यूपी पीसीएस जे 2018 की मुख्य परीक्षा में कोई बदलाव नहीं

कनिष्क गुप्ता

इलाहाबाद । यूपी पीसीएस जे परीक्षा 2018, में भाषाई भेदभाव को खत्म करने की मांग के सिलसिले में यूपी के सभी सक्षम दरवाजों तक पहुंचने वाले युवाओं को तगड़ा झटका लगा है। परीक्षा में पूर्ववत व्यवस्थाएं ही रहेंगी। यानी अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी भाषा के 200 अंकों के प्रश्न पत्र में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होगा। परीक्षा न्यायिक अधिकारियों के चयन की है और हाईकोर्ट की नियमावली में बदलाव नहीं हुआ है।

उप्र लोक सेवा आयोग, पीसीएस परीक्षा 2018 की प्रक्रिया शुरू करने के ठीक बाद पीसीएस जे के 330 पदों पर चयन की प्रक्रिया शुरू करेगा। 2017 सत्र शून्य जाने के बाद 2018 में हो रही पीसीएस जे परीक्षा के लिए अभ्यर्थियों को लंबे समय से प्रतीक्षा थी। लेकिन, परीक्षा में भाषाई भेदभाव खत्म करने, अवसरों की बाध्यता खत्म करने सहित अन्य मांगों को लेकर न्यायिक सेवा समानता संघर्ष मोर्चा ने दिसंबर 2017 से मार्च 2018 तक कई चरण में आंदोलन किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आइके चतुर्वेदी के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश से मुलाकात की, राज्यपाल रामनाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिलकर अपनी समस्या रखी। इनकी मांग में पीसीएस जे की मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी के अनिवार्य विषय के पेपर को दो भागों में करने यानी 100 नंबर का अंग्रेजी का प्रश्न पत्र और 100 नंबर का ही हिंदी का प्रश्न पत्र करने को लेकर थी। जबकि आयोग इसी साल पीसीएस जे परीक्षा की जिस तरह से तैयारी कर रहा है उसमें सभी प्रक्रिया पहले जैसी ही हैं। इससे हिंदी भाषी अभ्यर्थियों में आक्रोश एक बार फिर पनपने लगा है।

यूपीपीएससी के सचिव जगदीश ने बताया कि न्यायिक सेवा के अधिकारियों का चयन करने की नियमावली हाईकोर्ट से ही बनती है। हाईकोर्ट में अधिकांश कामकाज अंग्रेजी में होते हैं। हालांकि अधीनस्थ न्यायालयों में कामकाज हिंदी में हो रहे हैं। फिलहाल हाईकोर्ट ने नियमावली में कोई बदलाव नहीं किया है इसलिए परीक्षा भी पूर्ववत ही रखी गई है।

फिर बनेगी आंदोलन की रणनीति

न्यायिक सेवा समानता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रामकरन निर्मल और सदस्य रजनी मद्धेषिया ने कहा है कि मांगे जायज हैं। यूपी और अन्य हिंदी भाषी राज्यों के अधिकतर प्रतियोगी इस परीक्षा में शामिल होते हैं। ऐसे में उनकी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही पीसीएस जे परीक्षा कराई जानी चाहिए। मांगों पर विचार नहीं किया गया है इसके खिलाफ फिर से आंदोलन की रणनीति तय करेंगे।

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