देख कर लाश क़ासिम की शैय ने कहा, किस तरह तेरा लाशा उठाये हुसैन
घोसी (मऊ)। नगर के बड़ा गांव स्थित स्व०मोहम्मद हसन के मकान से शनिवार की रात्रि 9:00 बजे जुलजनाह वो अलमे मोबारक का जुलूस निकाला गया। जलूस अपने परम्परागत रास्तों से होता हुआ जो देर रात लगभग 1:00 बजे सदर इमाम बारगाह पर दफन हुआ। जुलूस में भारी संख्या में शिया समुदाय के लोग उपस्थित रहे।
जुलूस की शुरुआत मौलाना मोहम्मद मोज़ाहिर हुसैन की तकरीर से हुई उन्होंने कहा कि 28 रजब सन 60 हिजरी को हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जो काफिला लेकर मदीने से चले थे दो मोहर्रम सं 61 हिजरी को इमाम हुसैन अ० स० का घोड़ा एक स्थान पे रुक जाता है तब इमाम ने एक के बाद दो इसी तरह सात या नौ घोड़े बदले लेकिन किसी भी घोड़े ने क़दम आगे नहीं बढ़ाया तो आप ने वहां लोगो को बुलाके के पूछा कि इस जगह का नाम क्या है किसी ने नैनवां कहा तो किसी ने सित्ताये फोरात कहा यहां तक की कई लोगो ने अलग अलग नाम बताया तो इमाम हुसैन ने पूछा क्या इन नामो के आलावा कोई और भी नाम है। तो एक बूढ़े आदमी ने कहा हां मौला इसे कर्बला भी कहते है। जैसे कर्बला का नाम सुना घोड़े से नीचे उतरे एक मुट्ठी मिट्टी लेकर सूंघी और कहा की यही वो जगह है जहां हमारे ख़ैमे लगेंगे।इस तरह ये हुसैनी काफिला 2 मोहर्रम को कर्बला पहुंचा और नहरे फोरात के किनारे खैमे लगाए गए। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कर्बला पहुंचने की याद में हर साल की तरह इस साल भी जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में अंजुमन सज्जादिया के नौहखानो ने नौहा पढ़ा
१. मक़तल से खैमगाह पे आया है ज़ुल्जनाह
रन से खबर इमाम की लाया है ज़ुल्जनाह
२. देख कर लाश क़ासिम की शैय ने कहा
किस तरह तेरा लाशा उठाये हुसैन
जिसे सुनकर उपस्थित अजादारों की आंखें नम हो गयी और अजादारों ने नम आंखों से सहजादी फ़ातिमा बिन्ते रसूल को उनके लाल का पुरसा दिया। इस अवसर पे ग़ज़नफर अब्बास, साजिद हुसैन, शमीम हैदर, इफ़्तेख़ार हुसैन, शाहिद हुसैन, तफहीम हैदर, ज़फर अब्बास, अली हैदर, गुलाम हैदर, अहमद औन, लुकमान हैदर, नफीस असगर, खमखार हुसैन, सफदर हुसैन, नसीम, मज़हर हुसैन, सिब्ते हसन,इब्ने हसन, काज़िम हुसैन, तनवीर अब्बास, बाकर रज़ा, अज़हर हुसैन, मो हसन, असगर अली, मुंतज़िर अब्बास, बाबू असगर, परवेज़ खान, इशरत खान, मुस्लिम अब्बास,शौकत अली, नजमुल हसन, मुख्तार हुसैन एवं भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।