आखिर ये कैसी आस्था है.
कानपुर. अगर आस्था की बात करे तो ईश्वर का हर कण कण में वास है. ईश्वर हमारे ह्रदय में है. ईश्वर के सच्चे रूप के तरह हमारे घर में हमारे माँ पिता है. मगर आस्था फिर भी आस्था होती है. समाज के सभी वर्गों में इस आस्था का वास होता है. हर वर्ग की आस्था का अपना अपना निर्धारण वह वर्ग ही करता है. मगर दूसरा वर्ग अगर उनकी आस्था पर सवाल उठाये तो उसको किसी अन्य चश्मे से देखा जाने लगता है.
आप अब इसी खबर को देख लीजिये. इस खबर को आपको बताने के पहले हम आपको बता दे कि अगर आस्था के साथ ऐसा खिलवाड़ किसी अन्य वर्ग अथवा सम्प्रदाय के लोग करते तो शायद शहरों में आग लग जाती. मगर हमारी आस्था है हम उस आस्था को ही समाज में फेके रहेगे तो कैसे आस्था की बात कर सकते है.
इसका जीता जागता उदहारण आपको कानपुर के मसकन घाट पर देखने को मिल जायेगा. कानपुर शहर के कैंट के मसकन घाट के पास एक गड्ढे में पानी डालकर आस्था को उस गड्ढे में प्रवाहित करने वाले यह भूल गये कि अभी से दो मिनट पहले जिसको हम गड्ढे में डाल कर जा रहे है उसको बच्चे खेलने के दृष्टि से इधर उधर फेकेंगे. यही काम अगर किसी अन्य वर्ग का इंसान कर दे तो इसके ऊपर एक बड़ी बहस शुरू हो जायेगी और शहर की फिजा ख़राब हो जायेगी मगर यहाँ तो आस्था सिर्फ अपने घर में हुई पूजा तक ही सीमित है अथवा धर्म के नाम पर लड़ने के लिये ही सीमित है.
आपको बताते चले कि गणेश पूजा इसलिए सबसे पहले की जाती है क्योंकि उनको भगवान शंकर जी का आशीर्वाद मिला था जो भी सर्वप्रथम पूजा करेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होगी इसीलिए हम लोग शुभ लाभ लिखते हैं क्योंकि वक्त श्री गणेश जी के पुत्र हैं कोई भी कार्य करने से पहले हिंदू समाज के लोग श्री गणेश करते हैं उसी जगह कैंट में मसकन घाट गंगा के बगल में एक गड्ढे में पानी डालकर गणेश विसर्जन दुर्गा विसर्जन गणेश लक्ष्मी विसर्जन गंगा कुबेर विसर्जन किया गया और फिर भूल गये इस विसर्जन के बाद की इस गड्ढे को और भर दिया जाये जिससे इस जगह विसर्जित हुई मूर्तियों का सम्मान हो सके. मगर ऐसा नहीं होता है और हम आकर अपने घरो में सो जाते है.
आप इन तस्वीरो से देख सकते है कि आस्था का ढिंढोरा पीटने वाले लोग आखिर उस आस्था का कितना सम्मान करते है. इसको ऐसे ही छोड़ देते है और फिर कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता है. अगर ध्यान देता होता तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती और इस विसर्जन स्थल को साफ़ करके इसके ऊपर मिटटी भर दिया जाता. अब आप खुद सोचे की आखिर खुले गड्ढे में जाकर छोटे छोटे बच्चे खेलते हुवे इन मूर्तियों को इधर उधर कर देते है और अगर इसी मूर्ति को ये आस्था के नाम पर अपनी दिकन चलाने वाले लोग आस्था का सम्मान करते तो शायद यह तस्वीर उभर कर सामने नहीं आती