इस समय के ख़ास हालात में उत्तरी कोरिया के विदेश मंत्री ने क्यों किया ईरान का सफर

आदिल अहमद

उत्तरी कोरिया के विदेश मंत्री ने एसे हालात में ईरान का सफ़र किया है कि जब अमरीका के राष्ट्रपति दोनों ही देशों पर कठोर प्रतिबंध लगाने के प्रयास तेज़ कर रहे हैं।

अमरीकी मीडिया ने इस दौरे को विशेष रूप से महत्व दिया और अमरीका के बड़े मीडिया संस्थानों ने इस यात्रा के निहितार्थ खोजने के प्रयास किए। न्यूज़ वीक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उत्तरी कोरिया के विदेश मंत्री री यूंग हू एसे हालात में बुधवार तेहरान पहुंचे कि दोनों ही देशों के ख़िलाफ़ ट्रम्प प्रशासन आर्थिक प्रतिबंध कठोर करने के प्रयास में है। इन हालात में दोनों ही देशों के अधिकारियों की यह कोशिश होगी कि किस तरह अमरीकी प्रतिबंधों को नाकाम कर दिया जाए।

उत्तरी कोरिया और अमरीका के बीच सिंगापुर में शिखर वार्ता हुई थी और अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने इसे अपनी सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि माना था और यह संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि वह बहुत बड़ी लड़ाई जीत गए हैं लेकिन यह बात शुरू से स्पष्ट थी कि उत्तरी कोरिया को अमरीका पर कोई भरोसा नहीं है जबकि अमरीकियों की कोशिश यह थी कि उत्तरी कोरिया की सरकार अमरीका के वादों पर भरोसा करके व्यवहारिक क़दम उठाए और अपना परमाणु तथा मिसाइल कार्यक्रम पूरी तरह ध्वस्त कर दे। यहीं से बात बिगड़ गई। उत्तरी कोरिया ने अमरीकियों के वादे पर भरोसा नहीं किया और अमरीकियों ने अपना वादा पूरा नहीं किया वैसे वह पहले से ही वादा पूरा न करने का फैसला कर चुके थे।

उत्तरी कोरिया के  सरकारी मीडिया ने अमरीका की आलोचना की कि उसने वादे के अनुसार प्रतिबंधों को समाप्त नहीं किया। उधर संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उत्तरी कोरिया ने परमाणु हथियार ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की है जबकि दूसरी ओर से मिसाइल कार्यक्रम को और भी विस्तार दे रहा है। इसके कुछ ही दिन बाद अमरीका ने एक रूसरी बैंक को उत्तरी कोरिया से सहयोग करने के कारण ब्लैकलिस्ट कर दिया। उत्तरी कोरिया की दो कंपनियों और एक नागरिक को उनकी आर्थिक और वित्तीय गतिविधियों के कारण प्रतिबंधों के दायरे में लाया गया।

अमरीकी प्रशासन ने मंगलवार से ईरान पर भी वह प्रतिबंध फिर लगा दिया है जो परमाणु समझौते के बाद हटा लिया गया था। ईरान के संबंध में ट्रम्प की सोच यह है कि प्रतिबंध कड़े करके वह इस देश के भीतर उथल पुथल मचा देंगे और फिर आख़िरकार उसे वाशिंग्टन की मांगें स्वीकार करने पर मजबूर कर देंगे।

ट्रम्प सरकार की मुशकिल यह है कि वह अपने चश्मे से पूरी दुनिया को देखती है लेकिन इस सच्चाई को भूल जाती है कि दुनिया के अन्य देश और अन्य शक्तियां अपनी अलग योजना और अलग दृष्टिकोण रखती हैं।

इस समय विश्व स्तर पर जो बदलाव है ट्रम्प सरकार उसकी गहराई को नहीं समझ पा रही है। अमरीकी सरकार यह नहीं समझ पा रही है कि दुनिया के अलग अलग हिस्सों में नई शक्तियां उभर चुकी हैं जो क्षैत्रीय स्तर पर भी नहीं बल्कि विश्व स्तर पर अपना एक असर रखती हैं। इस्लामी गणतंत्र ईरान भी एसी ही शक्तियों में से एक है।

ईरान का मामला यह है कि इस देश ने इस्लामी क्रान्ति के बाद के चालीस वर्षों में अमरीका ही नहीं बल्कि अन्य पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का भी सामना किया है और उसे अच्छी तरह मालूम है कि प्रतिबंधों से कैसे निपटा जाता है।

ईरान ने क्षेत्रीय स्तर पर अपनी साख मज़बूत की है और पड़ोसी देशों की नज़र में ईरान एक विश्वसनीय देश बन चुका है। सीरिया संकट का जो अंजाम हुआ है या इराक़ में दाइश की जिस तरह से कमर तोड़ दी गई है उसे देखते हुए ईरान की शक्ति और प्रभाव की व्यापकता गहराई को समझा जा सकता है।

मौजूदा हालात में उत्तरी कोरिया ही नहीं बल्कि अधिकतर देश ईरान से अपना सहयोग बढ़ा रहे हैं। इस समय तो वह देश भी ईरान का समर्थन कर रहे हैं जो पारम्परिक रूप से ईरान के मामले में अमरीका के साथ खड़े दिखाई देते थे।

अमरीका की हालत यह है कि उसने अपने घटकों की नज़र में भी खुद को असहनीय बना लिया है और यह घटक अमरीका के मुक़ाबले में स्वतंत्र रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं।

इन सभी हालात को देखते हुए बहुत आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अमरीका ने प्रतिबंधों की जो रणनीति अपना रखी है उसका अंजाम क्या होगा?

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