यकजहती की मिसाल है सूफी संत सय्यद नूर मुहम्मद (परहेजी बाबा) का अस्ताना

संजय ठाकुर

मधुबन/मऊ : रहीमन संगत साधु , ज्यो गंधी का वास। जो कुछ गंधी दे नही, तो भी वास सुवास। भक्त कवि रहीम कि उक्त पंक्तिया जीवन्त हो उठती है, क्षेत्र स्थित सुफी संत परहेजी बाबा के मज़ार के सानिध्य में आते ही. बाबा के मज़ार के चारो तरफ फैला शांति सदभाव का अमामेय वातावरण दर्शानार्थियों के नेक नीयत एव शान्ति कि अदभुत भावना का संचार करता है

क्षेत्र के मधुबन बेल्थरा रोड मार्ग स्थित ताल रतोय के किनारे परहेजी बाबा कि मज़ार जो लोगो को प्रेम भक्ति विश्वास और शान्ति का संदेश देती सम्भवतः हिंदुस्तान के किसी किसी पहली सिद्ध पुरूष कि मज़ार होगी जिसके ठीक बगल में एक हिन्दु बालक कि मज़ार बनी हुईं है। बाबा के साथ साथ हिंदु बालक कि मज़ार पर लोग मन्नते मागते श्रद्धा के साथ मत्था टेकते है बताते है कि लगभग 500 वर्ष पुर्व इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाने वाले सूफी संत सैय्यद नुर मोहम्मद पवित्र शहर मक्का से लगभग 600 वर्ष पुर्व अपने सहयोगियों के साथ चले और पुरा हिंदुस्तान घुमते घुमते इस सघन बन व ताल क्षेत्र को अपनी कर्म स्थाली बना लिया जहा इन्होनें ने अपनी इहलीला समाप्त कर लिया

परहेजी बाबा कि ख्याति यहां आने के साथ ही दुर दुर तक फैलनी शुरू हो गयी वह अपना अधिकांश समय खुदा कि इबादत व दीन दुखियों कि सेवा में लगाते थे खुदा कि इबादत व लोक मंगल यह दो ही काम उन के सामने थे परहेजी बाबा के लोक कल्याण के हज़ारो किस्से व उन के दैविय शक्तियों का बखान करने वाली किवदायन्तिया पास पड़ोस के बुजुर्ग लोग आज भी बड़े मनोयोन से एक दुसरे को सुनाते है अपने दरबार मे आने वाले मुरीदों को बाबा ने कभी निराश नही किया यु तो यहां सप्ताह के प्रत्येक बृहस्पतिवार को मेला लगता है लेकिन ईद के दुसरे दिन लगाने वाले उर्स का ऐतिहासिक महत्व है आस पास के कुछ सम्भ्रान्त लोगो द्रारा दैविय कारणो से पीड़ित लोगों के लिये लंगर चलाने कि परम्परा आज भी विधमान है बाबा कि मज़ार पर मत्था टेकने पर असीम शांति व सकुन कि अनुभूति मिलती है

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