समाजसेवी की पहचान बन चुका है अज्ञात गुमशुदा तलाश ग्रुप

मो आरिफ समाज सेवी

मो आफताब फ़ारूक़ी

इलाहाबाद। ‘न उधव का लेना, न माधव का देना’ की तर्ज पर अब तक कई गुमनामों को उनकी पहचान दिलाने का एक सहारा साबित हो रहे हैं। प्रदेश में ही नहीं अन्य प्रान्तों तक अपनों से बिछड़े या किसी दुर्घटना के शिकार हुए लोगों को उनके परिजनों तक सूचना देने में लगे रहने वाले समाजसेवी मोहम्मद आरिफ की अब अपनी पहचान ‘अज्ञात गुमशुदा तलाश’ बन चुका है।
शहर के दायरा शाह अजमल निवासी मोहम्मद आरिफ का अपना छोटा कारोबार है। वह उसे संभालने के साथ ही पत्रकारिता में रूचि रखते हैं। इस चकाचैंध की दुनिया में लगभग तीन वर्ष पूर्व वह शहर में स्थित स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में टहल रहे थे कि बंगाल की रहने वाली मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला पर पड़ी तो उसके पास गये, वह भूख से परेशान थी। उन्होंने उसे कुछ खाने के लिए दिया और उसका नाम व पता जानने का प्रयास किया, महिला कुछ शिक्षित थी, उसने बंगाली भाषा में अपना नाम व पता बताया, जिसे लेकर वह एक बंग्ला भाषा के जानकार के पास गये तो उसका पता मिल गया। यहीं से उनका यह प्रयास शुरू हुआ और उसके परिजन बंगाल से पहुंचे और उसे घर ले गये। इसी वारदात के बाद से उनके और उनके एक सहयोगी पत्रकार साथी के मन में आया और वह इस कार्य में लगातार प्रयास करने लगे और वाटसप पर उन्होंने ‘अज्ञात गुमशुदा तलाश’ नामक एक ग्रुप बनाया, जिससे वह पहले शहर के थानों, ग्रामीण क्षेत्रों के थाने जोड़ा और धीरे-धीरे अब इस कार्य में लग गए। ग्रुप एडमिन की सक्रियता के चलते प्रदेश ही नहीं अन्य प्रान्तों के अधिकारी इस ग्रुप से धीरे-धीरे जुड़ रहें है।
बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल एवं यूपी के कई लोगों की पहचान कराया। इतना ही नहीं कई जीवित लोगों को उनके परिजनों से मिलाया, जो दुवाएं देते हुए अपनों को घर ले गये। शहर के धूमनगंज के रहने वाले एक प्रोफेसर के पत्नी के शव की पहचान दो दिन के अन्दर काराया और इस कार्य से प्रोफेसर काफी प्रभावित हुए। धीरे-धीरे अब इनकी पहचान इनका ग्रुप बन गया है। उनके इस कार्य के लिए किसी भी संस्था से कोई सहयोग नहीं लेते, उनका मानना है कि इस पुनीत कार्य से समाज के परेशान परिवारों का भला हो रहा है। इस कार्य को कभी वह भूलते नहीं और रात दो बजे तक लगे रहते हैं। मोहम्मद आरिफ ने कहा कि मेरे मन में यह भाव इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में अज्ञात मरीजों को देखने के बाद आया, जब देखा कि ऐसे मरीज परेशान हैं इन्हें कोई देखभाल करने वाला नहीं है। विगत ढाई वर्षो में करीब 150 गुमुशुदा लोगों को परिजनों से मिला चुका हूं। इस कार्य में मेरा सहयोग पुलिस, अस्पताल के कर्मचारी और 108 के कर्मचारी करते हैं। इस कार्य के पीछे मेरा कोई स्वार्थ नहीं। ‘नेकी कर और आगे बढ़, इस भाव से कार्य कर रहा हूं।

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