दालमंडी – पहलवानी के वर्चस्व से लेकर अपराध के वर्चस्व तक. भाग – 2

तारिक आज़मी.

वाराणसी, पहलवानी का दौर अपने शबाब पर पहुच कर उतार के तरफ घूम रहा था. अखाड़ा बीबी रज़िया धीरे धीरे वीरान होने की तैयारी कर रहा था. अखाड़ो की मिटटी सुख रही थी और उसकी जगह मशीनों के युग की शुरुआत करते हुवे जिम ले रहे थे यह वह दौर था कि लोग शरीर पर ध्यान देना कम कर चुके थे. उसके बाद फिल्मो में सुनील शेट्टी और संजय दत्त के गठीले शरीर ने एक बार फिर नवजवानों के अन्दर शरीर को भारी भरकम और गठीला बनाने का शौक परवान चढ़ने लगा था मगर अखाड़े वीरानी के कगार पर थे. शहर में बिकने वाले लंगोट और कच्छो की जगह ब्रांडेड अंडरवियर ने ले लिया था. समाज एक अमुलचुल परिवर्तन के तरफ झुक रहा था जहा इंसानों की जगह मशीने लेने लगी थी. इसी वजह से अखाड़े सुनसान और जिम आबाद हो रहे थे. शरीर को फुलाने और गठीला बनाने के दावे करती हुई कई दवा बाज़ार के अखाड़े में अपना दम्भ पीट रही थी.

इसी दौर में दालमंडी भी बदलाव की बयार के तरफ झुक चुकी थी. मार्किट कुछ इस तरह हो चुकी थी कि कोई बंदी नहीं होती थी. यह सिलसिला तो बदस्तूर जारी है जहा मार्किट आज भी किसी बंदी की परवाह नहीं करती है और दुकाने आधी ही सही मगर खुली रहती है. खैर साहब बदलाव के बयार में दालमंडी भी अछूती नहीं रही. दालमंडी में भी दबंगई अपने चरम पर पहुच चुकी थी. नई सदी की जहा शुरुआत होनी थी वही पुरानी सदी के अंत के दशक जब अपनी सांसे रोकने की तैयारी कर रहा था तब तक दालमंडी भी वर्चस्व ने बदलाव ला चूका था. इस बदलाव का सबसे बड़ा चेहरा दो गुट उभरा जहा एक गुट दालमंडी के ही रहने वाला था वही दूसरा मदनपुरा क्षेत्र का था. इस दौर में हत्याओं का भी सिलसिला शुरू हुआ था. इसकी कड़ी में एक सिवई विक्रेता की हत्या ने पहले दालमंडी में सनसनी फैला दिया. इस हत्याकाण्ड में दालमंडी के ही एक गुट का नाम उभर कर सामने आया और दालमंडी में उसका दबदबा कायम होने लगा.

इसी दौरान दुसरे गुट के तरफ से हसीन आलम नाम का युवक कहर के तरह दालमंडी पर टूट पड़ा था. इस बीच दो सभासदों की हत्या से दालमंडी दहल उठा था. इसमें सबसे अधिक जिस हत्या ने क्षेत्र में दहशत फैलाया था वह थी दालमंडी के सभासद और शहर में अपनी मजबूत छवि रखने वाले कमाल की हत्या. कमाल की हत्या में एक बार फिर से हसींन का नाम सामने आने पर जहा वह आतंक का पर्याय बन चूका था वही उसके नाम का सिक्का भी दालमंडी में जम चूका था. यह वह दौर था जब आम दुकानदारों से बड़ी वसूली होती थी जिसकी जानकारी तो प्रशासन के पास रहती थी मगर प्रशासन बिना शिकायत के कोई भी कार्यवाही नहीं कर सकता यह उसकी मज़बूरी थी.

कमाल की हुई हत्या ने दालमंडी को जहा हिला कर रख दिया था वही प्रशासन को भी इस गुट के तरफ से एक चुनौती मिली थी. इस चुनौती को स्वीकारते हुवे प्रशासन ने ताबड़तोड़ छापेमारी का क्रम चालु किया. अपराधियों को संरक्षण देने वाले कई सफ़ेदपोश उस दौर में थानो पर उकडू बैठे दिखाई दे रहे थे, और प्रशासन ने बुराई का अंत किया. आतंक का पर्याय बना हसीन पुलिस मुठभेड में मारा गया था. इस इन्कोउन्टर के बाद दालमंडी के कारोबारियों ने भी चैन की साँस लिया था और अब सबका ध्यान फिर से कारोबार की तरफ झुक गया था. इस बीच कई छोटे छोटे गुट उभरते रहे और दबते रहे. अक्सर घटनाये इस क्षेत्र में केवल इसी कारण हो जाती थी कि नाम होना है. नाम और चमक की दौड़ में क्षेत्र के कई लड़के अपराध के दुनिया में कदम रख चुके थे. अपराध अपना सर उठा रहा था और पहलवानी अपना सर झुका कर अपनी आखरी सांसे गिन रहा था. अखाडा बीबी रज़िया आबाद तो था मगर अब पहले जैसी चमक दमक नहीं बची थी.

इसके बाद कारोबार ने भी करवट लिया और प्राक्सी सीडी का दौर चल निकला. सीडी की दुनिया में ये इलाका अवैध नाम और काम ही सही मगर जमकर कमाई किया. इस दौर को आप इंटरटेनमेन्ट माफिया युग भी कह सकते है जब सैकड़ो दुकाने सीडी की इस क्षेत्र में होती थी. अधिकतर मुख्य दूकान किसी भी चीज़ की रहे मगर उसके आगे एक टेबल पर सीडी ज़रूर मिलती थी. दूर दराज़ के दुकानदार से लेकर खरीदार तक इस क्षेत्र में आकर खरीदारी करते थे. जानकारों की माने तो कुछ तो इन लोगो को संरक्षण था और दूसरा सबसे बड़ा कारण इस क्षेत्र में कम होती पुलिस पकड़ भी था. हर तरफ अवैध सीडी की दुकानों से यह मार्किट गुलज़ार रहने लगी थी.

इस दौरान कई बार पुलिस ने बड़ी कार्यवाही किया मगर पेचीदा दलीलों की सी गलियों के आगे पुलिस कार्यवाही कभी पुर्ण नहीं हो पाती थी और कही न कही इस कारोबार की चमक दमक और अंधी कमाई ने नये लड़के क्या पुराने लोगो को भी अपने तरफ आकर्षित किया हुआ था. सभी अच्छी प्रॉफिट और बढ़िया सेल के पीछे भागते दिखाई दे रहे थे. इन कारोबारियों में कई पर पुलिस ने कड़ी कार्यवाही किया. कइयो पर तो आज भी मुक़दमे चल रहे है. धीरे धीरे कारोबार जब मंदे की तरफ झुका और मल्टीमीडिया सेट बाज़ार में आये तो फिर इस कारोबार का भी धीरे धीरे नहीं बल्कि दिन दुनी रात चौगुनी की रफ़्तार से पतन होने लगा. और आखिर में यह सीडी का कारोबार खत्म हो गया.

अगले अंक में हम आपको बतायेगे कि कैसे इस क्षेत्र में हुआ सनी गुट का दबदबा कायम. जुड़े रहे हमारे साथ

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