओकास अंसारी, मुबारक महतो, साजिद अंसारी, गुलशन अंसारी, अहमद अंसारी, अतीक अहमद अंसारी आदि रहे। वहीं दूसरी तरफ़ सहायक आयुक्त हथकरघा तथा वस्त्रोद्योग के कार्यालय में बुकनर फरीद अंसारी की अध्यक्षता में बुनकर व बुनकर सहकारी समितियों के प्रतिनिधि की बैठक हुई। इसमें हथकरघा पर जीएसटी न लगाए जाने पर बुनकरों ने एक स्वर में मांग किया। बैठक में नुरुल हसन अंसारी, अमरेश, जगन्नाथ, मुजम्मिल, इकबाल, कुद्दुस, नंदी, मुहर्रम आदि शामिल रहे।
सरकार को समझना होगा कि जो बुनकर बड़ी मुश्किल से अपना घर चला रहे हैं वे भला कैसे जीएसटी नंबर लेंगे। वस्त्र डीलर्स और गद्दीदार तैयार माल खरीदने के लिए उनसे जीएसटी नंबर मांग रहे हैं। आखिर कम पढ़े-लिखे बुनकर जटिल प्रक्रिया कैसे पूरी करेंगे। यह बात बुनकर पंचायत चौदहों के अध्यक्ष ने गुरुवार को पीलीकोठी स्थित कार्यालय पर पत्रकारों से कही।
उन्होंने कहा कि वस्त्र कारोबार से जीएसटी हटने तक आंदोलन जारी रहेगा। अध्यक्ष ने आज हाजी बदरूद्दीन, हाजी अब्दुल वहीद, हाजी सैयद हसन, मौलाना अब्दुल अजीज, हाजी अब्दुल लतीफ, हाजी रिजवान, इशरत उस्मानी के साथ जिलाधिकारी योगेश्वर मिश्रा को विभिन्न मांगों वाला प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा है। इसके बाद बुनकरों की समस्या का निराकरण तथा शहर में अमन-चैन कायम रखने के लिए जुमा की नमाज के बाद मस्जिद नीम तल्ले तथा उससे लगायत छोटी मस्जिद कटेहर, बड़ी मस्जिद कटेहर, अंजुमन की मस्जिद में दोपहर डेढ़ बजे से एक साथ दुआख्वानी हुई।