चाहो या न चाहो ईरान,इराक में सबसे मजबूत खिलाड़ी बना रहेगा:मिडिल ईस्ट आई
आदिल अहमद
एक ब्रिटिश पत्रिका ने अपने एक लेख में लिखा है कि जो भी यह सोचता है कि वह बाहर से ईरान व इराक़ के शियों के जटिल संबंधों को प्रभावित कर सकता है, वह भ्रम में है।
मिडिल ईस्ट आई की वेबसाइट ने इराक़ में हुए हालिया संसदीय चुनाव और वोटों की हाथों से गिनती की ओर इशारा करते हुए इराक़ और ईरान के संबंधों को बिगाड़ने की कुछ देशों की कोशिश को विफल बताया है। इटली के पूर्व कूटनयिक मारको कारनलोस ने इस लेख में लिखा है कि इराक़ में चुनाव के बाद दो विषयों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। एक, इराक़ी दलों के बीच सत्ता की खींचतान और दूसरे इस खींचतान का मध्यपूर्व की भूराजनीति पर पड़ने वाला प्रभाव, विशेष कर अमरीका व फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद में उसके घटकों और ईरान व प्रतिरोध के मोर्चे के बीच टकराव।
उन्होंने पहले विषय के बारे में लिखा है कि चुनाव परिणामों से पता चलता है कि किसी भी राजनैतिक गठजोड़ को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है अतः इराक़ के संचालन का एकमात्र मार्ग कुछ मुख्य दलों के बीच गठजोड़ है। इराक़ में भी कुछ अन्य देशों की तरह चुनाव में विजयी दलों के निर्धारण के लिए केवल वोटों की गिनती काफ़ी नहीं होती बल्कि वोटों का प्रतिशत भी देखा जाता है, इसमें कई महीने भी लग सकते हैं।
इटली के इस पूर्व कूटनयिक ने लिखा है कि इराक़ में सत्ता हर हाल में शियों के हाथ में ही रहेगी और कोई चाहे या न चाहे ईरान, इराक़ में सबसे मज़बूत खिलाड़ी के रूप में बाक़ी रहेगा। तेहरान बड़े संयम के साथ अपने आपको इराक़ के हर प्रकार के राजनैतिक प्रशासन से समन्वित करेगा और बग़दाद भी एेसा ही करेगा। यह काम पश्चिम की ओर से किसी भी प्रकार के एजेंडे और समय सीमा से दूर रहते हुए किया जाएगा।