साक्षर भारत योजना के तहत काम करने वाले लाखों लोगों का सरकार पर है करोड़ो का बकाया
मु० अहमद हुसैन / जमाल
बलिया। भारत को पूर्ण साक्षर देश बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने एक दशक पूर्व साक्षर भारत मिशन का शुभारम्भ अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर आठ सितम्बर 2009 को तत्काकालिक प्रधानमंत्री ने किया था।
योजना अवधि अल्पकालिक थी और इसे समय-समय पर योजना को विस्तार देकर 31 मार्च 2018 तक वृद्धि की गई। इस योजना के तहत हर ग्राम पंचायतों में एक पुरूष व एक महिला निर्धारित मानदेय पर कार्यरत है। योजना देश के सभी राज्यों में लागू है, परंतु लोगों को रोजगार देने का दावा करने वाली भाजपा सरकारे न तो योजना को विस्तार दे सकी और नही योजना में लम्बे समय से कार्य कर रहे लोगों को मानदेय का भुगतान ही किया गया। सरकार की ढुलमुल नीति के कारण लाखों परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके है।
साक्षर भारत योजना के तहत कार्यरत लोगों से न केवल साक्षरता का बल्कि बालगणना जनगणना, मतदाता सूची का निर्माण, बीएलओ का कार्य, बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी, स्वच्छता, बाढ़ ड्यूटी आदि जनकल्याणकारी योजनाओं में सरकार ने इनकी सेवाओं का इस्तेमाल किया, परंतु सेवाओं के बदले इन्हें निर्धारित मानदेय का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। इनके चयन में वे सारी प्रक्रियायें अपनायी गई जो एक सरकारी सेवक के नियुक्ति के लिए इस्तेमाल की जाती है। प्रारम्भ में तो उन्हें नियमित मानदेय भुगतान किया गया परंतु बाद में शासन स्तर पर विभागीय लापरवाही उजागर होने लगी। महीनों का बकाया होने के बाद अब वर्षो का बकाया है। अपना मानदेय के लिए शिक्षा प्रेरकों एवं इस योजना से जुड़े जिला समन्वयक एवं ब्लाक समन्वयकों ने केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं प्रेरक संगठन के एक नेता ने राज्य की राजधानी में आत्मदाह करने की भी घोषणा कर दी। शासन के अधिकारियों द्वारा भुगतान करने के आश्वासन पर यह मामला टला। कई प्रेरकों को असामयिक निधन ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। इस योजना का परिणाम रहा है कि भारत की साक्षरता दर में आशा के अनुकूल वृद्धि दर्ज की गई है। प्रेरक संगठनों तथा समन्वयकों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खट खटाने का निर्णय लिया है। मोदी सरकार हो या योगी सरकार, प्रेरकों के बकाया मानदेय के प्रति कोई सरकार गंभीर नहीं है।
उधर मरता क्या नहीं करता? प्रेरक भी केन्द्र सरकार को सन् 2019 के लोक सभा चुनाव में सबक सिखाने पर तुले हुए है। अब देखना है कि लाखों लोगों के हक को मारकर भाजपा केन्द्र में दोबारा केशरिया ध्वज लहराती है या नहीं?