जनाबे अली अकबर की याद में निकाला गया ताजिये, छलक पड़े आंसू
मऊ। आठवीं मोहर्रम को जनाबे अली अकबर की याद में निकाला गया जुलूस। वह जवान लाल अली अकबर जो कि अपने बाप इमाम हुसैन से यजीद के खिलाफ जंग की इजाजत मांगी और जवान बेटे को इमाम हुसैन ने जंग की इजाजत दी इमाम हुसैन ने अपने जवान बेटे अली अकबर को जंग करने के लिए घोड़े पर सवार किया। जनाबे अली अकबर जंग के लिए रवाना हुए। जैसे-जैसे घोड़ा आगे बढ़ता है वैसे-वैसे इमाम हुसैन आगे बढ़ते हैं । जितनी तेज़ी से घोड़े की रफ्तार बढ़ती है। इमाम हुसैन की रफ्तार भी उतनी ही तेज हो जाती है। जैसे ही जनाबे अली अकबर को महसूस होता है कि पीछे से कोई दौड़ा चला आ रहा है। वैसे ही जनाबे अली अकबर पीछे मुुड के देखते हैं की बूढ़ा बाप दौड़ा चला आ रहा है। जनाबे अली अकबर ने घोड़ा रोका और कहा बाबा आप ही ने तो जंग की इजाजत दी है। फिर क्यों आप पीछे से दौड़े चले आ रहे हैं। इमाम हुसैन कहते हैं बेटा जब तुम्हारी कोई जवान औलाद जंग के लिए जा रही होता तब तुम्हें एहसास होता एक बाप का दर्द जनाबे अली अकबर कहते हैं। बाबा अगर आप कहें तो मैं ना जाऊं। इमाम हुसैन कहते हैं नहीं बेटा तुम जाओ । लेकिन हमारी एक ख्वाहिश है कि तुम पीछे मुड़ मुड़ कर हमें देखते रहना बेटा। जैसे ही जनाबे अली अकबर जंग के लिए मैदान में पहुंचें तो जंग करना शुरू किया है ऐसी जंग जैसे दादा अली किया करते थे। एक ज़ालिम ने जनाबे अली अकबर के सीने में बरछी लगाई। अली अकबर घोड़े से जमीन पर गिर जाते है।
उसी की याद में आठवीं मोहर्रम को जनाबे अली अकबर की याद में जुलूस निकाला गया। जिसमे अंजुमन बाबुल इल्म जाफ़रिया ने अपने मकसुस अंदाज़ में नौहाख्वानी व सीनाजनी पेश किया। जिसको सुन अजादारों की आंखें नम हो गई। इस पूरे जुलूस में मुख्य रूप से ताजिए दार सैयद अली अंसर, मकसूद Haider रामेर इरफान जावेद मासूम आसिफ रिजवी अली रजा आदि लोग मौजूद रहे ।