प्रेमचंद के जीवन और साहित्य पर साहित्यिक संगोष्ठी

प्रेमचंद भारतीय समाज की सच्चाइयों के सबसे बड़े चितेरे: महाप्रबंधक

 

मो आफताब फ़ारूक़ी

इलाहाबाद। मुंशी प्रेमचंद भारतीय समाज की सच्चाइयों के सबसे बड़े चितेरे हैं। उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में समाज के सभी वर्गों के सुख-दुख का जैसा चित्रण किया है, वह विश्व स्तरीय साहित्य का अमूल्य हिस्सा है। उन्होंने विसंगतियों और विडंबनाओं के बीच जीने वाले आमजन को नायक का दर्जा दिया।
उक्त बातें महाप्रबंधक एम.सी चैहान ने उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित उनके जीवन और साहित्य पर साहित्यिक संगोष्ठी में कही। उन्होंने आगे कहा कि प्रेमचंद के पंच परमेश्वर, मंत्र, नमक का दरोगा, कफन, ईदगाह जैसी कहानियों में रोचकता, मार्मिकता, व्यंग्य, भाषा, मुहावरे और लोक जीवन के कारण एक आम पाठक सीधे ही इनके पात्रों और वातावरण से जुड़ जाता है। उन्होने कहा कि प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ भारतीय किसान के सामाजिक और आर्थिक विषमताओं, उसके तरह-तरह के शोषण और उसकी नियति का मार्मिक दस्तावेज हैं। श्री चैहान ने कहा कि मूल्यों और मानवीयता में आ रही गिरावट को रोकने के लिए जरूरी है कि हम आधुनिक संचार माध्यमों के इस युग में अपनी भाषा और साहित्य से निरंतर जुड़े रहें, उनका पठन-पाठन एवं मनन करें तथा अपनी नई पीढ़ी में भी इनके प्रति लगाव उत्पन्न करें।
संगोष्ठी के अतिथि वक्ता प्रसिद्ध समालोचक प्रो.डा. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से गरीबों, शोषितों और मजलूमों का इस्तगासा पेश किया। प्रेमचंद की वसीयत सोजे वतन से शुरू होकर कफन तक आई। प्रेमचंद का साहित्य सीधे जनता से संवाद करता है। उन्होंने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में प्रेमचंद धरती पर अमूल्य रत्न थे। उनके साहित्य को गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित आदर्शाेन्मुख यथार्थवाद का साहित्य कहना पूरा सच नहीं है। उन्होंने प्रेमचंद की कहानी ‘खूनी’ का उद्धरण देते हुए उन्हें भगत सिंह के क्रांतिकारी दर्शन से जोड़ा। प्रेमचंद के युग के सांमतवाद ने आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वर्चस्ववाद का रूप धारण कर लिया है। इससे संघर्ष करने के लिए प्रेमचंद के पात्रों को किताबों में नहीं, उन्हें जीवन में तलाशने और उन्हें बचाने की जरूरत है। मुख्य राजभाषा अधिकारी एम.एन ओझा ने कहा कि प्रेमचंद ने समकालीन एय्यारी और तिलस्म प्रधान की गल्पवादी सौदंर्य दृष्टि को स्थगित कर अपनी कहानियों में विषमताओं और विसंगतियों के नग्न यथार्थ का चित्र उकेरा है। उन्होंने अपनी सर्वाेत्तम कृति ‘गोदान’ में शोषणवादी महाजनी सभ्यता और सामाजिक आडंबरों की विकृतियों को श्रृखंलाबद्ध रूप से सामने रखा है। श्री ओझा ने मंत्र, पंच परमेश्वर, ठाकुर का कुंआ तथा नमक का दरोगा जैसी प्रेमचंद की विभिन्न कहानियों के उद्धरणों को मार्मिक और रोचक शैली में प्रस्तुत किया। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी चन्द्र भूषण पाण्डेय ने तथा उप मुख्य राजभाषा अधिकारी जान्हवी तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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