क्या कतर अकेले ही सऊदी अरब यूएई बहरैन और मिस्र पर भारी पड़ गया
आफताब फारुकी
इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। सऊदी अरब क़तर से लगने वाली अपनी सीमा पर नहर खोदने जा रहा है, ताकि उसे एक द्वीप में बदल दिया जाए। लेकिन क्या अपनी आंतरिक समस्याओं से मीडिया का ध्यान हटाने के लिए कोई हथकंडा है?
क़तर संकट को शुरू हुए क़रीब एक साल बीत चुका है, सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात, बहरैन और मिस्र ने उसकी ज़मीनी, समुद्री और वायु घेराबंदी कर रखी है, लेकिन इसके बावजूद दोहा को घुटने टेकने पर मजबूर करने और उसे एक पिछलग्गू राज्य बनाने में रियाज़ पूर्ण रूप से नाकाम हो गया है।
विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि क़तर के पड़ोसी देश न केवल अपनी वर्चस्ववादी नीतियों में नाकाम हुए हैं, बल्कि वे क़तर को एक विजेता बना रहे हैं, क्योंकि अब रियाज़ के प्रभाव से वह पूरी तरह से आज़ाद हो गया है। क़तर ने रियाज़ की क्षेत्रीय एवं विदेश नीतियों के दबाव में आकर ईरान के साथ अपने अच्छे संबंधों को तोड़ने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया याज़ की क्षेत्रीय एवं विदेश नीतियों के दबाव में आकराकाम होएमुद्री और वायु घेराबंदी कर रखी है, लेकिन इसके बावजूद दोहा को घुट है।
सऊदी अरब ने क़तर के तेल और गैस स्रोतों पर भी नज़रें गाड़ रखी हैं और उसे विश्व भर में दोहा स्थित अल-जज़ीरा टीवी चैनल के प्रभाव से भी काफ़ी समस्या है। हालांकि क़तर संकट में दोहा पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली होकर उभरा है। घेराबंदी से जो लक्ष्य सऊदी अरब और उसके सहयोगी देश साधना चाहते थे, परिणाम उसके बिल्कुल विपरीत निकले हैं, आर्थिक रूप से भी और भूराजनीतिक रूप से भी। क़तर ने सऊदी अरब, यूएई, बहरैन और मिस्र को मात देकर यह बाज़ी जीत ली है। उसने अपने नए सहयोगी और राष्ट्रीय एयरलाइंस कंपनी की उड़ानों के लिए नए मार्ग खोल लिए हैं।