गंगा जमुना तहजीब से मनाई गयी ईदु-उल-फित्र, जाने क्यों मनाया जाता है ईद
फारूख हुसैन
लखीमपुर खीरी. देश में सभी जगहों पर हर वर्ष की तरह इस बार भी गंगा जुमना तहजीब के साथ के ईदुलफित्र मनाई गयी । ईदुलफित्र के इस मुबारक मौके पर देश में अमन चैन और भाईचारे की दुआ के साथ नमाज अदा की गई और नमाज के बाद सभी मुस्लिम भाइयों ने एक दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी और साथ ही मुबाकर मौके पर मुस्लिम के साथ साथ दूसरे धर्मो के लोग भी वहां पहुंचे और वहां सभी मुस्लिम भाइयों के गले मिले और आपसी मतभेदों को दूर कर आपसी सौहर्द कायम किया। जिसमें जिले के जिलाधिकारी शैलेन्द्र सिंह और पुलिस अधिषक राम लाल वर्मा ने भी सभी को मुबारक बाद दी। इस मौके पर पुलिस प्रशासन भी काफी सतर्क दिखाई दिया और जिले में हर मस्जिदों के बाहर पुलिस प्रशासन मुस्तैद दिखाई दिया। इस मौके पर सबसे ज्यादा खुशी बच्चों के चेहरे पर दिखाई दी क्योकि इस मौके पर उन्हे नये नये कपड़े पहनने को मिलते हैं खूब ढेर सारी चीज खाने को मिलती हैं और सभी से उनको ईदी भी मिलती है. ईद के इस त्योहार पर जगह जगह मेला भी लगाया गया जहां पर रंग बिरगीं दकाने सजायी गयी साथ ही चाट पकौड़ी का दुकाने भी लगायी गयीं और झुले भी लगाये गये।
आखिर क्या है ईद का त्योहार
जी हां आज पूरे देश में मुस्लिम धर्म का सबसे बड़ा ईदुलफित्र का त्योहार माना जाता है यह त्योहार आपसी मेलजोल मोहब्बत को हमेशा कायम रखने वाला आपसी शौहार्द का त्योहार है सही मायने में आपको बता दे कि यह त्योहार गंगा जमुना तहज़ीब भी बोला जाता है। मुस्लिम धर्म का यह त्योहार वर्ष में एक बार मनाया जाता है इस त्योहार से पहले एक माह के रोजे भी रखे जाते हैं और यह रमज़ान का महीना सबसे पाक महीना माना जाता है मुस्लिम धर्म के अनुसार इस माह में लोगों के सभी गुनाहो को माफ कर दिया जाता है और इस पाक महिने में हर गुनाहों से तौबा भी कर ली जाती है और यह भी कहा जाता है कि यदि कोई इस महिने में पूरे रोजे रखता है और खुदा की इबादत करता है सही मायनो में यह ईद उसके लिये भी होती है और इसके साथ ही मुस्लिम धर्म के अनुसार ईद की नमाज पढने से पहले जकाअत फितरा भी निकाला जाता है जिन पर गरीबों का हक होता है
इस ज़कात और फितरे के सम्बन्ध में नियम यह है कि इसमे सबसे पहला हक पड़ोसी दूसरा हक रिश्तेदार और उसके बाद किसी और का होता है जिसको जरूरत हो। जी आपको यह भी बता दे कि इस त्योहार में सुबह सबसे पहले ईद की नमाज पढी जाती है
ईद मनाने का मुख्य कारण
मुस्लिम धर्म के अनुसार ईदुल फित्र का यह त्योहार मनाये जाने का कारण है कि इस दिन इस्लामिक कैलेंडर या हिजरी में रमजान के महीने को साल का नौवां महीना माना गया है और रमजान के आखिरी दिन यानी आखिरी रोजा चांद को देखकर खत्म किया जाता है। ईद मुबारक चांद शाम को दिखने पर अगले दिन ईद का त्यौहार मनाने की परंपरा मानी जाती है। ईद को लोग ईद-उल-फित्र नाम से भी जानते हैं कहा जाता है कि हमारे पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में शानदार विजय हासिल की थी। इसी युद्ध को जीतने की खुशी में लोगों ने ईद का त्योहार मनाना शुरू कर दिया था। 624 ईस्वी में पहली बार ईद उल फित्र का त्योहार मनाया गया।
आखिर क्यों कही जाती है यह मीठी ईद
ईदुल फित्र के इस त्योहार को मीठी ईद भी बोला जाता है क्योकि यह त्योहार रमजान का पवित्र माह खत्म हो जाने के बाद मनाया जाता है और 30 दिनों तक रोजा रखने के बाद आज के दिन यह त्यौहार देश भर में पूरे जोश और उत्साह से मनाया जा रहा है. मुसलमानों में ईद का त्यौहार मूलरूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है. ईद के दिन हर मुसलमान के घर में सिवई बनायी जाती हैं और इसके साथ ही मिठाइयों का सेवन भी किया जाता है और मिठाइयों का आदान-प्रदान भी किया जाता है. यही वजह है कि इसे मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है।
आपको बता दे कि पूरे माह रोजा रखने के बाद ईद के अगले दिन से सामान्य दिनों की तरह ही खाना खाया जाता है और सभी मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया भी अदा करते है कि उन्होंने महीने भर का रोजा रखने की ताकत दी. इसके साथ-साथ ईद के दिन गले मिलकर पुराने गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं ।जिस तरह ईद उल-अज़हा, जिसे बकरा ईद भी कहा जाता है, पर मांस का सेवन किया जाता है, उसी तरह ईद उल फितर पर परंपरागत मिठाइयों का सेवन किया जाता है. आज के दिन सभी लोग अल्लाह से सुख शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं. जैसे मांस के बिना बकरा ईद को अधूरा माना जाता है उसी तरह ईद उल फितर को किमामी सेवईं और शीर खुरमा के सेवन के बिना अधूरा माना जाता है. शीर खुरमा सेवइयों को दूध में भिगोकर उसमें ड्राई फ्रूट्स को डालकर बनाया जाता है और किमामी सेवईं सेवइयों को दूध में भिगोकर उसपर शीरे का मिश्र और नारियल,खोये का मिश्र डालकर बनाया है ।