सऊदी अरब के रुख़ ने ईरान, क़तर और तुर्की को एक दूसरे से निकट कर दिया – अरब मीडिया
करिश्मा अग्रवाल
अरब संचार माध्यमों का कहना है कि मुहम्मद बिन सलमान के सत्ता में आने के बाद सऊदी अरब की कड़ी नीतियों के कारण क्षेत्रीय तनाव को नियंत्रित करने के लिए ईरान, क़तर और तुर्की एक दूसरे के निकट आ गए।
अरबी भाषा की वेबसाइट अलमानितूर ने लिखा है कि तेहरान व दोहा के बीच हमेशा कुछ सीमा तक संबंध रहे हैं जिसके चलते वे मतभेदों के बावजूद क्षेत्रीय तनावों को कम करने के लिए एक दूसरे से संपर्क में रहे हैं। वे कभी भी एक दूसरे के घटक नहीं रहे लेकिन एक दूसरे के दुश्मन भी नहीं बने जबकि वर्ष 2012 से वे सीरिया में परोक्ष रूप से एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। यह विचित्र संबंध क्षेत्र में ईरान के मुख्य विरोधी सऊदी अरब को पसंद नहीं आया और उसने इस पर चिंता जताते हुए इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माना। इस बात का उल्लेख उसने पांच जून को क़तर को पेश की गई अपनी मांगों की सूचि में भी किया है। इन मांगों पर क़तर की प्रतिक्रिया अगले 48 घंटे में ही सामने आ गई जब क़तर के युवा नरेश ने ईरान के राष्ट्रपति से टेलीफ़ोनी संपर्क में कहा कि वे ईरान से द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार का स्वागत करते हैं.
इस वेबसाइट का कहना है कि अरब देशों के संबंधों में पैदा होने वाले संकट से ईरान का कोई संबंध नहीं है बल्कि क़तर पर दबाव डालने के लिए ज़बरदस्ती उसका नाम इस मामले में घसीटा जा रहा है लेकिन यह हथकंडा सफल नहीं रहा है क्योंकि ईरान ने क़तर के साथ सहयोग की नीति अपना कर सऊदी अरब को उसके दृष्टिगत लक्ष्यों तक पहुंचने से रोक दिया है। ईरान के विदेश मंत्री और उनके सहायकों ने भी तुर्की और क़तर जैसे देशों की यात्राएं करके अरब देशों में पैदा होने वाले संकट को नियंत्रित करने की कोशिश की। ईरान को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि क़तर और तुर्की उसकी क्षेत्रीय नीतियों से पूरी तरह सहमत नहीं हैं लेकिन बहरहाल वे तेहरान को अपना दुश्मन भी नहीं समझते। यही वजह है कि सऊदी अरब अपनी चरमपंथी नीतियों के चलते इन तीनों देशों का दुश्मन बन गया है।