जितेन्द्र कुमार की कलम से एक कविता….जंग पर गये एक फौजी की दिल से निकली दास्ताँ
साथियों आज हम जो अपना राष्ट्रीय पर्व बिना किसी अड़चन के मना रहे है। उसमें हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानियों को मेरा और पूरे पी.एन. एन-24 न्यूज़ की तरफ से शत्-शत् नमन। वर्तमान की बात की जाए तो हम जिस सुख शांति से अपना राष्ट्रीय पर्व मना रहे है उसमे सबसे बड़ा हाथ बार्डर पर तैनात हमारे जवानों का है। हमारे जवान जो अपनी जान की परवाह न करते हुए रातों दिन बार्डर पर तैनात रहकर हमारे देश की रक्षा करते है। अगर हम सोचें तो, वो भी किसी बूढ़े बाप की हाथो की लाठी, किसी माँ की आँखों का तारा , किसी बहन का भाई दुलारा , होते हैं।
वो जवान जो हमारे लिए अपना घर, परिवार , दोस्त, यार, की परवाह न करते हुए हमारे लिए हमारे देश के लिए दिन रात बार्डर पर बंदूक लेकर खड़े रहते है। उन्हें ये नही पता होता है कि कब, कहा से, किस तरफ से दुश्मन की गोली आ जाये। एक फ़ौजी जो जंग के दौरान अपने दूसरे साथी से कहता है कि अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे घर पर संदेशा लेकर जाना तो प्रत्यक्ष रूप से मेरे परिवार को मेरे शहीद होने के बारे में न बता कर इशारो में कहना.
साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना….
मेरा हाल जो मेरी माँ पूछे तो, दो आँसू छलका देना।
इतने पर भी न समझे तो, जलता दीप बुझा देना।।
साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना….
मेरा हाल जो मेरी बहना पूछे तो,सूनी कलाई दिखा देना।
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ दिखला देना।।
साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना…..
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक को तुम झुका लेना।
इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिंदूर मिटा देना।।
साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना…..
जो हाल मेरे पिता पूछे तो, हाथों को सहला देना।
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना।।
साथी घर जाकर मत कहना संकेतो में बतला देना…..
मेरा हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका तुम सहला देना।
इतने पर भी न समझे तो, सीने से उसको लगा लेना।।
साथी घर जाकर मत कहना , संकेतों में बतला देना…..
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना।
इतने पर भी न समझे तो, सैनिक धर्म बता देना।।
साथी घर जाकर न कहना, संकेतो में बतला देना……….