पर्यटन स्थल उपेक्षित, निराश लौटेंगे श्रद्धालु
कनिष्क गुप्ता
इलाहाबाद : मुख्य द्वार पर कूड़े का ढेर। अंदर टूटे चबूतरे और इधर-उधर पड़ीं देव मूर्तियां। परिसर में जिधर-नजर घुमाओ उस ओर गंदगी का अंबार। यहां न बैठने के लिए कुर्सियां हैं, न पीने के लिए पानी। दर्शन-पूजन का भी कोई प्रबंध नहीं।
यह हाल है घूरपुर के पास वीकर देवरिया ग्राम में स्थित हैं पद्म माधव मंदिर का। द्वादश माधव के अंतर्गत आने वाले सारे मंदिरों की यही दशा है। यहां श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कुछ नहीं किया गया। इससे कुंभ में आने वाले श्रद्धालु प्रयाग से निराश लौटेंगे। कुंभ से पहले सरकार ने प्रयाग व उसके आस-पास के क्षेत्रों में स्थित प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार करने का बीड़ा उठाया है। इसमें द्वादश माधव मंदिरों के जीर्णोद्धार को प्रमुखता से कराने की योजना बनी। मकसद था प्रयाग को पर्यटन का केंद्र बनाना, ताकि कुंभ में आने वाले पर्यटक वहां जाएं।
पर्यटन विभाग को द्वादश माधव मंदिरों में पर्यटकों के बैठने, पीने के पानी, सफाई आदि व्यवस्था कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। श्रद्धालु वहां तक आसानी से पहुंच सकें। इसके लिए यातायात का प्रबंध व मार्ग दुरुस्त कराया जाना था। यह काम श्रावण मास से पहले शुरू होना था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद श्रावण में द्वादश माधव की परिक्रमा शुरू करने वाला था। हालांकि, उसके अनुरूप अभी तक कोई काम शुरू नहीं हुआ। जो कार्य होने हैं पर्यटन विभाग अभी तक उसका टेंडर भी नहीं निकलवा पाया।
प्रभुदत्त ब्रह्माचारी ने की खोज
सृष्टि निर्माण के बाद परमपिता ब्रह्माजी ने द्वादश माधव की स्थापना की। इसके बाद इसकी परिक्रमा का दौर आरंभ हुआ। त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के नेतृत्व में परिक्रमा होती थी। धीरे-धीरे परिक्रमा का दौर समाप्त हो गया। मुगल व अंग्रेजी शासनकाल में द्वादश माधव की मंदिरों को काफी नुकसान पहुंचाया गया। अधिकतर लोग उससे अनभिज्ञ हो गए। देश को आजादी मिलने के बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्माचारी ने भ्रमण करके द्वादश माधव की खोज की। फिर शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ, धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ 1961 में माघ मास में द्वादश माधव की परिक्रमा आरंभ कराई। संतों व भक्तों ने मिलकर तीन दिन पदयात्रा करते हुए परिक्रमा पूरी की। परिक्रमा 1987 तक चली उसके बाद बंद हो गई। तीन साल के अंतराल के बाद 1991 में स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्माचारी ने परिक्रमा कराई। उसके बाद से यह सिलसिला ठप हो गया।
कहां स्थित हैं कौन से माधव
वेणीमाधव : दारागंज स्थित वेणी (त्रिवेणी) तट पर वेणी माधव विद्यमान है। यह प्रयाग के नगर देवता हैं।
अक्षयवट माधव : यह गंगा-यमुना के मध्य में विराजमान हैं।
अनंत माधव : संगम तट से चंद दूरी पर दारागंज मुहल्ले में अनंत माधव का वास है।
असि माधव : शहर के ईशान कोण में स्थित नागवासुकी मंदिर के पास असि माधव वास करते हैं।
मनोहर माधव : शहर के जानसेनगंज मुहल्ले में मनोहर माधव का वास है। द्रव्येश्वरनाथ महादेव मंदिर में लक्ष्मीयुक्त मनोहर माधव विराजमान हैं।
बिंदु माधव : शहर के वायव्य कोण में द्रौपदी घाट के पास बिंदु माधव का निवास है।
मध्यवेदी के माधव
श्रीआदि माधव : यह गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थली संगम के मध्य में जल रूप में विराजमान हैं।
चक्र माधव : प्रयाग के अग्नि कोण में अरैल में स्थित हैं चक्र माधव। भगवान सोमेश्वर के मंदिर में लगा हुआ है इनका पावन स्थल।
श्रीगदा माधव : यमुनापार के नैनी, छिवकी स्टेशन के समीप श्री गदा माधव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है।
-पद्म माधव : यमुनापार के घूरपुर से आगे भीटा की ओर जाने वाले मार्ग पर वीकर देवरिया ग्राम में स्थित हैं पद्म माधव।
बहिर्वेदी के माधव
संकटहर माधव : प्रयाग के वटवृक्षों की चर्चा अक्षयवट के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण वटवृक्ष गंगा के पूर्वी तट के प्रतिष्ठानपुर स्थित संध्यावट है।
शंख माधव : गंगापार के प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के छतनाग में मुंशी के बगीचे में प्रसिद्ध है। इसे शंख माधव की स्थली माना जाता है।
इस सम्बन्ध में हमसे बात करते हुवे उपनिदेशक पर्यटन दिनेश कुमार ने कहा कि दश माधव मंदिरों में जो काम होना है उसका टेंडर 15 दिन में निकाल दिया जाएगा। टेंडर निकलने के बाद सारा काम अतिशीघ्र पूरा कराया जाएगा।